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Premanand Maharaj: शादी के कार्ड छपवाने में लोग करते हैं ये बड़ी गलती, प्रेमानंद महाराज ने चेताया, जानें और करें सुधार

Premanand Maharaj: प्रेमानंद महाराज के अनुसार, आजकल लोग ट्रेंड वगैरह को देखकर शादी के कार्ड पर भगवान के नाम या चित्र चित्रित करवा देते हैं जो कि बहुत ही अशुभ होता है. उनका कहना है कि शादी के कार्ड का उपयोग सीमित समय के लिए होता है और बाद में ये कार्ड फेंक दिए जाते हैं, जिससे भगवान की छवियों का अपमान होता है.

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वृंदावन के महाराज प्रेमानंद महाराज (Photo: Instagram/@Bhajanmargofficial)
वृंदावन के महाराज प्रेमानंद महाराज (Photo: Instagram/@Bhajanmargofficial)

Premanand Maharaj: इस समय शादी-ब्याह का सीजन जोरों-शोरों पर हैं. लोग रिश्तेदारों और दोस्तों को अपनी इन खुशियों में शामिल करने के लिए शादी के कार्ड छपवाते हैं. पारंपरिक हिंदू परिवार आज भी इन कार्डों पर भगवानों की तस्वीरें छपवाते हैं. शादी के कार्ड पर भगवान की तस्वीरें छापने की परंपरा भले ही शुभ मानकर शुरू की गई हो, लेकिन आजकल यह अनजाने में अनादर का कारण बन रही है. इसलिए, इन कार्डों पर देवी-देवताओं की छवियां नहीं छापनी चाहिए. इसी से जुड़े प्रश्न का उत्तर वृंदावन-मथुरा के बाबा प्रेमानंद महाराज ने दिया. एक भक्त ने महाराज जी से ये सवाल किया कि क्या हमें शादी के कार्ड पर भगवान के चित्र चित्रित करवाने चाहिए.

न करें ये एक गलती

इस बात का प्रेमानंद महाराज ने उत्तर देते हुए कहा कि, 'शादी का कार्ड एक सीमित समय के लिए उपयोग होने वाली वस्तु है. शादी का कार्यक्रम पूरा होते ही यह कागज लोगों के लिए सिर्फ रद्दी बन जाता है, कभी कूड़े में फेंक दिया जाता है, तो कभी घर के किसी कोने में पड़ा-पड़ा खराब हो जाता है. ऐसे में उस पर छपी भगवान की छवि का अपमान होना स्वाभाविक है. भगवान का हमेशा सम्मान करना चाहिए, किसी भी रूप में उनका अपमान नहीं करना चाहिए. इसलिए निमंत्रण पत्र पर उनका उपयोग करना उचित नहीं माना जाता है.'

कार्ड पर होनी चाहिए सही जानकारी

आगे प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि शादी के कार्ड पर सिर्फ दूल्हा-दुल्हन का नाम, विवाह की तिथि और स्थान जैसी आवश्यक जानकारी ही होनी चाहिए. लेकिन आजकल कई लोग इन कार्डों पर भगवान शिव-पार्वती, राधा-कृष्ण या सिया-राम के विवाह रूप जैसी पवित्र छवियां छाप देते हैं.'

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'लेकिन, कार्ड का उपयोग सिर्फ एक बार होता है जिसके बाद इन शादी के कार्डों को रद्दी में फेंक दिया जाता है. ऐसे में उस पर छपी देवताओं और भगवान की तस्वीरें अपमान का रूप ले लेती हैं, क्योंकि पवित्र छवियों को कूड़ेदान में डालना या पैरों तले आ जाना हमारी परंपरा के विपरीत माना गया है. इसी वजह से समाज में यह एक तरह की विकृति मानी जा रही है कि हम श्रद्धा से जुड़ी दिव्य छवियों को भी कूड़े में फेंक रहे हैं.'

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