गढ़वाल विश्वविद्यालय से 'साठोत्तरी हिन्दी व्यंग्य साहित्य में युगबोध' विषय पर शोध कर कविता और निबंध के साथ व्यंग्य विधा को अपनाने वाले डॉ. ललित किशोर मंडोरा वैसे तो राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत में हिंदी के सहायक संपादक के तौर पर पुस्तक संस्कृति और साहित्य की गतिविधियों से जुड़े हैं पर लगातार लिखने-पढ़ने में उनका मुकाबला मुश्किल.
व्यंग्य रोज लिखते हैं, और कुछ क्षेत्रीय अखबारों में छपते भी हैं. उनका साहित्यक नाम लालित्य ललित है. इस साल दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के दौरान उनके कई व्यंग्य संकलन एक साथ छपे थे. उनकी चर्चित पुस्तकों में गांव का ख़त, शहर के नाम, दीवार पर टंगी तस्वीरें, यानी जीना सीख लिया, तलाशते लोग, इंतजार करता घर, चूल्हा उदास है शामिल है. साहित्य आजतक के पाठकों के लिए उनके ताजा व्यंग्य संकलन 'पांडेय जी और दिल्लगी' का मी टू पर लिखा व्यंग्य.
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व्यंग्यः
पांडेय जी और लपकुराम का मी टू
- लालित्य ललित
जब से खबर आई है कि मी टू मुहिम के तहत कई लोगों की दुकानें खुलने लगी है, तो लगे हाथ लपकुराम भी घबराने लगे हैं. क्योंकि जवानी में बड़ी बांसुरियां बजाई हैं जिसकी धमक अब प्रस्फुटित होंगी.
मीडिया में भी क्या से क्या खबर आ रही है!
एक बार तो लगता है कि क्या यह लोचा होगा भी!
क्या सारे के सारे पुरुष समाज को गंदा कर रहे हैं!
क्या महिलाओं ने उन्हें रोकने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया. इतना तो कोई पशु ही पाशविकता कर सकता है. आधे से ज्यादा शादी शुदा लोग इतनी घिनोनी हरकतें करने पर आमादा!
चिलमन ने कहा कि उस्ताद जी, मैंने आपसे पहले ही कहा था कि आज के जमाने में भी लपकुराम का मोबाइल बिल हजारों में आता है!
काइयाँ आदमी है. जब देखो मन्द-मन्द मुस्कराता है, ऐसे आदमियों से बचना चाहिए. दुष्ट प्रवृति के होते हैं, अपने तो सगे होने से रहें. जहां देखो मुंह मारते दिखाई देंगे. ओह!
ऐसे लोग!
कहाँ से आए इस जन्म में!
धरती पर लोगों का रहना कठिन हो गया.
राधेलाल इस मामले में चुप्पी साधे है. पांडेय जी को पता है कि कब बोलना है उनको और वे मौके की तलाश में होंगे कि जब समय आएगा, तब वे बोलेंगे!
आखिर ये लोकतंत्र है बाबा! जहाँ लोग जानते हैं कि कब उल्लू सीधा करना है और कब उंगलियां टेढ़ी करनी है.
अभी विश्व हिंदी सम्मेलन में कारगुजारियाँ ठंडी भी नहीं हुई थीं कि अब मी टू का रोना जगजाहिर औऱ हँसी उड़ाता आ गया है. लेकिन किसी को भी घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है, कुछ दिन में यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला जाएगा और इसकी जगह कोई और नया मुद्दा आ जायेगा. वैसे भी हम भारतीयों की स्मृति बड़ी क्षीण होती है. अक्सर बड़े-बड़े मुद्दे भूल जाते हैं या भुला दिए जाते हैं.
तभी असन्तुष्ट कुमार ने कहा कि पांडेय जी, नमस्कार. कभी हमारे साथ भी चाय पी लीजिये, हुजूर!
पांडेय जी को लगा कि आज ये जनाब जरुरत से ज्यादा खुश हैं, सोचा अगला कह रहा है तो पी लेते हैं. बैठे ही थे कि कुमार साहब ने मोबाइल पर एक फोटो दिखलाई और कहा कि ये मेरे लिखे नाटक की तसवीर है, पांडेय जी को बड़ी हैरानी हुई कि आप नाटक भी लिखते हैं!
