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भक्ति- जीवन की मधुरता का अनुभव

Sadhguru article: अगर आप जागरूक और सचेतन हैं कि आपसे कहीं अधिक विशाल कोई चीज अभी कार्य कर रही है तो आप स्वाभाविक रूप से भक्त हैं. जब आप जागरूक हैं कि आपसे कहीं अधिक विशाल कोई चीज अभी आपके चारों ओर कार्य कर रही है तो कोई दूसरा तरीका नहीं है, आप भक्त होंगे.

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सद्गुरु
सद्गुरु

अगर आप अपने जीवन अनुभव को देखते हैं तो आपको जब भी कोई खुशी होती है, इससे फर्क नहीं पड़ता कि उसका प्रेरणास्रोत क्या था - हो सकता है कि आपने सूर्योदय देखा और आप खुशी से भर गए. हो सकता है कि आपने कोई संगीत सुना और आनंद विभोर हो गए. हो सकता है कि आपको कोई सफलता मिली और आप खुश हो गए- वह हमेशा आपके भीतर से ही आई होती है. वह आप पर कहीं और से नहीं बरसी होती है. तो खुशी का स्रोत आपके भीतर ही है. आप अपने जीवन में जिस भी अनुभव से गुजरते हैं, वह आखिरकार आपका ही बनाया हुआ है. अगर आप इस बारे में सचेतन हो सकें कि यह आपका बनाया है. सिर्फ तभी आप होने का मधुरतम तरीका चुनेंगे.

भक्ति अपनी भावनाओं को नकारात्मता से प्रसन्नता में रूपांतरित करने तरीका है. भक्ति एक प्रेम प्रसंग का कई गुना बढ़ा हुआ रूप है. अगर आप किसी आदमी या औरत के प्रेम में पड़ जाते हैं और वे आपकी उम्मीद के मुताबिक नहीं चलते तो वह रिश्ता अंततः मुश्किल में पड़ जाता है. इसीलिए लोगों ने ईश्वर को चुना. यह बस एक सीधा प्रेम प्रसंग है और आप कोई उत्तर की अपेक्षा नहीं कर रहे हैं. आपका जीवन अत्यंत सुंदर हो जाता है क्योंकि आपकी भावना बहुत मधुर बन गई है. उस मधुरता के जरिए व्यक्ति विकास करता है. भक्ति होने का न सिर्फ मधुरतम तरीका है, बल्कि यह बुद्धिमत्ता का सर्वोच्च रूप भी है.
 
आम तौर पर, लोग बुद्धि की तुलना में भावना को हेय दृष्टि से देखते हैं. जो लोग सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं, वे भक्ति के किसी भी रूप से हमेशा दूर रहने की कोशिश करते हैं. लेकिन अब लोग भावनात्मक बुद्धिमत्ता की बात कर रहे हैं क्योंकि भावना में कई तरह से बुद्धि से अधिक तीव्र होने की काबिलियत है. बुद्धि में एक खास ठंडापन और पैनापन होता है लेकिन भावना बस हर चीज को गले लगा सकती है. बुद्धि जीवन के टुकड़ों को जान सकती है, भक्ति जीवन की पूर्णता को जान सकती है. जीवन के अनुभव और संपूर्ण जीवन के बोध के संदर्भ में, एक भक्त जो जानता है, उसे एक बौद्धिक इंसान कभी नहीं छुएगा.
 
भक्ति और भ्रम के बीच की रेखा

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लोग भक्ति को ऐसी चीज समझते हैं जिसे वे विकसित करके करते हैं. विकसित की हुई भक्ति भयंकर चीज है. आप भक्ति को विकसित नहीं कर सकते क्योंकि भक्ति और भ्रम के बीच की रेखा बहुत बारीक है. जब भी आप किसी चीज से अभिभूत हो जाते हैं, अगर आप किसी चीज को खुद से कहीं अधिक विशाल देखते और अनुभव करते हैं तो आप स्वाभाविक रूप से उसके भक्त हो जाते है. यह विकसित की हुई भक्ति नहीं है. यह वो भक्ति है जो आपके अंदर स्वतः घटित हो रही है. इसे इसी तरह होना चाहिए. अगर आप भक्ति विकसित करने की कोशिश करते हैं, तब यह भक्ति कभी नहीं बनती. यह बस एक तरह का भ्रम या धोखा बन जाती है.

