
Jagannath Rath Yatra 2025: ओडिशा के पुरी धाम की रथ यात्रा की तैयारियां पूरे जोरों-शोरों पर हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है. इस तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर तक यात्रा करते हैं. इस दौरान लाखों श्रद्धालु रथ खींचने और भगवान के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ते हैं. इस यात्रा की तैयारी कुछ खास तिथियों पर ही की जाती है. जैसे- रथ बनाने के लिए लकड़ी की कटाई वसंत पंचमी के शुभ दिन से शुरू होती है. मकर संक्रांति के शुभ दिन पर हर साल रथ निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. फिर रथ यात्रा से ठीक 15 दिन पहले ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान बीमार पड़ जाते हैं.
दरअसल, पूरे जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ का 11 जून यानी कल प्राकट्य उत्सव है और कल ही उनकी स्नान यात्रा भी है. इसी स्नान यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ जी 15 दिनों के लिए बीमार पड़ जाते हैं और फिर वो किसी भक्त को दर्शन नहीं देते हैं. बल्कि, आने वाले इन 15 दिनों तक वो सिर्फ भक्तों से अपनी सेवा करवाते हैं.
क्या होती है भगवान जगन्नाथ की स्नान यात्रा?
हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान की स्नान यात्रा होती है जिसे स्नान उत्सव, स्नान पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दौरान भगवान बलभद्र, जगन्नाथ जी और सुभद्रा जी मंदिर परिसर से बाहर आते है और सारे भक्तों को दर्शन देते हैं. उसके बाद उनको स्नान कराया जाता है. इस स्नान की खास बात ये है कि ये स्नान 108 स्वर्णिम घड़ों से कराया जाता है. उन घड़ों में जो जल भरा होता है वो सारे तीर्थों का मिश्रित जल होता है और उसमें अलग अलग तरीके के द्रव्य मिलें होते हैं जैसे- चंदन, गुलाब, घी, दही आदि. वहीं, सुभद्रा जी का स्नान अलग से कराया जाता है. फिर जैसे ही स्नान पूरा होता है, भगवान को एकदम राजा की तरह सजाया जाता है.
उसके बाद भगवान जगन्नाथ जी 15 दिनों के लिए बीमार हो जाते है. भगवान के 15 दिन बीमार पड़ने वाले इस पूजा को अनासर काल कहा जाता है. पंचांग के अनुसार, यह अनासर काल ज्येष्ठ पूर्णिमा से शुरू होकर, इसका समापन आषाढ़ अमावस्या पर होता है. लेकिन, इतने शुभ स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ क्यों बीमार पड़ जाते हैं, चलिए जानते हैं इसके पीछे का पौराणिक कारण?
क्यों बीमार पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ?
दरअसल, भगवान जगन्नाथ के बीमार होने से एक महत्वपूर्ण कथा जुड़ी हुई है जो बहुत ही दिलचस्प है. पुरी में माधव दास नामक एक भक्त रहते थे, जो भगवान जगन्नाथ की पूजा करते और उन्हीं के प्रसाद से अपना जीवन व्यतीत करते थे. एक बार माधव दास को बहुत ही तेज बुखार हो गया था. लेकिन, फिर भी उन्होंने ऐसी स्थिति में भक्ति में कोई कमी नहीं आने दी. लोग उन्हें वैद्य के पास जाने की सलाह भी देते थे, लेकिन वह कहते, 'जब भगवान मेरा ख्याल रख रहे हैं, तो मुझे किसी और की जरूरत नहीं.' फिर, एक दिन वह ज्यादा बीमार होने की वजह से अचानक बेहोश हो गए. तब स्वयं भगवान जगन्नाथ उनके पास आए और उनकी सेवा करने लगे.
माधव दास के ठीक होने पर, जब उन्होंने भगवान को अपनी सेवा करते देखा, तो वह भावुक हो गए और पूछा कि आप मेरी सेवा क्यों कर रहे हैं? तब भगवान ने उत्तर देते हुए कहा कि, 'मैं अपने भक्तों का साथ कभी नहीं छोड़ता, लेकिन कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है. तुम्हारी बीमारी के 15 दिन बाकी हैं, उसे मैं अपने ऊपर ले लेता हूं.' आश्चर्य की बात यह है कि उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी. उस दिन से यह परंपरा आजतक चली आ रही है और हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान बीमार पड़ जाते हैं. उसके बाद वह 15 दिन के लिए एकांतवास में चले जाते हैं, जिसे 'अनासर' कहते हैं. फिर, भगवान जगन्नाथ के ठीक होने के बाद नैनासर उत्सव मनाया जाता है जिसे रथयात्रा कहते हैं.
क्या होती है अनासर पूजा?
भगवान जगन्नाथ के बीमार होने की 15 दिनों की अवधि के दौरान मंदिर में देवताओं की चित्रों की उपासना की जाती है. जिसमें भगवान जगन्नाथ को विष्णु, बलभद्र को शिव और सुभद्रा को आदिशक्ति के रूप में दर्शाया जाता है. उसके बाद अगली सुबह मंगला आरती, दीप जलाने, दंतधौती, स्नान और वस्त्र अलंकरण जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं.
उसके बाद, अनासर के दौरान ही आषाढ़ कृष्ण पंचमी की तिथि पड़ती है जिसे 'अनासर पंचमी' के रूप में मनाया जाता है. इस दिन तीनों भगवान को 'फुलुरी तेल' लगाया जाता है, जो स्नान के कारण हुए बुखार से मुक्ति दिलाने के लिए होता है. यह तेल सुगंधित फूलों, चंदन, कपूर, जड़ी-बूटियों और तिल के तेल से बनाया जाता है. इस खास तेल को बनाने की तैयारी रथयात्रा के पांचवें दिन 'हेरा पंचमी' के दिन से शुरू होती है और इसे जमीन के नीचे सुरक्षित रखा जाता है. अनासर पंचमी के बाद, भगवान के ठीक होने पर 'नव जौबाना दर्शन' होते हैं और जिसके अगले दिन वह रथयात्रा के लिए तैयार होते हैं.