बिहार विधानसभा चुनावों के पहले तक तेजस्वी के माई बाप फार्मूले की बहुत चर्चा थी. पर सीट बंटवारे के बाद देखने के बाद ऐसा लगता है कि आरजेडी से बाप तो विदा हो गया केवल एमवाई ही शेष रह गया . चूंकि बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति बहुत कुछ एक जैसी है. जिस तरह बिहार में लालू परिवार के आधिपत्य वाली कंपनी आरजेडी है ठीक उसी तरह उत्तर प्रदेश में मुलायम परिवार की आधिपत्य वाली पार्टी समाजवादी पार्टी है. एक बात और खास है कि दोनों ही पार्टियां अपने अपने राज्यों में बीजेपी के खिलाफ ताल ठोंककर खड़ी हैं.
बिहार चुनावों से ठीक पहले महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वाम दल, VIP आदि) में जातिगत समीकरणों को लेकर हलचल तेज है. इस बीच बिहार में अखिलेश यादव महागठबंधन का प्रचार करने जाने वाले हैं. अखिलेश यादव का PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) मॉडल, जो उत्तर प्रदेश में 2024 लोकसभा चुनावों में सपा-कांग्रेस गठबंधन को सफलता दिला चुका है, बिहार में तेजस्वी यादव के पारंपरिक MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को 'बूस्टर डोज' देने की कोशिश के केंद्र में है. लेकिन सवाल यह है कि क्या तेजस्वी का MY समीकरण महागठबंधन को लोकसभा चुनावों में मिली समाजवादी पार्टी वाली सफलता दिला सकेगा?
अखिलेश यादव का 2024 मॉडल बनाम तेजस्वी का 2025 मॉडल
सीट बंटवारे में यह स्पष्ट हो गया कि तेजस्वी यादव का MY-BAAP फॉर्मूला अब मुख्य रूप से एमवाई में बदल चुका है. बिहार में मुस्लिम (लगभग 17-18% आबादी) और यादव (14%) वोटों पर टिका है, जो बिहार की कुल आबादी का करीब 30-35% बनता है. आरजेडी ने करीब 51 यादवों और 18 मुस्लिम समुदाय को टिकट देकर यह दिखा दिया है कि उनके फार्मूले से BAAP (बहुजन-अगड़ा-आधी आबादी -पूअर) गायब हो चुका है. पर आरजेडी ने यह नहीं समझा कि 2020 चुनावों में यही फार्मूला महागठबंधन को 110 सीटों पर समेट दिया था. क्यों कि इस फार्मूले के चलते ही अगड़ी जातियों भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण – करीब 15-20%) का समर्थन नहीं मिला.
इसके उलट, अखिलेश का PDA मॉडल अधिक समावेशी है. पिछड़े (OBC 51%), दलित (16%), अल्पसंख्यक (17%) – जो यूपी में सवर्णों को भी आकर्षित कर 37% से अधिक टिकट वितरण के जरिए गठबंधन को मजबूत बनाया. बिहार में राहुल गांधी-तेजस्वी-अखिलेश की 'वोटर अधिकार यात्रा' (अगस्त 2025) इसी PDA को MY से जोड़ने की कोशिश थी, लेकिन MY की जड़ें इतनी गहरी हैं कि PDA का विस्तार मुश्किल हो रहा है.
हालिया टिकट वितरण में RJD ने 51 यादव उम्मीदवार उतारे (आबादी से ढाई गुना ज्यादा), लेकिन मुसलमानों को सिर्फ 12% सीटें (18 उम्मीदवार)। इससे EBC (27%) और सवर्ण वोट अलग हो सकते हैं. चिराग पासवान ने इसे 'जातिवाद' बताते हुए अपना MY (महिलाएं-युवा) फॉर्मूला पेश किया, जो NDA को फायदा पहुंचा रहा है.
अखिलेश को जैसी सफलता 2024 में मिली क्या वैसी ही सफलता तेजस्वी को मिलेगी
तेजस्वी ने 'MY-BAAP' (मुस्लिम-यादव, बहुजन-अगड़ा-आधी आबादी-पूअर) फॉर्मूला लॉन्च किया, जो PDA से प्रेरित था. पर जाति सर्वे (2023) के बाद 'आबादी के हिसाब से भागीदारी' नारे को भूल गए. यादवों को अतिरिक्त टिकट देकर EBC (कुशवाहा, कुर्मी) को नजरअंदाज किया, जो नीतीश कुमार से जुड़े हैं.
