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MP सरकार के खोखले वादों की सच्चाई... सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनें पड़ी हैं खाली और खराब, आदिवासी स्कूलों में तो बजट भी '0', खतरे में छात्राओं की सेहत

इस साल बजट सत्र में मध्य प्रदेश की मोहन सरकार के जनजातीय कार्य विभाग ने स्वीकार किया कि 2019 से 2025 तक आदिवासी क्षेत्रों में सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनों के लिए कोई बजट आवंटित नहीं किया गया.

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खाली पड़ी सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन. (फोटो: aajtak)
खाली पड़ी सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन. (फोटो: aajtak)

मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में छात्राओं की मासिक धर्म स्वच्छता को लेकर सरकार के बड़े-बड़े वादे अब धराशायी हो चुके हैं. सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनें, जिन्हें कभी भव्य समारोहों के साथ शुरू किया गया था, अब या तो खराब पड़ी हैं, खाली हैं या पूरी तरह गायब हैं. खासकर आदिवासी जिलों में यह संकट और गंभीर हो गया है, जहां सरकारी स्कूलों और छात्रावासों में मासिक धर्म स्वच्छता के लिए कोई बजट ही नहीं है.  
 
राजधानी भोपाल के सरोजिनी नायडू गवर्नमेंट गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल में करीब 1300 छात्राएं पढ़ती हैं, जहां एकमात्र वेंडिंग मशीन स्टाफ रूम में ताला बंद पड़ी है. शिक्षकों ने बताया कि स्कूल में चल रहे निर्माण कार्य के कारण मशीन को इंस्टॉल नहीं किया जा सका.

एक मशीन का जायजा लेने पर वह दिखने में ठीक लगी, लेकिन 5 रुपए का सिक्का डालने पर भी सैनिटरी पैड नहीं निकला. एक महिला टीचर ने स्वीकार किया कि मशीन लंबे समय से खराब है और कई बार टीचर अपनी व्यक्तिगत राशि से छात्राओं को पैड उपलब्ध कराते हैं. उप-प्राचार्या ने मशीन की जांच के बाद ही तकनीशियन को बुलाया.

जहांगीराबाद के गवर्नमेंट गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल में स्थिति और भी बदतर है. यहां 1500 से अधिक छात्राएं पढ़ती हैं, लेकिन एकमात्र वेंडिंग मशीन, जो एक एनजीओ ने दान की थी, धूल से अटी पड़ी है और पूरी तरह खराब है. महीनों से न तो इसकी मरम्मत हुई है, न ही इसे रिफिल किया गया है. कोई जवाबदेही तय नहीं है.

सरोजिनी नायडू स्कूल की वाइस प्रिंसिपल विदुषी गुप्ता ने कहा, ''निर्माण कार्य चल रहा था, इसलिए मशीन को सही जगह पर नहीं लगाया जा सका. यह खराब हो गई है, हमने इसे ठीक करने के लिए किसी को बुलाया है.''

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रेड क्रॉस फंड पर निर्भरता
सरकारी बजट के अभाव में कई स्कूल रेड क्रॉस सोसाइटी फंड पर निर्भर हैं, जो छात्रों से हर साल 20 रुपए की फीस के रूप में जमा होता है. इस फंड का एक हिस्सा शिक्षा विभाग को भेजा जाता है और बाकी स्कूल के पास रहता है.

टीचर इस सीमित राशि से सैनिटरी पैड खरीदते हैं, जो एक अस्थायी व्यवस्था मात्र है. जहांगीराबाद स्कूल की सीनियर टीचर नसरीन ने बताया, ''वेंडिंग मशीन लंबे समय से खराब है. हम रेड क्रॉस फंड और कभी-कभी एनजीओ के दान पर निर्भर हैं. जब कुछ नहीं मिलता, तो शिक्षक अपनी जेब से मदद करते हैं.''