अभी, ज्यादातर लोगों के लिए, भक्ति ईश्वर से सौदा करने के बारे में है: ‘हे भगवान, मैं इस परियोजना में दस हजार रुपए लगाऊंगा; मुझे दस करोड़ रुपए मिलने चाहिए.’ आप किसी दूसरे के साथ ऐसा सौदा करने की कोशिश कीजिए, वे आपको खारिज कर देंगे! लेकिन आप सोचते हैं कि सृष्टिकर्ता इतना बेवकूफ है कि वो ऐसे सौदे में फंस जाएगा. यह भक्ति नहीं है. यह धोखा है.

भक्ति का मतलब मंदिर, मस्जिद, या चर्च जाना नहीं हैं और वहां किसी रस्म को एक खास तरीके से करना नहीं है. हो सकता है कि आप झुकते नहीं हैं, रस्म नहीं करते हैं, मंदिर में नहीं बैठते हैं, या कोई भी ऐसी आम चीज नहीं करते हैं जो तथाकथित भक्तों से अपेक्षित है. हो सकता है कि आप उनके जैसे कपड़े न पहनें, आपके कपड़ों पर भगवान का नाम न छपा हो, आपने कभी अपने मुंह से भगवान का नाम न लिया हो लेकिन अगर आप जागरूक और सचेतन हैं कि आपसे कहीं अधिक विशाल कोई चीज अभी कार्य कर रही है तो आप स्वाभाविक रूप से भक्त हैं. जब आप जागरूक हैं कि आपसे कहीं अधिक विशाल कोई चीज अभी आपके चारों ओर कार्य कर रही है तो कोई दूसरा तरीका नहीं है, आप भक्त होंगे.

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भक्ति सही परिप्रेक्ष्य पाने के बारे में है

जब आप सोचते हैं कि आप सब कुछ हैं तो आप भक्त नहीं हो सकते. जीवन की हकीकत यह है कि आप यहां बस एक छोटी सी घटना हैं और आपसे कहीं अधिक विशाल कोई चीज हमेशा कार्य कर रही है. ब्रह्माण्ड बहुत विशाल है. आप नहीं जानते कि यह कहां शुरू और कहां खत्म होता है. सैंकड़ों अरब आकाशगंगाएं हैं. इस विशाल ब्रह्माण्ड में यह सौर मंडल एक नन्हा सा कण है. अगर सौर मंडल कल गायब हो जाए तो ब्रह्माण्ड में उसका पता भी नहीं चलेगा. इस सौर मंडल के छोटे कण में, पृथ्वी और भी सूक्ष्म कण है. इस पृथ्वी के सूक्ष्म कण में, आपका शहर और भी सूक्ष्म-सूक्ष्म कण है. उस शहर में, आप एक बड़े आदमी हैं! यह परिप्रेक्ष्य की एक गंभीर समस्या है. ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि आपके अंदर कोई भक्ति नहीं है.

अगर आप उस विशालता की कल्पना नहीं कर सकते तो हबल टेलिस्कोप हर तरह की जबरदस्त तस्वीरें ले आया है जो इंटरनेट पर हैं. बस उन तस्वीरों को देखें और एहसास करें कि वह कितना अंतहीन है. या रात में बाहर जाएं, सारी लाइटें बंद करें और आसमान में देखें. आप नहीं जानते कि यह कहां से शुरू होता है या कहां समाप्त होता है और यहां आप एक घूमते ग्रह पर धूल के सूक्ष्म-सुपर-सूक्ष्म कण हैं. आप नहीं जानते कि आप कहां से आए हैं और कहां जाएंगे. तो आपके लिए एक भक्त होना बिलकुल स्वाभाविक होगा. आप जो भी चीज देखेंगे, उसके सामने आप झुक जाएंगे. अगर आप बस खुद को बाकी की सृष्टि के संदर्भ में देखें, तो होने का कोई दूसरा तरीका नहीं होगा.
 
भक्ति खुद को एक किनारे रखने की कला है. यह होशियारी की कला नहीं, बल्कि बेफिक्री की कला है. एक बार जब आपका व्यक्तित्व- आपक क्षुद्र सृजन- सृष्टिकर्ता की सृष्टि के शानदार नृत्य में आनंदपूर्वक विसर्जित हो जाता है तो आप एक भक्त बन जाते हैं. और एक बार जब भक्ति आती है, तो पूरा जगत आपके लिए खुल जाता है.

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