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सोलो ट्रैवल से ग्रुप एडवेंचर तक... महिलाएं बदल रही हैं ट्रैवलिंग का चेहरा

महिलाएं सिर्फ यात्री नहीं रह गईं, बल्कि पूरी यात्रा की योजना और फैसलों में आगे हैं. इन प्राथमिकताओं के कारण अब होटल और टूर कंपनियां अपनी सेवाओं को महिलाओं की ज़रूरतों के हिसाब से डिज़ाइन कर रही हैं.

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 दस में से चार महिलाएं खुद लेती हैं घूमने का फैसला (Photo: Pexels)
दस में से चार महिलाएं खुद लेती हैं घूमने का फैसला (Photo: Pexels)

भारत में घूमने-फिरने के तरीके में अब एक बड़ा बदलाव आ गया है. इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह हैं महिलाएं. चाहे घर-परिवार के साथ छुट्टी पर जाना हो या दोस्तों के साथ कोई एडवेंचर ट्रिप, अब यात्रा की योजना बनाने और बुकिंग करने में महिलाओं की भागीदारी बहुत बढ़ गई है. Booking.com की वार्षिक रिपोर्ट हाउ इंडिया ट्रैवल्स 2025 के अनुसार, लगभग 73 प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि महिलाएं अब यात्रा की प्लानिंग में पहले से कहीं ज़्यादा हिस्सा ले रही हैं. ये महिलाएं अब सिर्फ़ यात्री नहीं हैं, बल्कि ये पूरी यात्रा को बड़े ध्यान से और अच्छे से डिज़ाइन करती हैं. ऐसे में इन्हें अब परिवार की 'ट्रिप मास्टर' कहा जा सकता है. आइए, जानते हैं कि कैसे ये महिलाएं भारत में घूमने-फिरने का तरीका बदल रही हैं.

परिवार की 'यात्रा वास्तुकार' बनी महिलाएं

अब भारतीय महिलाएं यात्रा में सिर्फ़ साथ चलने वाली नहीं हैं, बल्कि पूरी ट्रिप की योजना और फ़ैसलों में अगुआ बन गई हैं. आंकड़े बताते हैं कि दस में से चार महिलाएं अब घूमने से जुड़े ज़रूरी फ़ैसले खुद लेती हैं और 33% महिलाएं अपने परिवार या दोस्तों के लिए सफ़र की योजना और बुकिंग स्वयं करती हैं. वहीं, 26 से 55 साल की ये महिलाएं न सिर्फ अपने लिए, बल्कि दूसरों के लिए भी नए और ख़ास अनुभव तैयार कर रही हैं. इसी कारण, बड़ी टूर कंपनियां और पर्यटन ब्रांड अब महिलाओं के अनुभव और ज़रूरतों को ध्यान में रखकर अपनी योजनाएं बनाने लगे हैं.

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ग्रुप ट्रैवल में महिलाओं का 'दबदबा'

महिलाओं के नेतृत्व वाले ट्रैवल ग्रुप तेजी से बढ़ रहे हैं. द हॉस्टलर के संस्थापक प्रणव डांगी के अनुसार, महिलाएं अब ग्रुप यात्राओं में खास मौके ढूंढती हैं. गोवा में होने वाली बैचलरेट (शादी से पहले की) पार्टियों का बाज़ार इसका बड़ा उदाहरण है. वहीं, वाराणसी जैसे धार्मिक जगहों पर बुजुर्ग महिलाएं समूह में आध्यात्मिक यात्रा कर रही हैं. अब महिलाएं सिर्फ परिवार के साथ ही नहीं, बल्कि अपने ग्रुप के साथ भी यात्रा का मज़ा ले रही हैं.

सोलो ट्रैवल' अब नई आज़ादी का प्रतीक

सिर्फ़ समूहों में ही नहीं, अब महिलाएं अकेले भी बहुत यात्रा कर रही हैं. दिल्ली में, द हॉस्टलर्स में अकेले बुकिंग करने वालों में लगभग 70% महिलाएं होती हैं. अकेले यात्रा करना अब सिर्फ अविवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं है. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो, अकेले घूमना ज़रूरी है, क्योंकि इससे व्यक्ति अपनी पसंद-नापसंद और जीवन के लक्ष्य को समझ पाता है. अकेले यात्रा करने से महिलाओं में आत्मनिर्भरता और आज़ादी की भावना आती है, जो उनके व्यक्तिगत विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

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प्राथमिकताएं बदल रही हैं इंडस्ट्री

महिला यात्री क्या चाहती हैं? सर्वे ने उनकी स्पष्ट ज़रूरतें बताई हैं, जिन्हें अब टूरिज्म इंडस्ट्री नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती.

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सुरक्षित माहौल: महिला-अनुकूल और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध जगहें.

वेलनेस: ऐसे अनुभव जो उन्हें तनाव मुक्त करें या 'रीसेट' होने का समय दें.

नियंत्रण: बुकिंग पर पूरा नियंत्रण, आसानी से रद्द करने की सुविधा, और सत्यापित जगहें. 

विवाहित महिलाओं के लिए भी ज़रूरी

यह ज़रूरी नहीं कि सोलो ट्रैवल सिर्फ़ सिंगल महिलाएं ही करें. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, विवाहित महिलाओं के लिए भी अकेले यात्रा करना रिश्ते को मज़बूत कर सकता है. जब पार्टनर्स एक-दूसरे को स्वायत्तता (Autonomy) देते हैं, तो रिश्ते में विश्वास बढ़ता है. बच्चों वाली माताओं के लिए, यह आत्म-देखभाल (Self-Care) का सबसे बेहतरीन उदाहरण है. जो महिलाएं अपने लिए समय निकालती हैं, वे परिवार की ज़िम्मेदारियों को और भी बेहतर तरीके से निभाने के लिए तरोताज़ा होकर लौटती हैं.

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