क्रिकेट की टाइमलाइन में 15 नवंबर का महत्व किसी 'मील के पत्थर' से कम नहीं... 1989 में इसी दिन कराची के नेशनल स्टेडियम में 16 साल 205 दिन का एक किशोर भारत की टेस्ट टीम में खेलने के लिए मैदान पर उतरा था. वह लड़का उस समय मुश्ताक मोहम्मद और आकिब जावेद के बाद सबसे कम उम्र में डेब्यू करने वाला तीसरा टेस्ट क्रिकेटर था. तब शायद किसी ने सोचा नहीं होगा कि यही लड़का एक दिन 'क्रिकेट का भगवान' कहलाएगा. जी हां! बात हो रही है सचिन रमेश तेंदुलकर की.
कराची से शुरू हुआ एक नया अध्याय
कराची का वह टेस्ट सिर्फ एक डेब्यू नहीं था, बल्कि उस सफर की शुरुआत था, जिसने आने वाले दशकों में क्रिकेट की परिभाषा बदल दी. सचिन ने इसके बाद 24 साल तक विश्व क्रिकेट पर राज किया- 200 टेस्ट, 15921 टेस्ट रन (औसत 53.78), 51 शतक और इंटरनेशनल क्रिकेट में कुल 100 शतक. आंकड़े बताते हैं कि यह करियर सिर्फ लंबा नहीं था, अद्वितीय था.
डेब्यू मैच: मुश्किल हालात, छोटा स्कोर, बड़ा प्रभाव
भारत की कप्तानी कृष्णमाचारी श्रीकांत के पास थी. पाकिस्तान के 409 रनों के जवाब में भारत 41 रनों पर 4 विकेट गंवा चुका था. ऐसे वक्त में नंबर छह पर आए 16 साल के सचिन ने 24 गेंदों में 15 रन बनाए और मोहम्मद अजहरुद्दीन के साथ 32 रन जोड़कर टीम को स्थिरता देने की कोशिश की.
उन्हें जिस गेंद ने बोल्ड किया, वह भी खास थी- यह वकार यूनुस की इनस्विंगर थी. वकार भी अपना डेब्यू टेस्ट खेल रहे थे. शाहिद सईद और सलिल अंकोला ने भी उसी टेस्ट में डेब्यू किया था, लेकिन उनके करियर वहीं थम गए... जबकि सचिन और वकार के लिए यही मुकाबला दो ऐतिहासिक करियरों की शुरुआत बना.
दूसरी पारी में मौका नहीं, ड्रॉ में बदला मुकाबला
पाकिस्तान ने 305/5 पर पारी घोषित कर भारत को 453 रन का लक्ष्य दिया. भारतीय बल्लेबाजों के जुझारू खेल (303/3) से मैच ड्रॉ रहा. सचिन दूसरी पारी में क्रीज पर नहीं उतर पाए. अपना 100वां टेस्ट खेल रहे कपिल देव ने 7 विकेट और एक अर्धशतक के दम पर 'मैन ऑफ द मैच' का पुरस्कार जीता.
अगले टेस्ट (फैसलाबाद) में सचिन ने 172 गेंदों में 59 रन बनाए और अपने पहले अर्धशतक का स्वाद चखा, जबकि तीसरे टेस्ट (लाहौर) में तेंदुलकर एक और अर्धशतक के करीब पहंचे, लेकिन 41 रन बनाकर अब्दुल कादिर की गेंद पर बोल्ड हो गए थे. अगला टेस्ट सियालकोट में खेला गया, जिसमें उन्होंने 35 और 57 रन बनाए. आखिरकार चार टेस्ट मैचों की सीरीज ड्रॉ (0-0) पर खत्म हुई.
वह चोट, जिसने उनके जज्बे को साबित किया
वकार यूनुस सियालकोट टेस्ट को याद करते हुए कहते हैं, 'ग्रीन टॉप विकेट था. शुरुआत में एक गेंद उसकी नाक पर लगी, 16 साल का लड़का था… चेहरा बिल्कुल पीला पड़ गया था. लेकिन उसकी जिद, उसका आत्मविश्वास कमाल का था. कुछ मिनट बाद वह वापस तैयार हो गया और फिफ्टी पूरी की. उस समय अंदाजा नहीं था कि वही लड़का आगे चलकर इतना बड़ा नाम बनेगा.'
संयोग: शुरुआत भी 15 नवंबर, विदाई भी 15 नवंबर
इसे संयोग ही कहा जाएगा कि 2013 में सचिन तेंदुलकर ने अपनी टेस्ट करियर की आखिरी पारी भी 15 नवंबर को ही खेली. वेस्टइंडीज के खिलाफ मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में 14 नवंबर से शुरू हुए टेस्ट के दूसरे दिन (15 नवंबर) वह 74 रनों की भावुक पारी खेलकर पवेलियन लौटे. इसी के साथ 24 साल और 1 दिन के लंबे सुनहरे सफर पर विराम लगा.