लेखक बनने का बड़ा नुकसान ये हुआ कि बहुत सारे लोग फेसबुक पर कनेक्ट करना चाहते हैं. सबको बराबरी का रिश्ता चाहिये यानी दोस्ती का. कोई फॉलोअर नहीं बनना चाहता. पेज है उस पर कनेक्ट हो जाओ. लेकिन नहीं... इसीलिये मैं अब अपने प्रोफाइल पेज पर नोटिफिकेशन कम ही देखता हूं. हफ्ते में एक आध बार देख लेता हूं कि कहीं कोई जानने वाला तो नहीं है. अक्सर अनजाने लोग ही होते हैं जो मुझ लेखक से जुड़ना चाहते हैं.
आज जब नोटिफिकेशन देखा तो अचानक एक नाम पर नज़र रुक गयी. चौंक गया नाम पढ़कर लेकिन सरनेम देखा तो कोई और ही था. फिर ख्याल आया कि एक बार चेक ही कर लूं शायद वही हो. धड़कते दिल से उस प्रोफाइल पर क्लिक कर दिया जिस पर नाम लिखा था 'शबाना अहमद'.
दिल की धड़कन धक-धक कर रही थी. फोटो पर क्लिक किया तो चेहरा पहचानते देर नहीं लगी. वही थी. जिसे मैं शबाना जावेद के नाम से जानता था.
शबाना को मैंने कॉलेज में देखा था. पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के बाहर. पहली नज़र में ही मैंने उसे दिल दे दिया था. वो मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानती थी. जानता तो मैं भी नही था. लेकिन थोड़ी कशमकश के बाद ही मैं जान गया था कि वह मुस्लिम है. नाम है शबाना जावेद.
पर दिल पर हिंदू-मुसलिम के, मजहब के पहरे कहां लगते हैं? जो मैं संभलता! वैसे भी मुझे इसकी परवाह कहां थी.
शबाना अपनी सहेली के साथ कॉलेज आया करती थी. मैं रोज़ाना कॉलेज में उसका इंतज़ार करता. वह जान गयी थी कि मैं उसके लिये डिपार्टमेंट के बाहर ही खड़ा रहता हूं. एक दिन हिम्मत करके मैं उसके पास गया और उसको म्यूज़िक के दो कैसेट दिये. जाहिर है उसमें हमारे जमाने के मुहब्बत के वे टॉप गाने थे, जिन्हें सुनते हुए हमारी उम्र के लड़के व लड़कियां अपने सपनों के राजकुमार, राजकुमारियों के सपने देखते. मैंने इन कैसेटों के साथ उसे एक खत भी सौंपा, जिसमें मैंने अपनी मुहब्बत का इज़हार किया था.
मैंने जिस तरह उसको अप्रोच किया था, उससे वह चौंक गयी थी. मैं समझ गया कि उसे ये तरीक़ा पसंद नहीं आया. लेकिन मेरे पास कोई और रास्ता भी नहीं था. कॉलेज में लोगों के सामने उसे इस तरह कैसेट देना ही सबसे मुनासिब लगा. अगर सड़क पर पैदल जाते वक्त उसे कुछ देता तो और भी अजीब लगता. क्या पता वह इस बात को कैसे लेती? फोन तब थे नहीं. कोई और रास्ता नहीं था.
लेकिन इस वाकिए के दो-तीन दिन तक उसने मेरी तरफ देखा भी नहीं. ना ही कोई जवाब दिया. वो बेहिस बनी रही और मैं उसके इर्द-गिर्द चक्कर काटता रहा. अचानक एक दिन फिर मैंने उसका सामना करने का फैसला कर लिया. जैसे ही वो क्लास से बाहर निकली मैं उसके पास पहुंच गया और सीधे पूछ ही दिया, "मेरा कैसेट कैसा लगा?"
"मैंने अभी सुना नहीं है." उसने धीमी आवाज़ में जवाब दिया. वो मेरी तरफ देख भी नही रही थी.
"क्यूं नहीं सुना?"
"सुन नहीं सकती. घर में सब लोग हैं. पूछेंगे कि कहा से लायी, तो क्या जवाब दूंगी?"
"कह देना कि एक दीवाने ने दिया है. मुझसे मुहब्बत करता है."
यह सुनते ही उसकी निगाहें उठी थीं. पहली बार उसने मेरी आंखों में देखा था. गोरा रंग. गहरी भूरी आंखें. उन पर चढ़ा नज़र का चश्मा. ऐसा लगा जैसे मेरी इस बात की सच्चाई को परख रही हो.
