छठ का चार दिवसीय महापर्व 25 अक्टूबर से शुरू हो रहा है. कल नहाय खाय से इसकी शुरुआत होगी, और यह उदय अर्घ्य तक मनाया जाएगा. छठ का दूसरा दिन जिसे खरना कहा जाता है, इस दिन गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनता है. ये प्रसाद मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से ही बनाया जाता है. किसी दूसरी लकड़ी से यह प्रसाद नहीं बनाया जाता, लेकिन इसके पीछे की वजह क्या है? जानते हैं परंपरा के पीछे का धार्मिक कारण
खरना का महत्व
छठ पूजा का दूसरा दिन यानी खरना विशेष महत्व रखता है. खरना का अर्थ 'शुद्धता' है. खरना के दौरान व्रती स्वच्छता और पवित्रता का पूरा ध्यान रखते हैं. ऐसी मान्यता है कि खरना के दिन ही छठी मैया घर में प्रवेश करती हैं. खरना का दिन पूर्ण रूप से भक्ति और समर्पण का प्रतीक है, इस दिन सूर्य देव और छठी मैया की कृपा मिलती है.
खरना की शाम को मिट्टी का नया चूल्हा तैयार किया जाता है. इस चूल्हे में आम की लकड़ियां ही इस्तेमाल की जाती हैं. ऐसी मान्यता है कि आम की लकड़ी शुद्ध और सात्विक होती है. यह भी मान्यता है कि छठी मैया को आम का पेड़ बहुत प्रिय है. इसलिए छठ के मौके पर आम के पेड़ की लकड़ियों से प्रसाद बनाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है. परंपरा के मुताबिक अन्य लकड़ी (जैसे पीपल या बरगद) का धुआं अशुद्ध होता है, जो मैया को अप्रसन्न कर सकता है.
इस तरह की जाती है पूजा
खरना के दिन व्रती महिलाएं मिट्टी के नए चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाती हैं. चूल्हे में आम की लकड़ी जलाकर पीतल के बर्तन में गुड़, चावल और दूध की खीर तैयार की जाती है. इसके साथ ही गेहूं के आटे से बनी रोटी या पूड़ी, ठेकुआ आदि भी बनाए जाते हैं. इस खीर का भोग छठी मैया को लगाया जाता है और फिर इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. इसके बाद से ही 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है.