scorecardresearch
 

राजिम में पखवाड़े भर चलने वाला कुंभ शुरू

छत्तीसगढ़ के राजिम में पखवाड़े भर चलने वाला कुंभ शुरू हो गया है. इस कुंभ में शामिल होने देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक राजिम नगरी पहुंच रहे हैं. पैरी, सोंढूर और महानदी के संगम पर स्थित राजिम को मध्य-भारत का प्रयाग भी कहा जाता है.

Advertisement
X
राजीव लोचन मंदिर
राजीव लोचन मंदिर

छत्तीसगढ़ के राजिम में पखवाड़े भर चलने वाला कुंभ शुरू हो गया है. इस कुंभ में शामिल होने देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक राजिम नगरी पहुंच रहे हैं. पैरी, सोंढूर और महानदी के संगम पर स्थित राजिम को मध्य-भारत का प्रयाग भी कहा जाता है.

देश के पांचवें कुंभ के नाम से प्रचलित राजिम कुंभ ने देश-विदेश में छत्तीसगढ़ को विशेष पहचान दी है. राजिम कुंभ में देश भर से आए अखाड़ों के महंत और साधुओं के दर्शन और पुण्य स्नान के लिए हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.

प्रवचनकर्ता पंडित अजय शर्मा कहते हैं कि जिस प्रकार समुद्र के अंदर स्थित त्रिशूल की नोक पर बनारस टिका है, जैसे शंख पर द्वारिका नगरी स्थापित है उसी प्रकार पांच कोसी सरोवर के बीचों बीच स्थित कमल पर राजिम नगरी स्थापित है.

प्रयाग की तरह तीन नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण राजिम को स्नान, दान और श्राद्ध के लिए बनारस के सामान पवित्र माना जाता है. राजिम में नदी के बीचों-बीच कुलेश्वर महादेव का मंदिर है जो देश भर के शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है.

Advertisement

क्षेत्र के प्रकांडी ब्राम्हण धुसू दीवान बताते हैं कि पौराणिक मान्यता के अनुसार धरती को मृत्युलोक में स्थापित करने के बाद ब्रह्मा जी बेहद चिंतित थे कि धरती और इसमें रहने वाले लोगों की असुरों से रक्षा कैसे की जाए. सभी देवता ब्रह्मा के पास इस समस्या के समाधान के लिए पहुंचे थे. पर किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

इसके बाद सभी ने परमात्मा का स्मरण किया और उनके सामने पांच कोस का, खुशबूदार, रस टपकता हुआ कमल का एक फूल प्रकट हुआ. उसके चारों तरफ सैकड़ों भंवरे झूमे रहे थे. कमल को देख ब्रह्मा बेहद प्रसन्न हुए. उन्होंने कमल को कहा कि 'हे पद्म, तुम धरती पर जहां गिरोगे वहीं ईश्वर का वास होगा और उस स्थान पर मनुष्यों के सभी कष्टों का अंत होगा.

इसके बाद कमल धरती की ओर बढ़ा और जहां गिरा वहां से पांच कोस के क्षेत्रफल में व्याप्त हो गया. उस पांच कोस भूखंड के स्वामी राजीव लोचन हैं. कमल की पांचों पंखुड़ियों पर पांच भू-पीठ विराजित हैं जिन्हें पंच कोशी धाम कहा जाता है.

इसीलिए कहा जाता है कि यह नगरी पद्म यानी कमल के फूल पर स्थापित है और भगवान राजीवलोचन पर कमल चढ़ाने का रिवाज है, जिसके चलते राजिम को पद्मावती पुरी भी कहा जाता है. गया, प्रयाग और बनारस के सामान ही राजिम में मोक्ष की प्राप्ति होती है. श्रीमद् राजीवलोचन महात्म्य के अनुसार राजिम बैकुंठ के सामान पवित्र है और काशी में निवास करने वाले सभी देवताओं का यहां भी निवास है.

Advertisement

आस-पास के ग्रामीणों का मानना है कि राजिम स्थित पद्म सरोवर में स्नान करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और शरीर में कोई रोग हो तो वह भी दूर हो जाता है. कहा जाता है कि वर्षों पहले सामंत वीरवल जयपाल यहां के राजा थे, उन्हें भगवान विष्णु ने सपने में दर्शन देकर कहा कि वह चाहते हैं कि महानदी के किनारे उनका एक मंदिर बनवाया जाए.

राजा ने मंदिर का निर्माण करवा दिया, लेकिन उनके सामने समस्या थी कि भगवान की प्रतिमा कहां से लाई जाए. इस बीच क्षेत्र में रहने वाली राजिम नाम की एक तेली महिला को भगवान विष्णु की आधी मूर्ति मिली. राजा उसके पास गए और कहा कि उसे मिली प्रतिमा को वह मंदिर में स्थापित करना चाहते हैं.

इस पर महिला ने शर्त रखी कि वह मूर्ति तभी देगी जब उसका नाम भगवान के नाम के साथ जोड़ा जाएगा. मूर्ति की आंखें (लोचन) बेहद सुंदर थी जिस कारण मंदिर का नाम 'राजिमलोचन' और क्षेत्र का नाम राजिम पड़ गया. राजिमलोचन को अब राजीवलोचन कहा जाता है पर ग्रामीण अभी भी इसे इसके पुराने नाम से ही जानते हैं.

Advertisement
Advertisement