कहानी - हरा दुपट्टा
राइटर - जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
पुरानी दिल्ली की उन उम्र से बूढ़ी इमारतों के बीच, लोगों की भीड़ से पटी हुई गली में, मैं और हिबा एक सुस्त रिक्शे पर बैठे थे। सफ़ेद सूट पहने हिबा खामोशी से सर झुकाए उदास थी, और मैं बहाने से इधर उधर देख रहा था... ताकि हिबा मेरे दिल की आवाज़ न सुन ले। हमारे कंधों के बीच एक सावधानी भरी दूरी थी और दोनों ने अपनी अपनी मुट्ठी से रिक्शे के किनारे वाला रॉड थामा हुआ था। हमारी आंखों के सामने दुनिया कितनी गुलज़ार थी। कितने रंग थे। कितने चेहरे कितनी कहानियां थीं लेकिन हिबा की नजरें उदासियों के बोझ से झुकी हुई थीं। (इसी कहानी को ऑडियो में सुनने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें। या आगे पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें)
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दुकान शायद यहां से तीसरी गली में है... मैंने खामोशी तोड़ने के लिए कहा लेकिन हिबा ख़ामोश रही। ऐसे जैसे जो कुछ उसके सामने था, सब बेमायने। हिबा हमेशा से ऐसी नहीं थी... कम से कम 11 महीने पहले जब मैं उससे मिला था शादमान की इंगेजमेंट में तब तो बिल्कुल भी ऐसी नहीं थी। तब वो एक हसमुख, बात बात पर जोक मारने वाली, पूरे घर की रौनक थी। मुझे आज याद आ रही थी आसमानी सूट और गहरे नीले दुपट्टा ओढ़े हुए हिबा जो शादमान के इंगेजमेंट में ढोलक की थाप और घर वालों की तालियों के बीच डांस कर रही थी। कभी वो आंगन में खड़े बड़े अब्बू को डांस के लिए खींच कर ले आती कभी, महमूदाबाद वाली खाला को। मैं तब हिबा से पहली बार मिला था। वो शादमान के बड़े भाई की वाइफ यानि ज़रीना भाभी की कज़न थी... हिबा की आंखें, उसकी हंसी उसके अंदाज़ ज़िंदगी से भरी हए लगते थे। उस दौरान हमारी थोड़ी बहुत बातचीत भी हुई थी... अच्छी लगी थी मुझे हिबा। और जब मैंने भाभी से हिबा के बारे में पूछा था तो भाभी ने उसे टीप लगाते हुए कहा था... इंगेजमेंट हो गयी है उसकी... चार महीने बाद शादी है। और ये सुनते ही मेरे मुंह से निकला था... धत्त तेरी की... क्या खराब क़िस्मत पाई है। एक लड़की पसंद आई तो उसकी इंगेजमेंट हो चुकी है। मैंने भाभी से कहा था, भाभी अगर इसका मंगेतर, जो भी है वो, रास्ते से हट जाए न तो फौरन शादी के लिए प्रोपोज़ कर दूं हिबा को... भाभी ने आंख दिखाते हुए कहा, खुदा का ख़ौफ करो, ऐसा नहीं कहते। कौन जानता था कि मेरी ज़बान से निकली वो बात यूं ही सच हो जाएगी।
भैय्या इधर गली में मोड़ लीजिए, बस थोड़ा ही आगे है... आ.. आप को दुकान पता है? मैंने पूछा तो वो चौंकी... हां... मैंने फिर पूछा, दुपट्टे वाली दुकान आपको पता है जो ज़रीना भाभी ने बताई उसने न में सर हिला दिया।...
- भैय्या आप ऐसा करो, यहीं उतार दो... हम लोग गली में पैदल चले जाएंगे
कहते हुए हम दोनों उतरे। मैंने रिक्शे वाले को पैसे दिए और हम एक भीड़ भरी गली में दाखिल हो गए। जहां से हमें शादमान की मेंहदी की रस्म के लिए हरे दुपट्टे चाहिए थे। मैं और हिबा उस गली में चलने लगे... गली में भीड़ की वजह से कभी वो पीछे रह जाती... कभी भीड़ में गुम हो जाती... मैं बार-बार भीड़ में उसे ढूंढता और फिर रुक कर उसका इंतज़ार करता। भीड़ के उन अनगिनत चेहरों में हिबा का चेहरा मुझे अलग लग रहा था। काश मैं उसका हाथ थाम सकता... और उसे कभी दुनिया की भीड़ में गुम नहीं होने देता। काश मैंने... मैंने उस लड़के को मज़ाक मज़ाक में बद्दुआ न दी होती... जिससे हिबा की शादी होने वाली थी। काश मैंने ये नहीं कहा होता कि ये रास्ते से हट जाए तो हिबा को मैं इंप्रैस कर लूंगा... मैं कहा जानता था कि कभी कबार ज़बान से निकली बात सच हो जाती है.... मैं नहीं कहता तो चार महीने पहले एक रोड एक्सीडेंट में उस लड़के की मौत नहीं होती। एक्सीडेंट का साउंड
भैय्या वो हरे दुप्टटे चाहिए...