बधाई, भाई यह तो हमें पता ही नहीं था. पर असन्तुष्ट कुमार अपने कक्ष में चुपचाप साहित्य रचने वालों में एक हैं. किसी से कुछ न कहते, बस अपने काम में ही लगे रहते. ऐसे लोग कम हैं अपनी धरती पर, जिनकी बदौलत दुनिया का संसार चल रहा है.
कहीँ से खबर आई कि मन सबका फिसला है, दिमाग सबका खिसका है.
इस चक्कर में कई लोग ऐसे भी हैं जो वे करें तो सब ठीक, पर उनके परिवार के लोग करें तो वह गलत. इसके चलते उन्होंने अपने परिवार को सोशल मीडिया पर आने के लिए मना किया है. लेकिन आभासित दुनिया में वे गुलछर्रे उड़ाते रहे, इस बात का उन्हें कोई मलाल नहीं.
लपकुराम एक जमाने में अंग्रेजी के गाने गिटार पर बजाया करते थे. इस चक्कर में कई महिलाएं आकर्षित हो गईं.
अब आप को बातें बनाने का हुनर हो तो क्या काली और क्या गोरी सब की लाइन आपकी ओर केंद्रित हो जाएगी. इस मामले में लपकुराम शुरू से कुख्यात किसिम के जीव रहे हैं.
चिलमन ने कहा कि मुझे समझ नहीं आता कि लोगों को महिलाओं के पीछे दौड़ कर मिलता क्या है! लगे हैं दौड़ने!
विलायती राम पांडेय को वह दिन याद आ गया कि जब किसी काम से वे रायपुर गए थे और देश के बड़े कवि उनके होटल में ठहरे थे, कि तभी किसी ने किसी स्थानीय कवयित्री से कह दिया कि फ़लाने कवि आयें हुए हैं, आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं और उधर उन कवि महोदय को भी ऐसा ही कुछ कहा गया. पांडेय जी क्या देखते है कि फ़लाने कवि जी लगभग दौड़ते हुए वहां पहुँचे जैसे किसी मधुबाला से मिलने के लिए बगीचे में दिलीप कुमार ने लगभग दौड़ ही लगा दी हों कि प्रियतमा!
क्या आज भी तुम मुझ से इतना स्नेह करती हो!
वह कवयित्री शरमाई कि कितने बड़े कवि ने मेरे लिए दौड़ लगाईं. वैसे कवियों का क्या मर्द प्रजाति का महिलाओं के लिए दौड़ना अभी तक जारी है.
आजकल जो मी टू का प्रसंग चल रहा है, वह लगभग वैसे ही है कि मरना तो सब ने है. बेशक आपको शुगर हो या न हो, यदि किसी लफड़े में न फंसे तो आपको मर्द जाति पर धिक्कार है, फंसो बेटे, चर्चा में आओ और कुछ नाम कमा जाओ. बाकी तो देखने के लिए बहुतेरे हैं.
साहित्य में ऐसे बहुत से किस्से हैं जो अभी लाइम लाइट में आने को मचल रहे हैं. उनका मचलना भी जायज है. हमारा देश ही ऐसे माहौल में प्रगति कर रहा है कि जब हमारी रुचि नाजायज सम्बन्धों की प्रगतिशीलता को देखने की होती है. बाई द वे! मैं मायके जा रही हूँ, काम वाली से काम करवा लेना, अक्सर इस तरह के वाक्य हवा में तैरा करते थे, अब पत्नियां सावधान हो गई हैं कि क्या पता कब कौन सी सेविका मी टू के चक्कर में साहब को फंसा दे और कुछ अनैतिक कमाई का सोर्स बनवा ले. आजकल किसी पर कोई भरोसा नहीं रहा.
उधर यह खबर आई है कि भाभी जी घर पर हैं कि पूर्व हीरोइन शिल्पा शिंदे ने कहा है कि यदि दोनों में आम सहमति से कोई सम्बन्ध बनता है तो वह रेप की केटेगिरी में नहीं आता.
