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Sahitya Aajtak 2023: सिनेमा का भारतीय समाज और संस्कृति पर क्या है असर? बताई गई यह बातें

Sahitya Aajtak 2023: साहित्य आजतक 2023 के तीन दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन साहित्य और सिनेमा जगत से जुड़ी शख्सियत शिरकत कर रहे हैं. संस्कृति, साहित्य, सिनेमा और समाज पर चर्चा करने के लिए लेखक, शिक्षाविद, समाजसेवी जुड़े.

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साहित्य आजतक 2023.
साहित्य आजतक 2023.

Sahitya Aajtak 2023: साहित्य आजतक 2023 के तीन दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन साहित्य और सिनेमा जगत से जुड़ी शख्सियत शिरकत कर रहे हैं. संस्कृति, साहित्य, सिनेमा और समाज पर चर्चा करने के लिए लेखक, शिक्षाविद, सदस्य सचिव आईजीएनसीए डॉ. सच्चिदानंद जोशी,  प्रभा खेतान फाउंडेशन के ट्रस्टी लेखक, संस्कृतिकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, वन्यजीव प्रेमी संदीप भूतोरिया, स्ट्रीट थिएटर कार्यकर्ता और कहानीकार, थिएटर निर्देशक, अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द गौड़ के अलावा राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्तकर्ता लेखक एवं पत्रकार अनंत विजय साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद रहे. सभी ने सिनेमा का समाज पर क्या असर है. इस पर चर्चा की.

'भारत यानी एक सांस्कृतिक देश'

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने आज की दौर की भारतीय संस्कृति पर कहा ''जब हम विदेश में जाते हैं और कहते हैं कि मैं भारत से हूं तो कोई यह नहीं कहता कि India is a great economy, India is a great scientific power or great army, सभी लोग यह कहते हैं कि India is a great Culture.''

उन्होंने आगे कहा ''भारतीय होने की पहचान संस्कृति की पहचान है. भारत का महत्व मूलत: और अंतत: सांस्कृतिक महत्व है. आज के दौर में और बाद के दौर में संस्कृति शाश्वत रहने वाली है. समस्या केवल यह है कि समय के साथ-साथ संस्कृति अपना रूप बदलती है. नित्य नूतन, चित्त पुरातन. भारत यानी एक सांस्कृतिक देश.''

'संगीत की कोई भाषा नहीं होती'

राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्तकर्ता लेखक और पत्रकार अनंत विजय ने सिनेमा का समाज पर क्या असर है इस पर चर्चा करते हुए कहा ''हिंदी दिवस के मौके पर कई विदेश साहित्यकारों जो कि हिंदी के लिए काम कर रहे हैं. उन्हीं में शामिल ऑस्ट्रेलिया के प्रोफेसर ने बताया था कि स्टूडेंट्स को गिनती सिखाने के लिए हिंदी गाने 'वन टू का फोर, फोर टू का वन' बजाते हैं. वहीं, सिंगापुर में संध्या नाम की हिंदी विभाग की प्रोफेसर ने बताया कि हिंदी फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस के एक सीन में अभिनेत्री दीपिका पादुकोन अलग-अलग रंग की साड़ी बदलती नजर आती है. उस क्लिप को दिखाकर स्टूडेंट्स को रंगों के नाम बताए जाते हैं.

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उन्होंने आगे कहा कि भारतीय समाज में कहा गया कि सीरियल, सिनेमा ने बच्चों को बिगाड़ दिया है. मगर, परिजनों को बच्चा का लालन-पालन ऐसे करना चाहिए जिससे उन पर सिनेमा के कथित दुष्प्रभावों का असर नहीं पड़े. उन्होंने आगे कहा कि वह दक्षिण अफ्रीका गए थे. टैक्सी ड्राइवर हिंदी गाने सुन रहा था. मैंने पूछा तो उसने कहा कि भाषा तो समझ नहीं आती लेकिन संगीत अच्छा है और संगीत की कोई परिभाषा नहीं होती.''

'विदेश में आदमी अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा महसूस करता है'

प्रभा खेतान फाउंडेशन के ट्रस्टी जो कि लेखक, संस्कृतिकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता और वन्यजीव प्रेमी भी हैं संदीप भूतोरिया ने सिनेमा और समाज पर अपनी राय दी. उन्होंने कहा "विदेश में आदमी अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा महसूस करता है. हम जितना दूर जाते हैं किसी चीज से अंत में उसी चीज से आखिर में उसी चीज से जुड़ना पसंद करते हैं. मैंने 60 से ज्यादा देशों की यात्रा की है. मैं हमेशा वहां मौजूद अप्रवी भारतीयों से मिलता था.''

उन्होंने आगे बताया ''सूडान में एक इमारत के बाहर 'कभी-कभी' फिल्म का पोस्टर लगा हुआ था. वहां कोई सिनेमाहॉल नहीं थी. मगर, एक व्यक्ति लोगों को टिकट लेकर टिकट दिखाता था. मुझे विदेश में सत्यनारायण की कथा में शामिल होने जाना था. मेरे पास कुर्ता-पजामा नहीं था. मगर, जब मैं वहां पहुंचा तो वहां पर सभी लोग कुर्ता-पजामा में थे. यह फिल्मों के कारण ही हुआ है.शादियों में जूता छिपाने की प्रथा जो पूरे विश्व में फैली यह सिनेमा के ही कारण है.''

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'संस्कृति, साहित्य, समाज और संस्कृति लगातार एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं'

स्ट्रीट थिएटर कार्यकर्ता और कहानीकार, थिएटर निर्देशक, अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द गौड़ ने कहा ''संस्कृति, साहित्य, समाज और संस्कृति लगातार एक-दूसरे से प्रभावित होती हैं और विकास करती हैं. रंगमंच में तमाम विषय के साथ सिनेमा भी आता है. एकता कपूर और मेरे रंगमच में जमीन-आसमान का अंतर है. एकता कपूर समाज के लिए रिस्पॉन्सिबल, अकाउंटेबल नहीं हो सकती हैं, लेकिन मैं मेरी समाज के लिए अकाउंटेबल हूं है. क्योंकि मैं अपनी संस्कृति, समाज को देखता हूं. समाज निर्माण में मेरी भूमिका है. जब मैं कहीं नाटक करता हूं तो वहां के लोगों की परेशानी, वहां के लोगों की दिक्कतें संवाद के रूप में उनके सामने लेकर जाता हूं.''

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