महाकुंभ को लेकर लखनऊ में आजतक साहित्य के मंच पर लेखक और राजनयिक, द शिव ट्रायोलजी और राम चंद्र सीरीज के लिए मशहूर अमीश त्रिपाठी ने बताया कि उनका महाकुंभ जाने का अनुभव बहुत अच्छा रहा. शांति का अनुभव हुआ. ये परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है. कांस्य युग की भारत की संस्कृति आज भी जिंदा है. हजारों साल पुरानी परंपरा आज भी हम मनाते हैं. आधुनिकिकरण होने के बावजूद परंपरा हमें पूर्वजों से जोड़ती है.
अमीश त्रिपाठी ने कहा कि ये सिर्फ कुंभ नहीं है, महाकुंभ है. एक यूरोपीयन लेखक ने अंग्रेजी में कहा था कि परंपरा का मतलब ये नहीं है कि आप राख की पूजा करें, इसका मतलब ये है कि आप अग्नि को संभाल कर रखें. हम प्रयागराज जाकर हम उस परंपरा को मना रहे हैं, अपने पूर्वजों को याद कर रहे हैं तो ये अग्नि में समाहित है. बता दें कि उन्होंने कुंभ मेले पर डाक्यूमेंट्री भी बनाई जो एक टीवी चैनल पर प्रसारित की गई है.
यह भी पढ़ें: साहित्य आजतक पर मुकुल कुमार और राकेश द्विवेदी की रचनाओं ने मोहा मन, दमदार प्रस्तुति ने लूटी वाहवाही
हजारों साल पहले भारत का वर्चस्व दुनिया में ऊंचा था!
अमीश त्रिपाठी ने समाज में विभाजन को लेकर कहा कि हजार साल पहले भारत का वर्चस्व पूरी दुनिया पर था. पूरी दुनिया की जीडीपी में 35 फीसदी भारत का हिस्सा था. साउथ एशिया, सेंट्रल एशिया, ईरान और रोमन साम्राज्य में भी बड़ी संख्या में लोग भारतीय संस्कृति का पालन करते थे. विदेशी हमारी संस्कृति सीखते थे. हमारा वर्चस्व वो था.
12वीं सदी से हमने हारना शुरू किया
अमीश ने आजतक साहित्य के मंच पर बताया कि 12वीं सदी में एक बड़ा बदलाव ये हुआ कि हम हर आक्रांताओं के सामने हारते गए. आक्रांता बार-बार आते थे. उसके पहले ऐसा नहीं होता था. एलेक्जेंडर आए थे जिन्हें हमने बार्डर के उस तरह से ही हरा दिया था. हमने अंदरूनी विवाद के कारण हारना शुरू किया. हम खुद अपने आपको हरा देते थे. भारत में किले का दरवाजा हमेशा अंदर से खुला है. हमारे पूर्वजों में बहुत अच्छी बातें हैं लेकिन उनकी एक गलती एक-दूसरे से लड़ने की थी. हम उसपर रोक लगाएं.
यह भी पढ़ें: 'उपेक्षित, प्रताड़ितों की आवाज बनने के लिए जरूरी है व्यंग्य', साहित्य आजतक के मंच पर बोले व्यंग्यकार
जलियांवाला बाग में गोली चलाने वाले ने क्यों नहीं सोचा कि अपने लोग हैं!
अमीश त्रिपाठी ने आगे कहा कि जलियांवाला बाग में गोली चलाने का आदेश जनरल डायर ने दिया था और वो अंग्रेज था लेकिन गोली चलाने वाली सभी भारतीय थे. उनमें किसी ने नहीं सोचा कि ये मेरे लोग हैं. गोरे ने आदेश दिया अपने ही निहत्थे लोगों पर गोली चला दी गई. ये हमारी नाकामी रही है. हमारे समाज में ये एक विष है और इसे रोकना होगा. जाति, धर्म किसी भी मुद्दे पर हम लड़ लेते थे, हम खुद हार जाते थे. एकता बनाए रखने की जरूरत है. भाषा, मजहब और पंथ के इतर सभी लोग एक हैं, अपने हैं.