Ganesh visarjan 2024: हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से चतुर्दशी तिथि तक भगवान गणेश को समर्पित पर्व मनाया जाता है. चतुर्दशी तिथि पर गणेश विसर्जन के साथ ही इस महोत्सव का समापन हो जाता है. इस दिन भक्त 'गणपति बप्पा मोरिया' के जयकारों के साथ विघ्नहर्ता गणेश की प्रतिमा को विसर्जित करते हैं. और मंगलकामनाओं के साथ गणेश जी को विदा करते हैं. आपने गणेश विसर्जन के धार्मिक महत्व के बारे में तो कई बार सुना होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाल गंगाधर तिलक ने गणेश विसर्जन के सहारे अंग्रेजों की हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने की योजना बनाई थी.
गणेशोत्सव के बहाने देश को एकजुट किया
बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को एक सार्वजनिक और सामूहिक रूप में मनाने की परंपरा की शुरुआत की थी. इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन काल में भारतीयों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा देना था. इस पर्व के जरिए लोगों को एकजुट करने के लिए तिलक को बहुत मुश्किलों से गुजरना पड़ा था.
तिलक ने 1893 में पहली बार गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप में आयोजित किया. इससे पहले गणेशोत्सव केवल घरों में ही मनाया जाता था. उन्होंने महसूस किया कि भगवान गणेश की पूजा एक ऐसा माध्यम बन सकती है, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों को इकट्ठा कर स्वतंत्रता आंदोलन को जन-आंदोलन में बदला जा सके.
लेकिन जाति और धर्म के आधार पर बंटे भारतीयों को स्वतंत्रता की इस लड़ाई में एकत्रित करना आसान काम नहीं था. तब तिलक ने सोचा कि क्यों न गणेशोत्सव को घरों से निकालकर सार्वजनिक स्थल पर मनाया जाए ताकि इसमें हर जाति के लोग शिरकत कर सकें. तिलक की यह योजना काम कर गई. इसके बाद तिलक ने इस त्योहार को एक राष्ट्रवादी आंदोलन का मंच बना दिया.
उन्होंने गणेश विसर्जन के समय राष्ट्र भक्ति के नारे, गीत और भाषणों के माध्यम से स्वतंत्रता की भावना को प्रकट करने का काम किया. उस दिन से ही गणेश उत्सव का अंतिम चरण गणेश विसर्जन इतने सार्वजनिक और बड़े स्तर पर आयोजित किया जाने लगा. यह कार्यक्रम लोगों को एक साथ लाने, सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता फैलाने का एक महत्वपूर्ण अवसर बन गया.