"मेरा खत पढ़ा?"
"हां," उसने धीमी आवाज़ में कहा.
"फिर क्या जवाब है?"
"इतनी जल्दी मैं जवाब नहीं दे सकती."
"मतलब ना नहीं है न?"
"मगर हां, भी नहीं है..." कहते हुए वह आगे बढ़ गयी.
पर मेरी राह खुल चुकी थी. आलम यह था कि धीरे-धीरे हमारी मेल-मुलाकात की बातें अब आम होने लगीं. कॉलेज में हम अक्सर एक साथ बैठते थे. रेसस में आपस में बातें करते रहते. साथ लंच करते. लोग आते-जाते देखते, कुछ ताने भी देते. उसे भी, मुझे भी. पर मुझे अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता.
एक दिन मैंने उससे बाहर चलने को कहा.
बहुत झिझकते हुए वो तैयार हुई. कॉलेज के समीप एक रेस्त्रां था. ज़्यादातर प्रेमी जोड़े वहीं जाते थे. वहीं चाय की प्यालियों के बीच उनको एकांत नसीब होता था.
अब तक मैं उसके परिवार के थोड़ी-बहुत बातें जान चुका था. उसके पिता सरकारी मुलाज़िम हैं. घर में मां और एक छोटी बहन है. लेकिन इस छोटे से परिवार के बीच भी वह एक अनजाने खौफ़ से परेशान रहती थी. अकसर उसकी बातें मुझे परेशान कर देती थीं, सोच में डाल देती थीं.
एक दिन उसने कहा, "इश्क से बड़ी धोखेबाज़ी कोई और नहीं है..."
"क्यूं?" मैंने सवाल किया.
"क्या कोई बता सकता है कि एक जीवन में वो कितनी बार इश्क से गुज़र सकता है?"
"ये कैसी बात है?" मैंने उसकी बात काटी.
"आप मुझसे क्या चाहते हैं?"
"तुम्हारी मुहब्बत!"
"कितने दिन के लिये?"
"क्या मतलब?"
"आप कब तक मेरे इश्क में रह पायेंगे?"
"ये कैसा सवाल है?"
"सवाल तो सवाल ही होता है. बच निकलने से तो कुछ होता नहीं. अच्छा, चलिए बताइए, आपकी फेवरिट डिश क्या है?"
"मैं वेजिटेरियन हूं और कढ़ी मुझे बेहद पसंद है."
"अगर आपको रोज़ खाने में दोनों वक्त कढ़ी दी जाये तो कितने दिन तक वो आपकी फेवरिट डिश बनी रहेगी?"
मैं समझ गया था कि वो मुझे घेरना चाहती है. इसलिए मैंने सावधानी से कहा, "डिश और इश्क में फर्क है."
"ये आपका वहम है," कहते हुए वो उठ खड़ी हुई.
फिर कई दिनों तक यही चलता रहा. हम मिलते रहे. बात करते रहे. मैंने कई बार उससे ये जानने की कोशिश की कि क्या वो मुझसे प्यार करती है. लेकिन उसने इसका सीधा जवाब कभी नहीं दिया.
एक रोज़ जब हम फिर रेस्त्रां में बैठे थे तो मैंने उससे फिर पूछा कि क्या तुम मुझसे प्यार करती हो.
सवाल के जवाब में उसने यह सवाल दाग दिया कि आपको कैसी रिलेशनशिप पसंद है.
"क्या मतलब? ये रिलेशनशिप जैसी हमारी है, वो बेहद अच्छी है."
"रिलेशनशिप दो तरह की होती है, एक वो जो तकदीर बदल देती है और दूसरी वो जो तबाह कर देती है." उसने मेरी हथेली पर उंगली से गोल-गोल घेरा बनाते हुए कहा. ऐसा पहली बार हुआ था जब उसने मेरी हथेली को थामा था.
इसकी इस बात से एक बार फिर चौंक गया था मैं.
"कैसी वाहियात बात है ये. कोई ऐसी रिलेशनशिप को कैसे पसंद करेगा, जो ज़िंदगी बर्बाद कर देगी?"
"लेकिन आप कैसे जानेंगे कि इस रिलेशनशिप में आगे जाकर क्या होगा?"
"मैं जानता हूं. मुझे अहसास है."
"क्या आपने दर्द भोगा है? क्या आपने तबाही देखी है."
मैं उसे घूरता रह गया. उसके इन सवालों का जवाब नहीं था मेरे पास.
