हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 48 सीटों पर कब्जा जमाकर बीजेपी ने लगातार तीसरी बार राज्य की सत्ता हासिल कर ली. कांग्रेस को एक बार फिर झटका लगा है और पार्टी 37 सीटों पर सिमट गई. लेकिन ये झटका कांग्रेस के लिए इसलिए बड़ा माना जा रहा है क्योंकि इस बार हरियाणा में अपनी जीत को लेकर कांग्रेस आश्वस्त थी. उसे लग रहा था कि बीजेपी के खिलाफ राज्य में एंटी इनकमबेंसी है, जिसका फायदा उसे मिलेगा. पहलवान, जवान और किसान समेत कई मुद्दे भी कांग्रेस अपने पक्ष में मान रही थी. लेकिन नतीजे बिलकुल उलट आए. इंडिया टुडे की एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रीति चौधरी ने बताया कि आखिर क्यों और कैसे हरियाणा में कांग्रेस को ये झटका लगा है...
'बागियों', निर्दलों के प्रभाव को कम आंकना
हरियाणा के नतजे बताते हैं कि कांग्रेस राज्य में निर्दलियों और पार्टी से नाखुश लोगों को साधने में नाकाम रही. वह समझ नहीं पाई कि इसका असर उसे नतीजों में उठाना पड़ सकता है. ये अंदरूनी नाराजगी कांग्रेस के लिए भारी पड़ी.

कांग्रेस को ले डूबा 'ओवर कॉन्फिडेंस'
पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस लगभग ये मानकर चुनाव लड रही थी कि वो जीत हासिल कर चुकी है. इसलिए उसकी रणनीतियों में भी वो पैनापन नहीं दिखा. कांग्रेस का ये अति आत्मविश्वास ही उसपर भारी पड़ा. जिसके चलते कांग्रेस को एक बार फिर राज्य की सत्ता से बाहर होना पड़ा है.
गठबंधन नहीं करने का पड़ा असर
हरियाणा चुनाव में कांग्रेस में गठबंधन को लेकर भी खूब माथापच्ची देखने को मिली. एक तरफ समाजवादी पार्टी चाहती थी कि वो अहरीवाल बेल्ट में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़े जबकि आम आदमी पार्टी शहरी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी. लेकिन कई दौर की मीटिंग के बाद भी गठबंधन पर सहमति नहीं बन सकी. इसका असर नतीजों पर देखने को मिल रहा है. कई सीटें ऐसी हैं जिन्हें देखकर समझ आता है कि अगर गठबंधन होता तो कांग्रेस की कुछ और सीटें बढ़ सकती थी.
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टिकट बंटवारे पर भी 'सवाल'
हरियाणा में कांग्रेस ने जिस तरह से टिकट बांटे उसको लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने टिकट बंटवारे को लेकर जो रणनीति बनाई थी उससे अंदरूनी तौर पर काफी विरोध था. पार्टी के कार्यकर्ता इससे नाराज थे. इसका असर नतीजों पर देखने को मिला.
अंदरूनी कलह भी पड़ गई भारी
पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस की अंदरूनी कलह भी खुलकर सामने आई. बड़े नेताओं में भी मनमुटाव देखने को मिला, जिसके चलते कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी देखने को मिली.
'अहंकार' भी पड़ गया कांग्रेस पर भारी
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस में कई स्तर पर 'अहंकार' आ गया था. इसका असर भी नतीजों में देखने को मिला. पार्टी जमीनी रणनीति बनाने में नाकाम रही.
हुड्डा की छवि का ज्यादा इस्तेमाल
हरियाणा के पूरे चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने हुड्डा का ओवर प्रोजेक्शन किया. इसको लेकर दलित वोटर्स में नाराजगी देखने को मिली. वहीं, कांग्रेस इस चुनाव में स्थानीय मुद्दों के भरोसे ही रह गई जबकि राष्ट्रीय मुद्दों को जनता के सामने लाने में वो नाकाम रही.
'एक परिवार, एक जाति' पर फोकस
'एक परिवार, एक जाति' की राजनीति पर ध्यान केंद्रित करने के कारण पार्टी राज्य में व्यापक जनसमर्थन जुटाने में असफल रही. जाट राजनीति के चलते कांग्रेस अन्य समुदायों के गठबंधन को सही तरीके से पढ़ नहीं पाई, जिससे भाजपा को फायदा मिला.