लखनऊ और फैजाबाद के संगीत इतिहास में बेगम अख़्तर सिर्फ आवाज नहीं, एक तहजीब, एक खास किस्म की नफासत का नाम हैं. लेकिन उनकी शख्सीयत की सबसे बड़ी खूबी केवल उनका सुर नहीं, उनका जबरदस्त स्वाभिमान भी था. यतींद्र मिश्रा ने अपने एक किस्से में इसे बयां किया जिसे वो अपने परिवार की दास्तानों में आज भी गर्व से संजोकर रखते हैं.
यतींद्र मिश्रा ने बताया कि ये बात तब की है जब 1935 से 1945 के बीच बेगम अख़्तर अक्सर फैजाबाद आती-जाती थीं. उसी दौरान यतींद्र के पूर्वज जिन्हें इलाके में एक सम्मानित खानदान माना जाता था. उन्होंने बेगम अख्तर को उनकी कला और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर पूरी 50 एकड़ जमीन नजर की थी.
समय बदला. 1945 आते-आते बेगम का मन स्थायी रूप से लखनऊ में बस जाने का हुआ. ऐसे में उन्होंने सोचा कि यह जमीन परिवार को लौटानी चाहिए क्योंकि उनकी नजर में इनाम की असली कीमत वही थी जिसे बिना गुजारे या बिना जरूरत के बेच न दिया जाए. जब उन्होंने ज़मीन लौटानी चाही तो यतींद्र मिश्रा के दादाजी ने कहा, 'बेगम साहिबा, इसे रख लीजिए. बेच दीजिए. हम तो ये आपको इज्जत में दे चुके हैं, इसे वापस क्यों कर रही हैं?'
यह भी पढ़ें: दर्द, वफादारी, नफ़ासत और सुकून… यतींद्र के किस्सों और मालिनी के सुरों की संगत में गूंजे बेगम अख़्तर के फ़साने
बेगम मुस्कुराईं, वही उनके जाने-पहचाने अंदाज में बोलीं, 'हुजूर, मैंने आपकी जमीन रखी, उसे जोता, अनाज उगाया. अब जब मैं लखनऊ जा रही हूं तो इस पर मेरा हक नहीं बनता.'
और फिर… इतिहास के सामने मैं अपनी इज्जत क्यों गिराऊं? ये लिखा जाए कि आप जैसे खानदान ने एक गायिका को इनाम दिया… और मैंने उसे बेचकर शहर छोड़ दिया. मैं ये स्वीकार नहीं कर सकती. मैं आपकी इज्जत के बराबर इज्जत चाहती हूं इसलिए वापस कर रही हूं.
यह भी पढ़ें: शौहर की मनाही, AIR लखनऊ के डायरेक्टर ने की गुप्त रिकॉर्डिंग... 8 साल बाद ऐसे हुआ था बेगम अख़्तर का कमबैक
उनके इस फैसले में कोई दिखावा नहीं था. ये बेगम अख़्तर के भीतर बैठा हुआ असली स्वाभिमान था. यतींद्र मिश्रा बताते हैं कि वह 50 एकड़ जमीन आज भी उनके परिवार के पास है और उसका मूल खसरा-खतौनी आज भी दो नामों के साथ दर्ज है, 'अख़्तरी बाई फैजाबादी बनाम डॉक्टर रविंद्र मोहन मिश्र'