आज पारसी समुदाय अपना नववर्ष सेलिब्रेट कर रहा है जिसे नवरोज भी कहते हैं. इस दिन से ही इरानियन कैलेंडर के नए साल की शुरुआत होती है. पारसी समुदाय के नववर्ष को पतेती, जमशेदी नवरोज और नवरोज जैसे कई नामों से पहचाना जाना जाता है. आइए आपको इसके इतिहास और परंपरा के बारे में बताते हैं.
पारसी न्यू ईयर का इतिहास- ऐसा कहा जाता है कि नवरोज, फारस के राजा जमशेद की याद में मनाया जाता है. करीब तीन हजार साल पहले पारसी समुदाय के योद्धा जमशेद ने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी, जिसे शहंशाही कैलेंडर भी कहा जाता है. ग्रेगोरी कैलेंडर के अनुसार, नवरोज वसंत ऋतु के दिन मनाया जाता है जब दिन और रात बराबर होते हैं. ऐसी मान्यताएं हैं कि जमशेद ने दुनिया को एक सर्वनाश से बचाया था जो सर्दी के रूप में लोगों की जान लेने आई थी.
पारसी न्यू ईयर मनाने की पंरपरा- गुजरात और महाराष्ट में पारसी समुदाय की बड़ी तादाद रहती है जहां इस त्योहार को बड़ी उत्सुकता के साथ मनाया जाता है. इस दिन लोग एक दूसरे को गिफ्ट्स और ग्रीटिंग्स भेंट करते हैं और शुभकमानाएं देते हैं. वे इस दिन घर की साफ-सफाई करते हैं. लाइट्स और रंगोली से घर को सजाते हैं और अतिथि सत्कार करते हैं.
पारसी न्यू ईयर के दिन लोग घरों में मोरी दार, पटरानी मच्छी, हलीम, अकूरी, फालूदा, धनसक, रवो और केसर पुलाव जैसी पारंपरिक डिशेज घर में बनाते हैं. इस दिन पारसी मंदिर अगियारी में भी विशेष प्रार्थनाएं होती हैं. लोग मंदिर में जाकर फल, चंदन, दूध और फूलों का चढ़ावा देते हैं.
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