अखिलेश की PDA सफलता के पीछे यूपी में सवर्णों को शामिल कर BJP को हराना था. बिहार में इस फार्मूले को लागू करने की कोशिश ही नहीं हुई. तेजस्वी ने अपने टिकट वितरण में सवर्णों को बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया. जाहिर है कि कोई भी सवर्ण आरजेडी को वोट देने के पहले 10 बार सोचेगा. उसे याद आएगा लालू यादव का जंगल राज. जब जातीय हिंसा की आशंका से बहुत से सवर्ण परिवारों ने अपने बेटे-बेटियों को दूसरे राज्यों में पढने और कमाने खाने के लिए भेज दिया था.
अखिलेश ने लोकसभा चुनावों में गैर-यादव OBC (कुर्मी, मौर्य) को 30% टिकट दिए जबकि तेजस्वी 15% पर ही अटक गए. जाहिर है कि तेजस्वी पर यादववाद का ठप्पा लगना तय है.
तेजस्वी वही गलती कर रहे जो अखिलेश 2024 के पहले कर रहे थे
2024 के लोकसभा चुनावों के पहले तक अखिलेश यादव भी कमोबेश वही गलती कर रहे थे जो तेजस्वी इस बार कर रहे हैं. अखिलेश यादव ने 2017 का विधानसभा चुनाव, 2019 का लोकसभा चुनाव और 2022 का विधानसभा चुनाव इन्हीं गलतियों की वजह से हारते रहे. पर 2024 में रणनीति बदलते ही उन्हे सफलता मिलने लगी. 2024 में अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी से यादवों को सिर्फ 5 टिकट दिया. जो कुल सीटों का मात्र 18 प्रतिशत था.यह उत्तर प्रदेश की जनता को पहला संदेश था कि समाजवादी पार्टी अगर जीतती है तो अब यादव राज नहीं आएगा.दरअसल यूपी-बिहार में बीजेपी यादव राज आने का डर दिखाकर समाजवादी पार्टी और आरजेडी को हराती रही है. तेजस्वी यादव ने कुल 51 टिकट यादवों को देकर सवर्णों और अतिपिछड़ों के एक तरह के डर का माहौल बना दिया.जाहिर है कि इस रणनीति के चलते आरजेडी को न सवर्णों के वोट मिलने वाले हैं और न ही अतिपिछड़ों के वोट महागठबंधन की ओर जाने वाले हैं.
यादव-मुस्लिम को आधे टिकट देकर मुसीबत मोल ले ली तेजस्वी ने
तेजस्वी यादव ने 2025 बिहार विधानसभा के लिए RJD के 144 घोषित उम्मीदवारों में यादव ~36% (51) और मुस्लिम ~12% (18) को टिकट देकर कुल ~48% सीटें MY कोर को सौंप दीं. यादव 14% + मुस्लिम 17% = 31%. मतलब साफ है कि ढाई गुना ओवर-रिप्रेजेंटेशन. जाहिर है कि EBC (27%), अति-पिछड़ा दलित (16%), सवर्ण (15%) नाराज होंगे ही. यही महागठबंधन की कमजोर कड़ी बन जाता है और NDA के लिए एक मौका.
बिहार में EBC (कुशवाहा, कुर्मी, धानुक) करीब 27% वोट की हिस्सेदारी रखते हैं जो नीतीश का कोर वोट बैंक है. RJD ने 144 में सिर्फ 15-18 टिकट EBC को दिया है. कई ऐसी सीट हैं जो ईबीसी को देनी थी पर वहां यादव उम्मीदवार हैं. जैसे गोपालगंज में कुशवाहा ज्यादा हैं पर आरजेडी का उम्मीदवार यादव है. सीवान धानुक बहुल है पर वहां से पार्टी ने एक मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट दे दिया.
इसी तरह बिहार में दलित 16% के करीब हैं. जिसमें पासी करीब 5% हैं.आरजेडी ने पासी समुदाय को केवल 1 से 2 टिकट दिया है. जबकि 2024 लोकसभा चुनावों में अखिलेश ने पासी को 22% टिकट देकर बसपा से तोड़ने का प्रयास किया.पर इस तरह की रणनीति का महागठबंधन विशेषकर आरजेडी में पूर्णतया अभाव दिखा है.