आदिवासी इलाकों में गंभीर संकट
आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है, जहां सरकार दावा करती है कि वह विशेष प्रयास कर रही है. 2025 के बजट सत्र में जनजातीय कार्य विभाग ने स्वीकार किया कि 2019 से 2025 तक आदिवासी क्षेत्रों में सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनों के लिए कोई बजट आवंटित नहीं किया गया. छात्रावासों में रहने वाली छात्राओं को मासिक धर्म स्वच्छता के लिए प्रति माह केवल 45 रुपये दिए जाते हैं, जो स्वच्छता बनाए रखने के लिए पूरी तरह अपर्याप्त है.

आधिकारिक आंकड़े:-

शिवपुरी: 21 स्कूलों में 0 मशीनें

मंडला: 201 स्कूलों में 0 मशीनें

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शहडोल: 133 स्कूलों में 0 मशीनें

अलीराजपुर: 93 स्कूलों में 13 मशीनें

झाबुआ: 117 स्कूलों में 17 मशीनें

धार: 233 स्कूलों में 5 मशीनें

खरगोन: 155 स्कूलों में 4 मशीनें

बड़वानी: 147 स्कूलों में 14 मशीनें

सिवनी: 119 स्कूलों में 7 मशीनें

डिंडोरी: 131 स्कूलों में 20 मशीनें

अनूपपुर: 135 स्कूलों में 3 मशीनें

छात्राओं की पीड़ा: डर और अपमान
छात्राएं इस स्थिति से सबसे अधिक प्रभावित हैं. रजनी वर्मा (बदला हुआ नाम) की एक छात्रा ने कहा, ''जब पीरियड्स शुरू होते हैं, तो हम घबरा जाते हैं. कोई पैड उपलब्ध नहीं होता. हमें दाग लगने और दूसरों के तानों का डर रहता है.'' सरिका साबले ने बताया, ''यहां की मशीन महीनों से काम नहीं कर रही. अगर दोस्त मदद न करें, तो हमारे पास कुछ नहीं बचता. यह हमारी सेहत और आत्मविश्वास को प्रभावित करता है.''

सरकार का दावा: 58 करोड़ का फंड, लेकिन हकीकत अलग
अगस्त 2024 में मध्य प्रदेश सरकार ने दावा किया कि उसने कक्षा 6 से 12 की 1.93 करोड़ छात्राओं के लिए 58 करोड़ रुपए का फंड उनके बैंक खातों में ट्रांसफर किया है. यह राशि प्रति छात्रा 300 रुपये प्रतिवर्ष, यानी 25 रुपए प्रति माह के हिसाब से है. यह राशि एक पैक सैनिटरी पैड खरीदने के लिए भी पर्याप्त नहीं है, जबकि एक महीने की जरूरत के लिए 70 से 80 रुपए चाहिए.

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कांग्रेस ने बताया करोड़ों का घोटाला

कांग्रेस विधायक विक्रांत भूरिया ने इस पहल को 'करोड़ों का घोटाला' करार दिया. उन्होंने कहा, ''राज्य का दावा है कि छात्रावासों में स्वच्छता के लिए प्रति छात्रा 45 रुपए दिए जा रहे हैं, लेकिन आदिवासी क्षेत्रों में वेंडिंग मशीनों के लिए कोई बजट नहीं है. स्कूलों में बुनियादी स्वच्छता व्यवस्था का अभाव है.'' भूरिया के अनुसार, स्वच्छता सुविधाओं और शौचालयों की कमी के कारण कक्षा 8 के बाद 3.3 लाख से अधिक छात्राएं स्कूल छोड़ देती हैं.

सरकार का बचाव, लेकिन जमीनी हकीकत उलट
मोहन यादव सरकार की महिला मंत्री कृष्णा गौर ने सरकार का बचाव करते हुए कहा, ''हमारी सरकार मुफ्त पैड और मशीनें लगाने के लिए प्रतिबद्ध है. अगर कहीं लापरवाही है, तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा, और फंडिंग दी गई है.'' लेकिन जमीनी स्तर पर खराब मशीनें, खाली डिस्पेंसर और बजट की कमी इस दावे को खोखला साबित करती है.

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