इधर रामखेलावन ने कहा कि क्या जमाना आ गया है, अनैतिक रिश्ते! अधर्म का फलता फूलता तंत्र!
ऐसे में कौन कहाँ जाएं और क्या करे!
भारत का क्या होगा!
उसकी वैश्विक छवि का!
पांडेय जी ने कहा कि जब राधेलाल और रामलुभाया तक न सम्भाल सकें इस छवि को तो बेटे आप और हम क्या चीज हैं!
चिलमन भाभी के पास जाओ और मूली छिलवा कर ले आओ, आज मूली खाने का मन है और थोड़ा सैंधा नमक भी ले आना. गैस खुल कर आती है. कहते हैं कि भीतरी सफाई भी समय समय पर हो जानी चाहिए.
चिलमन ने कहा कि बात तो सही है. वह दौड़ कर छीली हुई मुलायम मूलियां नमक के साथ दे गया और कहीँ दूर दौड़ गया. उसे पता था कि जब पांडेय जी गैस छोड़ते है तो उसकी धमक दो किलोमीटर तक पहुंचती है, यह बात रामखेलावन को नहीं पता थीं. उस दिन जो रामखेलावन का हाल हुआ, वह तो हफ्ते के लिए घर से बाहर निकला नहीं. किसी ने पूछ भी लिया तो कहने लगा कि यूपी में परली के चलते निकलना सम्भव नहीं.
लल्लू आज आया नहीं था. पांडेय जी भूल बैठे थे कि उसे तो आज किसी सेमिनार में जाना था. वैसे भी जिसने जब कोई काम न करना हो और छुट्टियों का मजा लेना हो वैसे समय में सेमिनार का बहाना एक सुखद प्रसंग है, जिसे कभी कभार आजमाने में कोई हर्ज भी नहीं.
दयाल बाबू मस्त हैं. पांडेय जी के साथ चाय पी. वैसे उनको शुगर है, लेकिन कहते हैं कि हल्की मीठी चाय कहाँ नुकसान करती है!
मधुबाला ने कहा कि ये जितने भी बूढ़े किसिम की घाघ प्रजाति के लोग हैं ये मानने वाले कहाँ हैं!
क्या खा कर मानेंगे!
कहाँ जाएंगे!
लगता है नरक में भी जगह नहीं मिलने वाली.
सब ने सहमति में सर हिलाया. इसके कारण और दैहिक उपादेयता के विमर्श को लेकर अंसुधानवेत्ता लगातार विमर्श कर रहे हैं कि विषय को लेकर कितना विमर्श अभी और बाकी है!
चिंतन ने शेष लोगों को भी चैतन्य बना दिया है, उनका सोचना लगातार जारी है कि विषय को और कितना प्रासंगिक बनाया जाए ताकि विषय की स्थापना सुचारू रुप से व्यवस्थित की जा सकें.
राधेलाल जी ने रामलुभाया से सम्पर्क किया और रामलुभाया की स्थापना के समक्ष सर झुकाया. वह इसलिए जो विद्वान होगा उसकी मान्यता भी मानी जाएगी, जमाना उसका सम्मान भी करेगा.
लपकुराम के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही है कि कहीं किसी ने भेद खोल दिया तो बुढ़ापे में जो इज्जत बनाई है, वह तो फोकट धुल जाएगी और बदनामी अलग होगी. उधर दबे स्वर में अट्टू ने कहा कि इज्जत होगी तब न बचेगी, ये वही आदमी है न जिसने हिंदी सम्मेलन के बहाने अपनी रोटियां सेंकी. ऐसे आदमी तो किसी काम के नहीं, न साहित्य के लिए बने हैं, हाँ जुगाड़ू कह सकते हो, लेकिन भाई साहब ये जुगाड़ तंत्र कितने दिन और चलेगा!
सब जान गए हैं इसकी हकीकत. अब दुकान खुलने में देर नहीं. अट्टू ने कहा और दूध लेने निकल गया. उधर पांडेय ने सुना तो उसे आश्चर्य भी हुआ कि अट्टू ने जो कहा वह बात तो ठीक है, लेकिन उन्हें उम्मीद नहीं थीं कि अट्टू भी काम की बात कह सकेगा. लेकिन जो भीतर से भरा हो भाई साहब वह जो कुछ भी कहेगा न, वह दिल से कहेगा.अब तो ऊपर वाले भी समझ गए, कि इस बार तो पागल बना दिया लेकिन हर बार नहीं बनेंगे.
