Dussehra 2025: 2 अक्टूबर यानी कल दशहरा का त्योहार मनाया जाएगा. दशहरा भारत का ऐसा त्योहार है जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में हर साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इसे विजयादशमी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध करके धर्म और सत्य की स्थापना की थी. मान्यता है कि रावण बहुत ही विद्वान और शक्तिशाली राजा था, लेकिन उसके अहंकार और सीता हरण जैसे पाप ने उसे विनाश की ओर धकेल दिया. इसी कारण दशहरे के दिन बुराई के अंत और सद्गुणों की जीत का संदेश दिया जाता है.
इस दिन पूरे देश में जगह-जगह रामलीला का आयोजन होता है और शाम के समय रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है. लोग इसे देखकर यही सीख लेते हैं कि चाहे बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है. दशहरा न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह त्योहार हमें यह भी याद दिलाता है कि जीवन में अहंकार और अन्याय से दूर रहना चाहिए. साथ ही यह दिन नए कामों की शुरुआत और शुभ कार्य करने के लिए भी बेहद शुभ माना जाता है.
क्या है रावण के 10 सिर का मतलब?
हम अक्सर जब भी दशहरा पर रावण का पुतला तैयार करते हैं तो उसमें रावण के 10 सिर होते हैं. रावण को 10 सिर होने के कारण उसको दशग्रीव के नाम से भी जाना जाता है. कई विद्वान दशानन के इन सिरों को 10 बड़ी कुरीतियों से भी जोड़ते हैं.
1. काम (वासना)
रावण की सबसे बड़ी गलती थी- सीता माता के प्रति उसकी वासना. यही उसकी बर्बादी का कारण बनी. रामायण बताती है कि अगर रावण ने अपनी वासना पर काबू रखा होता तो उसका अंत कभी न होता.
2. मद (घमंड)
रावण को अपनी शक्ति, विद्या और साम्राज्य पर इतना घमंड था कि उसे लगा कोई उसे हरा ही नहीं सकता. यही घमंड उसे विनाश की ओर ले गया.
3. अहंकार
रावण का अहम इतना बड़ा हो गया था कि वह गलत और सही का फर्क ही भूल गया था. उसकी सोच यही थी कि वही सर्वोच्च है और सबको उसी के आदेश पर चलना होगा.
4. मोह (लगाव)
रावण का अपने महल, परिवार और ऐश्वर्य से अत्यधिक लगाव था. इस मोह में उसने कई बार गलत फैसले लिए और अपने ही पतन की नींव रखी.
5. लोभ (लालच)
लालच इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी होती है. रावण का लालच था सीता को पाना. यही लालच उसके विनाश की सबसे अहम वजह बनी.
6. क्रोध (गुस्सा)
रावण को जब उसकी इच्छा पूरी नहीं होती थी, तो वह बेकाबू हो जाता था. उसका क्रोध इतना तीव्र था कि वह सोचने-समझने की शक्ति खो देता था.
7. मात्सर्य (ईर्ष्या)
रावण दूसरों की सफलता और सुंदरता से जलता था. इसी ईर्ष्या ने उसे गलत रास्ते पर धकेला और उसने सीता का हरण किया.
8. जड़ता (संवेदनहीनता)
रावण को दूसरों की भावनाओं और कष्ट की कोई परवाह नहीं थी. उसके लिए सिर्फ उसका स्वार्थ और शक्ति मायने रखती थी. यही संवेदनहीनता उसे क्रूर बना गई.
9. घृणा (नफरत)
उसके मन में दूसरों के प्रति द्वेष और नफरत भरी हुई थी. यही घृणा उसे दूसरों का अपमान करने और उन्हें नीचा दिखाने की ओर ले जाती थी.
10. भय (डर)
रावण बाहर से कितना भी शक्तिशाली था, लेकिन भीतर से वह डर में जीता था. उसे डर था कि कहीं उसका ऐश्वर्य, उसकी शक्ति और उसकी उपलब्धियां छिन न जाएं. यही भय उसे गलत फैसले लेने के लिए मजबूर करता रहा.