मुझे गंभीर देख वो हंस पड़ी. "आपने दर्द को नहीं देखा है. बहुत एक्साइटिंग होता है. चलिये अब चलते हैं."
एक दिन रेस्त्रां में उसने मुझसे कहा कि अगर मैं कल से आपके साथ इधर ना आऊं तो आप क्या करोगे?
"मैं तुम्हारे घर के बाहर डेरा डाल दूंगा."
"फिर भी मैं ना मिलूं तो क्या करोगे?" उसने मेरी आखों में आखें डाल कर पूछा. इस दौरान अपनी दोनों हथेलियों से उसने मेरी हथेलियों को थाम रखा था.
मेरे पास उसके इन सवालों का जवाब नहीं था. ना मेरी समझ में उसकी ये बातें आती थीं. मैंने झल्ला कर कहा कि शबाना कैसी बेकार की बातें करती हो. मुझे तुम्हारे साथ अपनी ज़िंदगी गुज़ारनी है.
"कितने अच्छे ख्वाब देखते हो ना तुम. कई बार तुमसे प्यार करने का मन करने लगता है. फिर सोचती हूं कि तुम संभाल नहीं पाओगे."
"क्यूं, क्यूं नही संभाल पाऊंगा. सिर्फ इसलिये कि तुम मुसलमान हो और मैं हिन्दू."
"नहीं, उससे भी परे. दर्द...है कोई दर्द, जो तुमसे नहीं संभलेगा."
"क्यूं तुम ऐसी बातें करती हो? आखिर क्या है तुम्हारी ज़िंदगी में?"
"कुछ नहीं है मेरी ज़िंदगी में ऐसा जिसे तुम नहीं जानते. लेकिन मैं दर्द को जानती हूं. तुम नहीं जानते."
"लेकिन मैं तुम्हें जानता हूं. तुम्हें चाहता हूं. तुम्हारा साथ चाहता हूं. तुम्हारे साथ ज़िंदगी बिताना चाहता हूं. अब तक मैं उसके सामने बिछ चुका था." वो मेरे साथ होती तो थी लेकिन उसकी बातें जानें किस दुनिया की होती थीं.
"कौन सा दुख है तुम्हें शबाना. ऐसा क्या है जिसे तुम छुपाना चाहती हो. असल शबाना कौन है?" मैं जब भी ऐसे सवाल पूछता, वह जवाब देती, "असल शबाना तुम्हारे साथ है. वही है जो तुम्हारे साथ रहती है. बस वो सवाल बहुत करती है. उनके जवाब खोजती रहती है."
"लेकिन क्यों, आखिर क्यों इन सवालों के जवाब चाहिये तुम्हें?"
"जिंदगी में सवाल ही तो हैं जिनका सामना हर रोज़ हमको करना पड़ता है. तुम्हारी ज़िंदगी में सवाल नहीं हैं?"
"मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सवाल तो तुम ही हो."
हा..हा...हा.... कहते हुए वो खिलखिला कर हंस देती. वो जब खिलखिलाती थी तो बेहद सुंदर लगती थी. उसकी भूरी आंखें तब और खुल जातीं और खिल भी जाती थीं. वह बोल उठी-
"गुलजार ने कहा है-
कहने वालों का कुछ नहीं जाता
सहने वाले कमाल करते हैं
कौन ढूंढे जवाब दर्दों के
लोग तो बस सवाल करते हैं
लेकिन जब सवाल ही दर्द का हो तो क्या करेंगे हम."
"तुमको लेखक होना चाहिये. इतना कुछ सोचती रहती हो. कहती रहती हो." मैंने उसे छेड़ते हुए कहा.
"और तुम क्या करोगे. तुमने अपने बारे में क्या सोचा है?"
"मैं नहीं जानता. मेरी ज़िंदगी का कोई ठिकाना नहीं है. वैसे अभी कुछ सोचा ही नहीं है. पिताजी का बिज़नेस है. कुछ नहीं हुआ तो वो तो संभाल ही लूंगा."
मेरी बात सुनकर वो मुस्कुराई. "कितनी सेटल है तुम्हारी लाइफ. ना आज की परवाह, ना कल की चिंता. अपनी मर्ज़ी के मालिक."
"तुम पर कौन सा पहाड़ टूट रहा है. तुम भी अपनी मर्ज़ी की मालकिन बनो. चलो मेरे साथ. तुम हां कर दो ना."
"अगर ना कर दूं तो....तो क्या करोगे?" उसने मेरी आंखों में आंखें डालकर पूछा.
