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क्या कच्छ से साबरमती तक गुजराती का एक ही स्वरूप है?

क्या कच्छ से साबरमती तक गुजराती का एक ही स्वरूप है?

साहित्य आजतक के मंच पर रविवार को गुजरात के साहित्य और भाषा पर चर्चा हुई. कच्छ से साबरमती, गुजराती साहित्य का उत्सव विषयक सत्र में लेखक और अनुवादक दीपक मेहता, कवि और अनुवादक दिलीप झावेरी, साहित्य अकादमी की युवा पुरस्कार विजेता कवयित्री एषा दादावाल ने गुजराती भाषा और इसके साहित्य के विविध पहलुओं पर चर्चा की.

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