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CSP हिना खान vs RTI एक्टिविस्ट आशीष चतुर्वेदी: MP का बड़ा मानहानि विवाद, ₹50 करोड़ का केस 7 महीने से क्यों अटका?

CSP Hina Khan vs Ashish Chaturvedi: कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक कोर्ट फीस जमा नहीं की जाती, तब तक मुकदमे को विधिवत रूप से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. ऐसा लग रहा है कि दावा दाख़िल कर सुर्खियां बटोरने की कोशिश हुई, पर कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं की गई.

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CSP हिना खान और RTI कार्यकर्ता आशीष चतुर्वेदी.(File Photo:ITG)
CSP हिना खान और RTI कार्यकर्ता आशीष चतुर्वेदी.(File Photo:ITG)

मध्य प्रदेश के चर्चित RTI एक्टिविस्ट आशीष चतुर्वेदी पर ग्वालियर पुलिस की CSP हिना खान द्वारा दायर किया गया ₹50 करोड़ का मानहानि दावा अब प्रदेश का सबसे चर्चित मगर अटके हुए मामलों में से एक बन गया है. 28 मार्च 2025 को यह दावा दायर किया गया था, लेकिन सात महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद न तो अदालत में फीस जमा की गई और न ही कोई बयान या गवाही पेश की गई. 

कोर्ट के रिकॉर्ड्स के अनुसार, एक दर्जन से अधिक तारीखें लग चुकी हैं, लेकिन हर बार वादी पक्ष की गैरमौजूदगी या औपचारिक प्रक्रिया अधूरी रही है. कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट फीस जमा किए बिना मुकदमे को विधिवत रूप से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है.

विशेषज्ञों का मानना है कि यह दावा सुर्खियां बटोरने के लिए दायर किया गया था, लेकिन कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, जिससे मामले की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं. 

एक्टिविस्ट का आरोप- सच्चाई दबाने की साजिश
RTI कार्यकर्ता आशीष चतुर्वेदी का आरोप है कि यह मानहानि प्रकरण उनकी आवाज दबाने की एक सोची-समझी रणनीति है. चतुर्वेदी का दावा है कि उन्होंने पहले 'सेक्सटॉर्शन और एक्सटॉर्शन' जैसे गंभीर मामलों को उजागर किया था, जिसके बाद उन पर दबाव बनाने के लिए यह मानहानि केस और अन्य झूठे मामले दर्ज किए गए. उन्होंने कहा, "मेरे परिवार को परेशान किया गया, ताकि मैं चुप हो जाऊं. लेकिन मैं पारदर्शिता और सच्चाई की लड़ाई छोड़ने वाला नहीं हूं."

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कौन हैं हिना खान
CSP हिना खान यूनिवर्सिटी क्षेत्र ग्वालियर में पदस्थ हैं, पहले भी सुर्खियों में रही हैं. हाल ही में डॉ. भीमराव अंबेडकर मूर्ति विवाद की पृष्ठभूमि में सोशल मीडिया पर एडवोकेट अनिल मिश्रा के साथ उनकी बहस और 'जय श्रीराम' नारों को लेकर विवाद खड़ा हो गया था. 

यह मामला अब कानूनी विवाद से आगे बढ़कर सिस्टम बनाम नागरिक अधिकार का प्रतीक बन चुका है. फिलहाल यह देखना बाकी है कि यह मुकदमा प्रदेश के सबसे बड़े मानहानि दावे के रूप में इतिहास बनाएगा, या फीस जमा न होने के कारण एक अधूरा कानूनी दांव बनकर रह जाएगा.

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