पेपर लीक मामले में न्याय तक पहुंचने में कितना वक्त लगता होगा, एक महीना, एक साल, दो साल या 10 साल... जी नहीं, 18 साल बाद भी पेपर लीक का ऐसा केस है, जिसमें अभी तक फैसला ही नहीं हुआ है. तभी तो 2006 के पेपर लीक मामले में उत्तर प्रदेश में NDA के दो विधायकों यानी बीजेपी के 2 सहयोगी दलों के विधायकों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हो चुका है.
यूपी में बीजेपी के साथी ओपी राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के विधायक बेदीराम और निषाद पार्टी के विधायक विपुल दुबे के खिलाफ गैर जमानती वारंट (NBW) जारी हुआ है. इन दोनों में केवल ये समानता नहीं है कि ये यूपी में NDA के विधायक हैं. बल्कि समानता ये भी है कि दोनों 2006 की पेपर लीक के आरोपी हैं.
बेदीराम ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के ऐसे विधायक हैं, जिन पर अगर 9 मामले दर्ज हैं, तो उसमें से 8 पेपर लीक से जुड़े हैं. अब अपने विधायक का नाम फिर पेपर लीक के पुराने केस में सामने आने पर भले राजभर कहें कि बेदीराम तो असल में समाजवादी पार्टी के हैं, लेकिन मुश्किल सिर्फ राजभर की पार्टी की नहीं, बल्कि बीजेपी के सामने तक आती है, क्योंकि राजभर के बेदीराम का हाथ बीजेपी के साथ है.
26 फरवरी 2006 को यूपी में रेलवे भर्ती बोर्ड की तरफ से समूह 'घ' की परीक्षा हुई थी. यूपी एसटीएफ को खबर मिली कि कुछ लोग एक घर में लीक पेपर याद करा रहे हैं. यूपी एसटीएफ को छापेमारी में जो पेपर मिला, वही भर्ती परीक्षा में आय़ा था. 16 लाख परीक्षार्थी इस भर्ती परीक्षा में बैठे थे, जिसे 18 साल पहले ऱद्द कर दिया गया था.
2006 में जो पेपर लीक के आरोपी हैं, उन्हें अभी तक कोर्ट से सजा नहीं मिल पाई, बल्कि वो उत्तर प्रदेश में विधायक तक बन गए. बेदीराम और विपुल दुबे इसकी गवाही हैं.
एसटीएफ के तत्कालीन अधिकारी राजेश पांडेय ने कहा कि बेदीराम जो मुख्य सरगना था, वो तब पकड़ा गया था. मैं शुद्ध अपराध और अपराधी की बात बता रहा हूं, अब वह विधायक हो गए हैं.
राजभर की पार्टी के विधायक बेदीराम कहते हैं कि केस पुराने हैं. नया कुछ भी नहीं और संजय निषाद की पार्टी के विधायक विपुल दुबे कहते हैं कि 18 साल पहले कुछ गलतियां हुई थीं, लेकिन अब वो पाक साफ हैं.