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एक तरफ यूपी विधानसभा के अंदर रातभर हुई चर्चा ताे दूसरी तरफ शिक्षकों ने बाहर दिया धरना, जानिए क्यों

यह धरना पिछले तीन दिनों से लगातार चल रहा है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जैसे ही विधानसभा सत्र की शुरुआत हुई, उन्होंने अपनी आवाज को सरकार तक पहुंचाने के लिए राजधानी में डेरा डाल दिया. खास बात यह है कि यह धरना उस समय भी जारी रहा जब विधानसभा के भीतर 24 घंटे का विशेष सत्र चल रहा था और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विकसित भारत की दृष्टि पर भाषण दे रहे थे.

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विधानसभा के बाहर रात भर धरना देने वाले शिक्षकों ने अपनी मांगों को विस्तार से बताया (Photo: Screengrab)
विधानसभा के बाहर रात भर धरना देने वाले शिक्षकों ने अपनी मांगों को विस्तार से बताया (Photo: Screengrab)

एक तरफ उत्तर प्रदेश विधानसभा में विजन 2047 पर रात में भी ऐतिहासिक चर्चा हुई , तो दूसरी तरफ विधानसभा के सामने शिक्षा निदेशालय में सरकारी शिक्षक ट्रांसफर न होने की पीड़ा लेकर धरने पर बैठे रहे. देर रात सैकड़ों शिक्षक, जिनमें बड़ी संख्या में महिला अध्यापिकाएं भी शामिल थीं, उनका कहना है कि महीनों पहले नियमों के तहत आवेदन करने के बावजूद सरकार ने अब तक उनके तबादलों पर कोई फैसला नहीं लिया, जबकि ट्रांसफर की अंतिम तारीख भी गुजर चुकी है.

यह धरना पिछले तीन दिनों से लगातार चल रहा है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जैसे ही विधानसभा सत्र की शुरुआत हुई, उन्होंने अपनी आवाज को सरकार तक पहुंचाने के लिए राजधानी में डेरा डाल दिया. खास बात यह है कि यह धरना उस समय भी जारी रहा जब विधानसभा के भीतर 24 घंटे का विशेष सत्र चल रहा था और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विकसित भारत की दृष्टि पर भाषण दे रहे थे. प्रदर्शनकारी शिक्षकों का सवाल है कि क्या विकसित उत्तर प्रदेश में उनकी समस्याएं कोई मायने नहीं रखतीं.

शिक्षकों के संगठन का दावा है कि प्रदेश भर से लगभग 1,740 शिक्षकों ने समय रहते तबादले के लिए आवेदन किया था. सभी ने नियमानुसार आवश्यक एनओसी और दस्तावेज भी जमा किए, लेकिन विभाग ने अब तक किसी भी आवेदन पर कार्रवाई नहीं की. इनमें कई ऐसे शिक्षक हैं, जो वर्षों से परिवार से दूर कठिन परिस्थितियों में कार्य कर रहे हैं. महिला शिक्षिकाओं का दर्द और भी गहरा है, क्योंकि वे छोटे बच्चों और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच लंबे समय से पोस्टिंग बदलने की उम्मीद लगाए बैठी थीं. धरने में शामिल शिक्षिका अनीता वर्मा ने कहा, हमने पूरी प्रक्रिया ईमानदारी से पूरी की. कागज़ात समय पर जमा किए, एनओसी ली, और उम्मीद की थी कि समय रहते आदेश आ जाएंगे. लेकिन सरकार ने हमारी बात को गंभीरता से नहीं लिया. अब आखिरी तारीख भी निकल गई है और हमें सिर्फ इंतजार और निराशा मिली है.

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प्रदेश अध्यक्ष सोहनलाल वर्मा ने मीडिया से बातचीत में कहा, सरकार हमारी बिल्कुल भी नहीं सुन रही. हम मजबूर होकर यहां बैठे हैं. एक तरफ विधानसभा का सत्र 24 घंटे चल रहा है, तो दूसरी तरफ हम भी रातभर यहां डटे हुए हैं. अब समय आ गया है कि सरकार हमारे मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई करे. प्रदेश महामंत्री राजीव यादव ने आरोप लगाया कि यह सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि शिक्षकों के साथ अन्याय है. उन्होंने कहा, हमने सारे नियम-कायदे-कानून के हिसाब से आवेदन किया था. अंतिम तारीख निकल जाने के बाद भी किसी पर विचार नहीं किया गया. यह स्थिति बेहद निराशाजनक है और हमारी मजबूरी है कि हम देर रात यहां ठंड में बैठकर अपनी आवाज़ उठा रहे हैं.

धरने के तीसरे दिन की रात, शिक्षा निदेशालय के बाहर का नज़ारा असामान्य था. एक तरफ पुलिस की हल्की मौजूदगी, दूसरी तरफ बैनर और हाथों में तख्तियां थामे बैठे शिक्षक. महिलाएं आपस में एक-दूसरे का हौसला बढ़ाती नज़र आईं. कई शिक्षक अपने छोटे बच्चों के साथ आए थे, क्योंकि घर पर उन्हें छोड़ने का कोई इंतजाम नहीं था. चाय के स्टॉल और सड़क किनारे बैठे प्रदर्शनकारी इस बात का प्रतीक थे कि उनकी जंग सिर्फ ट्रांसफर के आदेश के लिए नहीं, बल्कि अपनी आवाज़ सुने जाने के लिए है. प्रदेश प्रवक्ता श्रवण कुशवाहा ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा, एक तरफ विकसित उत्तर प्रदेश पर चर्चा हो रही है और दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश का शिक्षक न्याय मांग रहा है. क्या यही विकास का मॉडल है, जिसमें हम अनसुने बैठे रहें? उन्होंने चेतावनी दी कि अगर जल्द समाधान नहीं निकाला गया तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा.

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धरना स्थल पर मौजूद कई शिक्षकों ने बताया कि ट्रांसफर न होने से उनका व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन दोनों प्रभावित हो रहा है. कुछ शिक्षकों ने कहा कि वे वर्षों से कठिन इलाकों में तैनात हैं, जहां न तो परिवहन की सुविधा है और न ही उचित स्वास्थ्य सेवाएं. इस वजह से उनके परिवार को भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. धरने में शामिल एक अन्य शिक्षक, संजय मिश्रा ने कहा, हम यह आंदोलन किसी राजनीतिक मकसद से नहीं कर रहे. यह पूरी तरह से हमारे हक और अधिकार की लड़ाई है. अगर सरकार ने समय रहते हमारी मांगें मान ली होतीं, तो आज हमें यहां नहीं बैठना पड़ता.

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