"कितनी बार एक ही सवाल करोगी?" मैंने खीज कर कहा.
"बोलो ना, मेरे लिये ये जानना ज़रूरी है. मैं ना मिली तो क्या करोगे?"
"क्या करूंगा. मैं नहीं जानता."
"कभी दर्द सहा है तुमने."
"फिर वही सवाल.... क्यूं. एक ही सवाल बार-बार क्यूं?"
"दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना, ये शेर सुना है तुमने?"
"नहीं, मेरी इन बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है."
"मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा, दीवारों से सिर टकराओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा. कुछ ऐसा ही हाल है तुम्हारा." वो मुझे छेड़ रही थी. साथ ही मुस्कुरा भी रही थी.
***
वक्त यूं ही बीतता रहा. एक दिन में रेस्त्रां में बैठा शबाना का इंतज़ार कर रहा था. तभी वहां के मैनेजर ने एक खत मुझे दिया. मैंने खत खोला तो पाया कि वो शबाना ने लिखा था.
"सुनील, नहीं जानती कि तुम्हें कैसे संबोधित करूं. जब मेरा ये खत तुम्हें मिलेगा तब तक मैं बहुत दूर जा चुकी होऊंगी. कभी लौट के ना आने के लिये. मुझे खोजने की कोशिश ना करना. तुम एक बेहतरीन इनसान हो. मुहब्बत से लबरेज़. अपना ख्याल रखना. मेरी वजह से अपनी ज़िंदगी बरबाद ना करना. दर्द को अपना हमसफर ना बनाना. हमारा मिलना मुमकिन नहीं है. इसकी वजह हमारा धर्म नहीं है. मैं मुसलमान ना भी होती तब भी हमारा रिश्ता मुमकिन ना था.
"दरअसल, मेरा निकाह हो चुका है. मेरे पिता ने 18 साल की उम्र में ही मेरा निकाह कर दिया था. शहर में पढ़ने के लिये ये उनकी इकलौती शर्त थी. अपनी पढ़ाई के लिये मैंने यह शर्त कुबूल कर ली थी. मुझे कहां पता था कि शहर में मुझे तुम मिलोगे. यहां मुहब्बत मेरा इंतज़ार कर रही होगी.
"बगैर मां की औलाद जिसे कभी किसी ने मुहब्बत ना बख्शी हो. जिस पर हर वक्त पहरा रखा गया हो. उसकी ज़िंदगी की कल्पना तुम नहीं कर सकते थे. पढ़ाई के लिये अपनी आज़ाद ज़िंदगी की कुर्बानी. एक ऐसे इनसान से निकाह जिसे मैं अच्छे से जानती भी नहीं थी. मेरी ज़िंदगी मेरे ही ख्वाबों की गिरफ्त में आ गयी.
"अपनी इस ज़िंदगी को मैंने तुमसे राज़ रखा था. यह राज़ रखना भी मेरी मजबूरी ही थी. अगर यह राज ना रखती तो तुम्हारी मुहब्बत ना मिलती. दरअसल एक ज़िंदगी जीने के लिये कई ज़िंदगियां छिपानी पड़ती हैं. अगर मैं ऐसा ना करती तो तुम्हारे साथ वक्त कैसे बिता पाती? इश्क क्या होता है कैसे जान पाती? इश्क का दर्द क्या होता है कैसे महसूस कर पाती? ऊपर वाले का सितम देखो कि अपनी मौजूदा ज़िंदगी में मैंने तुमसे अपनी सच्चाई छिपाई और आने वाली ज़िंदगी में अब तुमको और तुम्हारे इश्क को सबसे छुपाना पड़ेगा.
I Love You Sunil.
हमें भूल जाइयेगा.
शबाना."
***
मैंने बहुत कोशिश की थी शबाना को खोजने की. इतना पता चला कि वो यहां किराये पर रहती थी. दो लड़कियां किसी पास के कस्बे से आईं थीं. पढ़ाई पूरी करके वापस चली गयीं. किसी के पास उनका पता नहीं था.
इन 20 सालों में मैं पत्रकार और लेखक बन गया. और वो, वो क्या कर रही थी. उसकी प्रोफाइल को देखा तो पाया कि वो एक स्कूल की प्रिंसिपल है. 2 बच्चे हैं उसके. हां पति भी है. खुश है वो अपनी ज़िंदगी में. मैंने मुस्कुराते हुए उस की फ्रेंड रिक्वेस्ट कुबूल कर ली.