हम दुपट्टों की दुकान पर खड़े थे और हमारे सामने काउंटर पर दर्जनों दुपट्टे उलझे पड़े थे। हिबा बेमन ने उन दुपट्टों को देख रही थी... मैंने उसके कान में कहा, चलो, ये काम भाभी ने अच्छा किया। कम से कम इस बहाने तुम्हें हरे रंग में देख पाएंगे हम लोग। हिबा ने मेरी तरफ घूरकर देखा। कुछ कहा नहीं।
असल में होने वाले हस्बैंड की मौत के बाद से हिबा सिर्फ सफेद सूट ही पहनती थी... नहीं और कोई वजह नहीं थी, बस उस लड़के ने कभी हिबा से कहा था कि तुम सफेद सूट में बहुत अच्छी लगती हो। हालांकि कई बार उसे कई लोगों ने कहा कि अब उस गम को सीने से लगाए रहना ठीक नहीं है, पर दिल को समझाना आसान नहीं होता। वहीं से निकल कर हम लोग चूड़ियों की दुकान पर गए। मैंने फिर हलके अंदाज़ में कहा, तुम तो सफेद चूड़ियां लोगी न? वो मेरी तरफ मुड़ी, आप ज्यादा नहीं बोल रहे?
मैंने उसे ग़ौर से देखा और कहा ज्यादा तो तुम बोलती थी यार... अब कुछ बोलती नहीं। मैंने बहुत नर्म लहज़े में कहा तो उसने रटा रटाया जवाब दिया। आपको कुछ नहीं पता। मैंने एक कदम और आगे बढ़ाया, उसके एकदम नज़दीक आ गया। हल्के से कहा, और पता हो तो? फिर मुझसे रूड होना बंद कर दोगी? वो एक कदम पीछे हट गई। बात को बदलते हुए बोली, अब वापस चलें? काफी लेट हो गया है।
वापसी में हम एक बार फिर रिक्शे में बैठे थे। लेकिन इस बार उसने अपना मुंह दूसरी तरफ घुमाया हुआ नहीं था। मुझे ऐसा लग रहा था कि हमारे बीच कुछ हल्का हल्का पिघल रहा था... जैसे लोबान की खुस्बू जो आहिस्ता आहिस्ता घर के कोनों को छूती है... एक रिश्ता हमारे दिलों को छू रहा था... लेकिन ये इतना आसान नहीं था।
शाम को रौशनियों में डूबी हवेली में बन्ना गीत और ढोलक की थाप गूंज रही थी। मैं भी थोड़ा खुश-खुश था क्योंकि आज हिबा ने सफेद सूट के साथ हरा दुपट्टा पहना था।
कुछ लड़कियां मेंहदी लगवा रही थीं लेकिन हिबा ने मना कर दिया था। इसपर मुझे एक तरकीब सूझी और मैंने ज़रीना भाभी के कान में खुसफुस की। वो पहले तो बहुत हंसी फिर बोलीं.. ठीक है। वो हिबा के पास गयीं और बोलीं...
अरे हिबा, अब तक मेंहदी नहीं लगाई...
हां वो... असल...
भाभी ने कलाई घड़ी को बड़ी फिक्र से देखा... फिर आसमान की तरफ देखा... फिर बोलीं... वैसे अभी एक किरन है सूरज की...
हिबा चौंकी... सूरज की किरन... मतलब?
ज़रीना भाभी हंसी रोकते हुए बोलीं... हां हमारे खानदान का रिवाज़ है कि सूरज की आखिरी किरन तक ... भाभी की तरफ की सबसे छोटी बहन को मेंहदी लगवानी होती है.. वरना... अपशगुन माना जाता है...
- ओह... अरे फिर तो मैं अभी लगवाती हूं भाभी ... मासूमियत से कहते हुए वो मेंहदी लगा रही लड़की के पास जाने लगी... भाभी ने मेरी तरफ देखा जो दूर फूलों की लड़िया बना रहे चचा के बगल में बैठा मुस्कुरा रहा था।
लेकिन तभी एक गड़बड़ हो गयी... मैं और ज़रीना भाभी एक दूसरे को देखकर हंस ही रहे थे कि उसने हम दोनों को देखा... औऱ वो समझ गयी। वो मेरी तरफ बढ़ने लगी... मैं घबरा गया...और उठ कर कमरे में आ गया। वो कमरे में आई... और नाराज़ होते हुए बोली, तुम अपने आपको समझते क्या हो? वो मेरा हाथ खींचकर एक तरफ ले आई क्यों कर रहे हो मुझे परेशान?
