एक दौरा था, जब लोगों के पास अपने लिए काफी समय होता था, बच्चों को स्कूल, खेलकूद, टीवी देखने के साथ अपने मां-बाप के साथ भी काफी वक्त बिताने को मिलता था. लेकिन मौजूदा दौर में हमारे पास अपने लिए ही वक्त नहीं है. इंसान जीता नहीं है, बल्कि ताउम्र जीने की तैयारियों में ही लगा रहता है.