उधर जिसका आलिंगन किया था, उसने मन बना लिया कि लपकुराम के कृत्य का लोकार्पण कर दिया जाए. प्रेस क्लब का हाल बुक करवा दिया. कुछ चैनल्स वाले इस समाचार से हतप्रभ भी थे, जिस महिला को लपकुराम हर जगह लिए डोलते थे, वही आज उनका काला चिट्ठा खोलने को बेताब है.
जब खबरीलाल ने कुरेदा तो अंदर से खबर ये लगीं कि लपकुराम ने उसको विश्व हिंदी सम्मेलन में ले चलने का वायदा किया था और इसके एवज में मोटा माल भी बना लिया.
धन्य हैं लपकुराम!
धन्य है समाज और धन्य है समाज की कुरीतियां और नीतियां!
कहाँ जाएगा हमारा हिंदुस्तान और यहाँ की गतिविधियां. बहरहाल लपकुराम किसी अज्ञात स्थान पर लापता बताएं गए हैं. प्रेस वार्ता स्थगित हुई. वह महिला आखिरी बार लपकुराम के साथ देखी गई. राधेलाल ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. साहित्य समाज सकते में कि यह हुआ क्या!
अब बातें जो सामने आने लगीं वह इस प्रकार:
क्या लपकुराम किसी षड्यंत्र का शिकार हुए?
क्या लपकुराम ने उस महिला का शोषण किया!
क्या कोई और वजह!
बातों के कयास जारी हैं.
आगे देखते है कि क्या मथ कर सामने आता हैं.
बने रहिये हमारे साथ. हम लेते है एक कमर्शल ब्रेक!
पांडेय ने कहा: अजी, सुनती हो, खाना बना दो, आज तो समाचार भी मन के नहीं रहे. क्या जमाना आ गया.
सुबह कपूर साहब मिल गए कहने लगे कि कोने वाले मिनोचा का कुछ पता लगा!
पांडेय जी ने कहा नहीं तो!
क्या केबेसी में आ रहे हैं!
अरे नहीं!
कल पार्क साफ किया, खा पी कर सोये और बिस्तर से लुढक गए. अटैक आया था. अस्पताल ले जाते लेकिन रास्ते में ही चले गए. सबसे अच्छी मौत यही है, किसी को तंग नहीं किया.
पांडेय जी ने कहा- जो लिखा है वह तो होकर रहा है, उधर मी टू! यहां अटैक!
कितनी विचित्र परिस्थिति है!
होनी बलवान है और अपने कर्मों का लेखा जोखा भी तो आपके साथ चलता रहता है, उसको न बदलने की आपके पास शक्ति है और न हमारे पास!
लपकुरामों का मी टू जारी है. कुछ भूमिगत हो गए, लेकिन उनके प्रसंग सड़े पनीर के बुलबुले की मानिंद बाहर निकलने को उत्सुक ही नहीं व्याकुल भी हैं. लपकुराम का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है. उनके चेलेराम खासे दुखी हैं कि यदि इनका भेद खुला तो वे भी बेमौत मारे जाएंगे!
आखिर वे भी तो दुख सुख के साथी जो ठहरें!
पांडेय जी ने नारायण हरि कहा और घर को चल दिये. असली सुख घर में उसकी चार दीवारी में है, ये बात सब जान जाएं तो मी टू का चक्कर ही खत्म हो जाएं. पर भाई साहब घर की तोरई का स्वाद लेना ही नहीं चाहते जबकि बाजार में कई दिन पुरानी तड़का मार कर दाल मक्खनी मौजूद हो तो!
क्या कर लीजिएगा आप भी!
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पुस्तकः पांडेय जी और दिल्लगी
लेखकः लालित्य ललित
प्रकाशकः एपीएन पब्लिकेशंस, नई दिल्ली
मूल्यः 200 रुपए
पृष्ठ संख्याः 143