बस मेहंदी तो है... सब लड़कियां लगवा रही हैं। एक तुम लगवा लोगी तो क्या हो जाएगा? मैंने उसे समझाते हुए कहा। उसने गुस्से में हरा दुपट्टा निकालकर फेंक दिया। एक बार फिर खुद को सफेदपोश कर लिया पूरी तरह। फिर कमरे से जाने लगी।
मैंने हाथ पकड़कर उसे रोका। सुनो, किसी के चले जाने से ज़िंदगी रुकती तो ये दुनिया कब की ख़त्म हो जाती। मैंने कहा, वो मुड़ी। तुम खुद के साथ ज्यादती कर रही हो। उसने झटके से हाथ छुड़ा लिया।
मुझे पता है कि तुम क्या चाहते हो.... पर मेरी बात ग़ौर से सुनो... मुहब्बत ज़िंदगी में बस एक ही बार होती है.... सिर्फ एक बार... और मैं अपनी पहली मुहब्ब्त गवां चुकी हूं... अब यही मेरी तकदीर है... यही मेरा नसीब है... ये ... ये सफेद रंग जो उसे पसंद था... ये हमेशा लिबास बन कर मेरे साथ रहेगा... हमेशा...
बाहर से ढोलक की हल्की-हल्की आवाज़ अंदर आ रही थी, जिसमें हिबा की हिचकियां मिल गई थीं। मैंने उसे समझाना चाहा। और तुम्हें लगता है उसकी पसंद का सफेद रंग पहनने से सब अच्छा हो जाएगा? पहले जैसा? ये तंज़ उसे चुभ गया। नहीं, पहले जैसा कभी कुछ नही होगा... कुछ लौट कर नहीं आएगा... मैं किसी गुमान में नहीं हूं... कोई झूठी उम्मीद नहीं पाली है मैंने... मैं जानती हूं यही मेरी ज़िंदगी है... और यही मेरा नसीब... बस... ये सफेद रंग... उसके मेरे साथ होने का एक एहसास है...
मैंने हिबा के करीब आकर कहा लेकिन हिबा, क्या ये तुम्हें ठीक लगता है कि जिस रंग में वो तुम्हें देखकर खुश होता था, उस रंग को तो तुमने अफसोस का रंग बना दिया है... और.. वो तो अब उस दुनिया से लौट नहीं सकता... लेकिन मैं... मैं कहते-कहते रुक गया।
तुम क्या? क्या हो तुम? तुम्हें बस हीरो बनने का शौक है। चले जाओ यहां से। नफरत हो रही है मुझे तुम्हारी शक्ल देख देखकर। मुश्किल कर दिया है तुमने चार दिन मेरा यहां रहना। हिबा रोते-रोते फर्श पर बेढाल होकर बैठ गई। मुझे एहसास हो रहा था कि मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है। ज़िंदगी की तरफ लाने की अपनी ज़िद की वजह से मैंने हिबा को कुछ और ग़म दे दिया है।
मैं वहां से चल दिया... और अगले ही सुबह मैं एक फ्लाइट की विंडो सीट पर बैठा था। सर पुट ऑन योर सीट बेल्ट प्लीज़ – एयर होस्टेस ने मुझसे कहा तो मैं जैसे एक ख्याल से बाहर आया। मेरे ज़हन में अब तक हिबा की आवाज़ की वो तलखी गूंज रही थी। मैं रात को ही शादी वाला घर छोड़कर, शादमान को कोई इमरजेंसी का बहाना बनाकर वहां से निकल आया था। आते वक्त मैंने हिबा के कमरे में उन रंग बिरंगी चूड़ियों का डिब्बा एक सॉरी के नोट के साथ छोड़ दिया था। लेकिन मुंबई लौटने के बाद भी मेरा मन जैसे दिल्ली में छूट गया था। ज़िंदगी, बेमक़सद लग रही थी। सुबह ऑफिस जाता। देर तक काम करता और खुद को इतना थका लेता कि घर आकर बिस्तर पर गिर जाता। मैं खुद को एक पल भी खाली नहीं रखता था, हिबा को भूलने का बस यही एक तरीका था। मुझे वापस लौटे हुए एक डेढ़ महीना हो गया था। एक शाम जब ऑफिस से लौटा तो शादमान का मैसेज आया, कहां है? घर लौटा? मैंने जवाब नहीं दिया। बिस्तर पर लेट गया, बिना कपड़े बदले बिना खाना खाए। मालूम नहीं नींद कब लग गई। डोरबेल की आवाज़ से आंख खुली। दरवाज़ा खोला तो शादमान और ज़रीना भाभी खड़े थे।
कहां है यार तू, शादमान ने अंदर आते ही कहा, तो मैं हैरानी से उसे देखने लगा। उसने बताया कि वो दो हफ्ते से आए हुए हैं। तभी से मुझसे मिलने की कोशिश कर रहे थे। इतने दिन से मामला टल रहा था, पर आज तो आना ही पड़ा। तेरी भाभी के साथ अब हिबा भी ज़ोर डाल रही थी। शादमान ने जैसे ही ये बात कही मैंने देखा कि धीरे-धीरे ज़रीना भाभी के पीछे से हिबा निकलकर सामने आई। पीले सूट पर शीशों वाला गुलाबी दुपट्टा ओढ़े अब वो मेरे सामने थी। To be continued...
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