दिल्ली को साल 2050 तक होगा 2.75 लाख करोड़ रुपए का नुकसान. वजह है जलवायु परिवर्तन. यानी क्लाइमेट चेंज. क्यों- क्योंकि बारिश और बढ़ती गर्मी का समय बदलेगा. इससे जान और माल दोनों का भारी नुकसान होगा. यह खुलासा किया है दिल्ली सरकार के ड्राफ्ट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (SAPCC) ने.
यह प्लान अभी अप्रूवल के लिए पेंडिंग है, लेकिन यह कहता है कि हीटवेव, बढ़ता तापमान, भारी बारिश ही दिल्ली के लिए भविष्य में बड़ी चुनौती बनेंगे. देश में साल 2008 में नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (NAPCC) बना था. राज्यों को निर्देश दिए गए थे कि वो भी अपने राज्य में अपना एक्शन प्लान बनाए. राज्य के एक्शन प्लान को राष्ट्रीय एक्शन प्लान की नीतियों और निर्देशों के अनुसार काम करने को कहा गया था.

जनवरी 2018 में केंद्र सरकार ने कहा कि राज्य अपने SAPCC को ज्यादा मजबूत और रिवाइज करें. इसमें अंतरराष्ट्रीय मानकों, विज्ञान और नीतिगत लैंडस्केप की प्लानिंग शामिल हो. दिल्ली का क्लाइमेट एक्शन प्लान 2019 में फाइनल हुआ. इस काम को करने में करीब सात साल लगे. इसमें कई एक्सपर्ट्स को शामिल किया गया.
खेती को 800, मैन्यूफैक्चरिंग को 3330 करोड़ का नुकसान
अब दिल्ली का ड्राफ्ट एक्शन प्लान कहता है कि राष्ट्रीय राजधानी को 2050 तक यानी अब से 27 साल बाद जलवायु परिवर्तन की वजह से 2.75 ट्रिलियन यानी 2.75 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा. इसमें कृषि और इससे संबंधित सेक्टर्स को 800 करोड़ रुपए का नुकसान होगा. मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री को 3300 करोड़ का नुकसान होगा. इसके अलावा बाकी सेक्टर्स को 2.34 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा.
दिल्ली का ये SAPCC के प्लान में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज सिक्सथ असेसमेंट रिपोर्ट (IPCC AR6) की सिफारिशों को शामिल किया गया है. जिसमें सालाना अधिकतम तापमान, न्यूनतम तापमान और भारी बारिश के असर को शामिल करने को कहा गया था. इस ड्राफ्ट प्लान में दिल्ली के बदलते मौसम को लेकर भविष्यवाणी की गई है.

दिल्ली में सर्दी घट रही है, बारिश और तापमान बढ़ता जा रहा
दिल्ली के ड्राफ्ट प्लान में बताया गया है कि सर्दियों के दिन और रात कम हो रहे हैं. सूखे दिनों में 8.4 का नुकसान होगा. इसके अलावा गीले दिनों में 1.4 दिनों की बढ़ोतरी होगी. इसके अलावा 0.9 दिनों का इजाफा होगा. बारिश के मामले में. 8-9 जुलाई को दिल्ली में एक दिन में सबसे ज्यादा बारिश दर्ज की गई. 24 घंटे में 153 मिलिमीटर बारिश हुई. इसकी वजह पश्चिमी विक्षोभ था. अगले 24 घंटे में दिल्ली में 107 मिलिमीटर और बारिश हो गई.
इतनी बारिश हुई कि सड़कें डूब गई. ड्रैनेज सिस्टम बेकार हो गए. हिमाचल, उत्तराखंड और हरियाणा में मौजूद यमुना के ऊपरी कैचमेंट एरिया में पानी का बहाव बढ़ गया. इससे यमुना का विकराल रूप राष्ट्रीय राजधानी में देखने को मिला. जलस्तर 208.66 मीटर पहुंच गया. इसने 1978 के रिकॉर्ड को तोड़ दिया. 27 हजार लोगों को बाढ़ग्रस्त इलाके से बचाया गया. उनकी संपत्तियों को भारी नुकसान हुआ. व्यवसाय बर्बाद हो गए.

दिल्ली के ये इलाके हैं पानी के बहाव के सबसे खतरनाक रास्ते
दिल्ली में पानी बहाव को लेकर तीन इलाके खतरनाक स्थिति में हैं. ये है नजफगढ़, बारापुला और ट्रांस-यमुना. बारिश के समय दिल्ली के सेंट्रल रिज के पूर्वी तरफ से पानी यमुना में गया. पश्चिमी तरफ ड्रेन छोटे हैं. वो नजफगढ़ के ड्रेनेज से जुड़ गए. इससे नदी खाली हो गई. दिल्ली का पूर्वी इलाका निचला है. यह यमुना के बाढ़ वाले जोन में आता है. वर्तमान स्टॉर्मवाटर ड्रेनेज सिस्टम जाम हो जाता है. वजह है कचरा. जिससे पानी की निकासी सही से नहीं होती.
इसकी वजह से पानी सड़कों पर, कालोनियों में भरने लगता है. दिल्ली का ड्रेनेज मास्टर प्लान आखिरी बार 1976 का है. तब दिल्ली की आबादी साठ लाख थी. लेकिन अब करोड़ों में. शहर फैल भी गया है. निर्माण भी ज्यादा हो चुका है. दिल्ली सरकार ने IIT दिल्ली से ड्रेनेज मास्टर प्लान बनाने को कहा था. संस्थान ने 2018 में ही अपनी रिपोर्ट दे दी थी. लेकिन शहर के टेक्निकल पैनल ने उसे यह कह कर खारिज कर दिया कि इसमें गड़बड़ी है.

इस साल की शुरुआत में दिल्ली सरकार ने पीडब्लूडी विभाग से कहा कि वह राष्ट्रीय राजधानी के स्टॉर्म रन-ऑफ सिस्टम के बड़े हिस्से के लिए नया प्लान बनाए. यानी 3741 किलोमीटर में से 2064 किलोमीटर का प्लान. इस समय दिल्ली के पास कोई कानूनी मैन्डेट नहीं है, जिसके तहत राजधानी के कंप्रेहेंसिव रिकॉर्ड बना सकें. बस दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के पास ट्रैफिक मूवमेंट के आधार पर 330 हिस्सों का डेटा है. जो ड्रैनेज के हिसाब से गड़बड़ हैं.
जितना ज्यादा बढ़ेगा तापमान, उतना अधिक होगा नुकसान
अगर RCP 4.5 की स्थिति होती है तो दिल्ली का अधिकतम तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा. जबकि RCP 8.5 की स्थिति में 2.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान है. ये सब 2050 तक हो जाएगा. RCP का मतलब होता है फोर रिप्रेजेंटेटिव कंस्ट्रेशन पाथवे. यह वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे तापमान के मानकों के आधार पर मौसम का जायजा लेता है. इसमें वायुमंडल के रेडिएशन, तापमान आदि को नापा जाता है.
पेरिस में हुई क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस में दुनियाभर के देशों ने तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर रोकने का वादा किया था. इसके लिए कार्बन उत्सर्जन कम करने का वादा किया था. लेकिन अभी जो स्थिति है, उसके हिसाब से इस सदी के अंत तक तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा.