दिवाली पर लक्ष्मी–गणेश की पूजा का विशेष महत्व होता है. मां लक्ष्मी धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं, वहीं भगवान गणेश विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता हैं. इसी कारण दिवाली की रात इन दोनों की पूजा की जाती है ताकि जीवन में धन, ज्ञान और सफलता तीनों का आशीर्वाद मिले. इस वर्ष दिवाली 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी. दिवाली के दिन घरों में विशेष रूप से सफाई, सजावट और दीप जलाए जाते हैं. परंपरा के अनुसार, बहुत से लोग दिवाली के अवसर पर नई लक्ष्मी–गणेश की मूर्तियां लाते हैं और उन्हें विधिवत स्थापित कर पूजा करते हैं. लेकिन एक प्रश्न अक्सर लोगों के मन में आता है कि पुरानी मूर्तियों का क्या करें? या उन्हें फेंकना सही है?
धातु की मूर्तियों के संबंध में नियम
यदि लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां सोना, चांदी, तांबा या पीतल जैसी किसी धातु से बनी हों, तो ऐसी मूर्तियों को हर साल बदलने की आवश्यकता नहीं होती. ऐसी मूर्तियां लंबे समय तक पूजनीय मानी जाती हैं, क्योंकि धातु को शुद्ध और स्थायी तत्व समझा जाता है. इसलिए, दिवाली के दिन इन्हें केवल गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराकर, कपड़े से पोंछकर और सुगंधित फूलों से सजाकर पूजा करनी चाहिए. यह मूर्ति घर की स्थायी लक्ष्मी–गणेश मानी जाती है.
मिट्टी की मूर्तियों का नियम
यदि पूजा की मूर्तियां मिट्टी की बनी हों, तो परंपरा के अनुसार हर दिवाली नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. मिट्टी की मूर्तियां नश्वरता और नए जीवन का प्रतीक मानी जाती हैं. जैसे हर साल दीप जलाने से घर में नई रोशनी आती है, वैसे ही मान्यता है कि नई मूर्तियां लाने से जीवन में नई ऊर्जा और शुभता का संचार होता है.
पुरानी मूर्तियों का विसर्जन कैसे करें
पुरानी मूर्तियों को कभी भी या कहीं भी फेंकना या अपवित्र स्थान पर रखना अनुचित माना जाता है. पूजा के बाद पुरानी मूर्तियों को श्रद्धा के साथ किसी नदी, तालाब या साफ बहते जल में विसर्जित कर दें. मूर्ति विसर्जन के लिए सोमवार का दिन बेहद शुभ माना जाता है. मंगलवार को कभी भी मूर्ति विसर्जन ना करें. सूर्यास्त के बाद मूर्ति को नदी में प्रवाहित न करें, किसी गंदी जगह पर पुरानी मूर्तियों को भूल कर भी न छोड़ें.