उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष बबीता चौहान ने मुस्लिम महिलाओं के बुर्का पहनने को लेकर विवादित बयान दिया है. उन्होंने कहा कि यदि महिलाओं को नकाब में ही रहना है, तो वे अपने घरों में रहें, क्योंकि वे बाहर की तुलना में घर के भीतर ज्यादा असुरक्षित हैं.
यह बयान आगरा में एक जनसुनवाई के दौरान सामने आया, जहां महिलाएं नकाब पहनकर अपनी समस्याएं बताने पहुंची थीं. बबीता चौहान ने सवाल उठाया कि जब पासपोर्ट और आधार कार्ड के लिए चेहरा दिखाया जाता है, तो आयोग की सुनवाई या अस्पताल जैसी जगहों पर पहचान क्यों छिपाई जाती है.
'घर में ज्यादा अनसेफ हैं महिलाएं'
बबीता चौहान ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर महिलाओं को इतने ही कब्जे में रहना है, तो वे घर पर रहें. उनका मानना है कि महिलाएं घर के भीतर अधिक असुरक्षित महसूस करती हैं, जबकि बाहर वे कहीं ज्यादा सुरक्षित हैं. उन्होंने एक इंसान और अध्यक्ष के नाते सवाल किया कि आखिर महिलाएं अपनी आइडेंटिटी (पहचान) क्यों छुपा रही हैं? उन्होंने कहा कि जहां चेहरे की पहचान जरूरी है, वहां भी नकाब न हटाना समझ से परे है.
बागपत की जनसुनवाई का वो वाकया
अध्यक्ष ने बागपत के एक अस्पताल में हुई जनसुनवाई का उदाहरण दिया. उन्होंने बताया कि वहां कई महिलाएं नकाब लगाकर बैठी थीं. जब उनसे सरकारी सुविधाओं के बारे में पूछा गया, तो वे कुछ भी बोलने को तैयार नहीं थीं. बबीता चौहान के अनुसार, उन्होंने महिलाओं से कहा कि 'मुंह से कुछ तो हटाओ, मैं तुम्हें देखूं तो सही.' उन्होंने आरोप लगाया कि शुरू में महिलाओं ने सुविधाएं मिलने से इनकार किया, लेकिन जांच की बात कहने पर सभी ने हाथ उठाकर स्वीकार किया कि उन्हें लाभ मिला है.
'पहचान छिपाने के पीछे गलत मंशा'
बबीता चौहान ने तर्क दिया कि जब पासपोर्ट, वोटर कार्ड, आयुष्मान कार्ड और आधार कार्ड बनवाने के लिए नकाब हटाया जाता है, तो आम लोगों से पर्दा करने का क्या मतलब है. उन्होंने कहा कि इससे उनके मन में 'इरिटेशन' होता है. उनके अनुसार, अगर लोग अपनी पहचान छुपा रहे हैं, तो कहीं न कहीं मन में कुछ गलत है. उन्होंने नकाब और बुर्के को 'बेकार की चीज' बताते हुए कहा कि बाहर समाज में महिलाओं को कोई खतरा नहीं है.