भारतीय टीम अपने घर में एक और टेस्ट सीरीज गंवाने की कगार पर है. कोलकाता की करारी हार के बाद गुवाहाटी टेस्ट का मिजाज भी उत्साह नहीं जगा पा रहा. गेंदबाजी बेदम, बल्लेबाजी बिखरी हुई और फैसलों पर लगातार सवाल... सोशल मीडिया पर आक्रोश का ज्वार है. बहस की गर्मी है और फैन्स की धड़कनें तेज हैं. लेकिन इस गुस्से की एक एक्सपायरी डेट 'बहुत छोटी' है.
हम दो-चार दिनों तक भारत के टेस्ट क्रिकेट पर मातम मनाएंगे… फिर ODIs शुरू हो जाएंगे, रोहित-विराट सुर्खियों में होंगे. और उसके बाद..? भारत शायद T20 वर्ल्ड कप जीत ले, IPL फिर से देशव्यापी त्योहार बनकर आ जाए… और जब अगस्त में अगला टेस्ट आएगा तो सभी पुराने जख्मों पर नई चमक की परत चढ़ चुकी होगी. भारतीय क्रिकेट में भूलने की कला कोई नई नहीं- यह एक पुरानी आदत है.
टेस्ट क्रिकेट भारतीय क्रिकेट की वह संतान है जिसे घर में सब मानते तो हैं, पर समय किसी और को दे देते हैं. T20 की चमक, IPL का ग्लैमर और हर हफ्ते बनने वाले ‘सुपरस्टार’... इन सबके बीच पांच दिन वाले इस खेल का क्राउन धीरे-धीरे धुंधला पड़ता जा रहा है.
टेस्ट के लिए अभ्यास कम, प्लानिंग कम और धैर्य तो सबसे कम. हार मिलती है तो दोष ढूंढने का काम तेज हो जाता है- कभी क्यूरेटर, कभी टीम कॉम्बिनेशन, कभी वर्कलोड, कभी मौसम की बात की जाती है. लेकिन कोई यह नहीं पूछता कि 5 दिन खेलने वाली टीम को हम 20 ओवर वाली क्रिकेट की सोच से क्यों चला रहे हैं?
ईडन से गुवाहाटी: वही कहानी
कोलकाता टेस्ट में जो हुआ, गुवाहाटी में वह दोहरने के संकेत साफ दिख रहे हैं. अज्ञात पिच, अनिश्चित टेम्परामेंट और बिना बैकअप प्लान के मैदान पर टीम उतरी. फैन्स की ऊंची उम्मीदों के बीच टीम का आत्मविश्वास लड़खड़ाता हुआ नजर आया. बाहर से देखने पर लगता है- भारत अपने घर में अपनी ही बनाई परिस्थितियों को पढ़ नहीं पा रहा.
शेक्सपियर ने लिखा था- 'All that glitters is not gold.' आज की तारीख में इसका सबसे बड़ा भारतीय उदाहरण 'T20 क्रिकेट' है. जीत मिलती है, रेटिंग्स बढ़ती हैं, विज्ञापन आते हैं, खिलाड़ी रातोरात ब्रांड बन जाते हैं. लेकिन टेस्ट क्रिकेट?
जैसे किसी पुराने रिश्ते को सिर्फ त्योहारों पर याद किया जाता है, वैसे ही टेस्ट को सिर्फ संकट के समय याद किया जाता है-हार के बाद. ODI और T20 में मशीन की तरह चलते खिलाड़ियों से उम्मीद की जाती है कि वो टेस्ट में ‘क्लास’ दिखाएं. लेकिन क्लास समय मांगती है, जिसकी कमी भारतीय क्रिकेट की दिनचर्या में सबसे ज्यादा है.
... तो अब आगे क्या?
जब तक भारत का क्रिकेट कैलेंडर T20 के इर्द-गिर्द घूमता रहेगा और घरेलू सीज़न में टेस्ट क्रिकेट को असली महत्व नहीं मिलेगा, हालात ऐसे ही बने रहेंगे. खिलाड़ी भी दो फॉर्मेट की अलग-अलग मांगों के बीच उलझे रहेंगे और टेस्ट संकट बार-बार लौटता रहेगा.
हम हर हार के बाद कहेंगे, 'टीम में सुधार होना चाहिए', लेकिन IPL शुरू होते ही सब कुछ फिर ठीक-ठाक लगता लगेगा.
भारत चाहे टेस्ट में कितनी ही बार चोट खाए, T20 की चमक दिखते ही पूरा दर्द भूल जाता है. इसलिए टेस्ट का असली संकट हार नहीं, बल्कि हमारा वही ‘शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस’ है, जो हर बार भारतीय क्रिकेट को वहीं ला खड़ा करता है जहां से कहानी शुरू हुई थी.