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होलिका दहन

होलिका दहन

होलिका दहन

होलिका दहन (Holika Dahan) हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे होली से एक दिन पहले फाल्गुन पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है. इसे छोटी होली भी कहा जाता है. इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक स्वरूप होलिका दहन किया जाता है.

इस दिन लकड़ियों, उपलों और कंडों से होलिका दहन के लिए चिता बनाई जाती है. इस चिता में गेंहू की बालिया, नारियल, गन्ना आदि अर्पित किए जाते हैं. परिवार और समाज के लोग एक साथ मिलकर इसकी परिक्रमा करते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. कई स्थानों पर होलिका दहन के बाद उसकी राख को घर लाकर तिलक करने की भी परंपरा है.

होलिका दहन की कथा भक्त प्रह्लाद और उनके पिता राजा हिरण्यकश्यप से जुड़ी हुई है. हिरण्यकश्यप, जो स्वयं को भगवान मानता था, अपने पुत्र प्रह्लाद की भगवान विष्णु के प्रति भक्ति से नाराज था. उसने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन वह असफल रहा. अंत में, उसने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को मारने के लिए कहा. होलिका के पास एक वरदान था कि वह अग्नि में जल नहीं सकती. उसने प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग में बैठने का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए. तभी से होलिका दहन बुराई के अंत और भक्ति की विजय के रूप में मनाया जाता है.

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