
गौ संरक्षण के बड़े-बड़े दावे करने वाली मध्य प्रदेश सरकार गोवंश को संभालने में विफल होती दिखाई दे रही है. इसका सबूत आगरा मालवा जिले में दिख रहा है. जहां एशिया का सबसे बड़ा गौ अभ्यारण्य ही सरकार ने प्राइवेट एनजीओ को ठेके पर दे दिया है. इसके लिए अभ्यारण्य में काम करने वाले स्टाफ की कमी का हवाला दिया गया.
प्रदेश की भाजपा सरकार में बना यह एशिया का सबसे बड़ा गौ अभ्यारण्य है. मगर आज भी गायें सड़कों पर हैं. मगर अब नया मामला यह सामने आया है कि स्टाफ की कमी के चलते गौवंश की देखरेख ढंग से नहीं हो पा रही.
इसके चलते प्रदेश की शिवराज सरकार ने फैसला किया है कि अब इस अभ्यारण्य्य को निजी हाथों में दे दिया जाए. हुआ भी यही कि अब इस अभ्यारण्य को राजस्थान के एक एनजीओ के हाथों सौंप दिया गया है. ठेके की यह पूरी प्रक्रिया टेंडर के माध्यम से हुई. 5 संस्थाओं ने अपना प्रजेंटेशन दिया था. जिनमें से एक एनजीओ को अभ्यारण्य ठेके पर दे दिया गया. अभ्यारण्य के अध्यक्ष ने बताया कि एनजीओ को प्रति गाय 50 रुपये दिए जाएंगे.

मप्र गौपालन एवं पशुधन संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरनंद जी ने बताया, हमारी यह प्रक्रिया 6 महीने से चल रही थी. हमने ऐसे लोगों को आमंत्रित किया था जो अभ्यारण्य्य को संभाल सके. हमारे सामने पांच एनजीओ आए, हमने सबका प्रजेंटेशन करवाया. 3 एनजीओ ठीक लगे, मगर उसमें से एक ने मना कर दिया.

स्वामी ने आगे बताया, दूसरे एनजीओ ने बताया कि हमारे पास स्टाफ नहीं है, इसलिए हम नहीं कर पाएंगे और फिर हमने आखिरी में राजस्थान के एक एनजीओ को संचालन करने के लिए दे दिया गया. 20 रुपये गायों के खाने के लिए और 30 रुपये अन्य व्यवस्था के लिए यानी प्रति गाय कुल 50 रुपये एनजीओ को दिए जाएंगे.

RSS चीफ ने रखी थी नींव
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की अगुवाई में 24 दिसंबर 2012 को मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के सलारिया गांव में देश के पहले गौ अभ्यारण्य का भूमि पूजन किया गया था. सपना दिखाया गया था कि 472 हेक्टेयर जमीन पर बनने वाले इस अभ्यारण्य में गायों की हिफाजत की जाएगी. उनको छत नसीब होगी और उनके स्वास्थ्य के साथ खान-पान का ध्यान रखा जाएगा. साल 2016 में इसका काम पूरा हुआ और सितम्बर 2017 में इसकी विधिवत शुरुआत भी हो गई. लेकिन इसके संचालन के ढर्रे ने कई तरह के सवाल खड़े किए. 6000 गायों की क्षमता के 24 शेड बनाए गए और हर एक शेड की क्षमता 240 गायों को रखने की गई. पानी के लिए ठेल और भूसे और चारे के लिए बड़े गोदामों का निर्माण यहां किया गया है. मगर गायें आज भी सड़कों पर बैठने को मजबूर हैं.
अब देखने वाली बात यह है कि क्या वाकई स्टाफ की कमी ही अभ्यारण्य्य को निजी हाथों में देने का कारण है? क्या वाकई पैसा नहीं आ रहा? और अगर आ रहा है तो कितना आ रहा है?
ये हम आपको समझाते हैं...
- सालरिया गौ अभ्यारण्य में गायों की कुल क्षमता 6 हजार है.
- वर्तमान में इस गौ अभ्यारण्य में 3250 गायें हैं.
- अभ्यारण्य बनने से लेकर आज तक यहां हमेशा ही क्षमता से लगभग आधी ही गायें रहती हैं.
- एक गाय पर प्रतिदिन 40-50 रुपये का खर्च आता है. इस हिसाब से एक गाय पर प्रतिवर्ष 18 हजार रुपये का खर्च आता है.
- अगर अभ्यारण्य में आधी संख्या में भी गायें रहें तो वार्षिक बजट 6 करोड़ रुपये से अधिक होता है.
- यहा एक डॉक्टर, एक कृषि विशेषज्ञ, 5 पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी पदस्थ हैं.
- डॉक्टर का वेतन 70-80 हजार रुपये, एक पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी का 50-60 हजार रुपये मासिक वेतन है. यानी 5 लोगों को 2.5 से 3 लाख रुपये प्रति माह दिए जाते हैं. साथ ही कृषि विशेषज्ञ की सैलरी 30 हजार रुपये मासिक है.
- अभ्यारण्य में भूसा और काम करने वाले मजदूरों का ऑनलाइन ठेका होता है.
- अधिकारियों की मानें तो वहां फिलहाल 100 से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं.