भारत में हिमालयी कस्तूरी मृगों को बचाने के प्रयास नाकाम रहे हैं. ये मृग अपनी खास खुशबू के लिए मशहूर हैं. लेकिन चिड़ियाघरों में इनके प्रजनन कार्यक्रम कभी सही तरीके से शुरू ही नहीं हुए. केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडीए) की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. DTE ने आरटीआई से यह जानकारी मांगी थी.
हिमालय में दो मुख्य प्रकार के कस्तूरी मृग हैं...
रिपोर्ट कहती है कि चिड़ियाघरों ने इनकी गलत पहचान की. अल्पाइन वाले के लिए कार्यक्रम चलाने की कोशिश हुई, लेकिन शायद हिमालयी वाले को ही इस्तेमाल किया गया. नतीजा? अल्पाइन मृग का कोई प्रजनन नहीं हुआ. इनकी संख्या का कोई सही आंकड़ा नहीं है.
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दार्जिलिंग में एक नर हिमालयी मृग था (2017-18 की सूची से), लेकिन अब ताजा जानकारी नहीं.

देहरादून के वन्यजीव संस्थान के रिटायर्ड प्रोफेसर बीसी चौधरी कहते हैं कि भारत में ये कार्यक्रम पूरी तरह असफल हैं. गलत पहचान से संरक्षण में भ्रम फैला. वे कहते हैं कि कोई मजबूत प्रजनक जोड़ा नहीं है. चीन ने तो बिना मारे खुशबू निकालने की तकनीक बना ली, लेकिन हम पीछे हैं.
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कई अन्य संकटग्रस्त जानवरों के कार्यक्रम भी रुके हैं...
रिपोर्ट सलाह देती है: नई प्रजाति न जोड़ें. भारत को अपनी संकटग्रस्त सूची बनानी चाहिए, आईयूसीएन पुरानी है. कस्तूरी मृगों का संरक्षण जरूरी है. लेकिन गलतियां सुधारें. सही पहचान, मजबूत केंद्र और निगरानी से ये बच सकते हैं. सरकार को तेजी से कदम उठाने चाहिए. वरना ये सुंदर मृग हमेशा के लिए खो जाएंगे.