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5 साल आश्रम में रहे फिर कैसे एक्टर बने 'चंद्रकांता वाले क्रूर सिंह'? बताया अध्यात्म-अभिनय में कनेक्शन

साहित्य आजतक 2024 में एक्टर अखिलेन्द्र मिश्रा ने अध्यात्म और अभिनय पर खास बातचीत की. उन्होंने दोनों के बीच का कनेक्शन बताया. एक्टर ने सिनेमा में अपनी जर्नी पर भी बात की.

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अखिलेन्द्र मिश्रा
अखिलेन्द्र मिश्रा

अखिलेन्द्र मिश्रा एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के जाने माने एक्टर हैं. उन्होंने महाभारत, उड़ान, चंद्रकांता जैसे कई टीवी शोज में अहम किरदार निभाए हैं. फिल्मों में भी उनका योगदान काबिल-ए-तारीफ रहा है. उन्होंने अपनी दमदार एक्टिंग से हमेशा लोगों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ी है. अब साहित्य आजतक 2024 में एक्टर ने अध्यात्म और अभिनय पर खास बातचीत की. 

एक्टिंग कैसे करें, कौन समझाएगा?
अखिलेन्द्र मिश्रा ने एक्टिंग को लेकर एक किताब लिखी है, जिसका नाम है- अभिनय, अभिनेता और अध्यात्म. एक्टर ने साहित्य आजतक के मंच पर अध्यात्म और अभिनय के बीच के कनेक्शन और तालमेल को समझाया. 

किताब के बारे में क्या बोले अखिलेन्द्र?
मॉडरेटर अर्पिता आर्या को संग बातचीत में एक्टर ने कहा- हिंदी ने अभिनय को लेकर कोई किताब नहीं थी. मैंने ये तय किया था कि अगर जिंदगी में मैं कुछ बना, तो मैं आने वाली पीढ़ियों के लिए हिंदी में अभिनय को लेकर किताब लेकर आऊंगा, जो आपके सामने है. 

अभिनय और अध्यात्म में क्या कनेक्शन है?
इसपर एक्टर बोले- अध्यात्म मूल है, मनुष्य का जन्म भी अध्यात्म है, हम सांस लेते हैं, उसे छोड़ते हैं ये प्रक्रिया भी अध्यात्म है. अपने अंदर के इंसान को जानना ही अध्यात्म है. हमनें अभिनय का आधार अध्यात्म रखा है. एक्टर एक स्पिरिचुअल पर्सनैलिटी है. ये किताब के आधार हैं. कोई भी किरदार जो एक्टर करता है, वो स्पिरिचुअल जर्नी होती है. 

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'कोई एक्टर माने या ना माने कि वो आध्यात्मिक नहीं है, वो इसमें विश्वास नहीं करता. लेकिन अध्यात्म का मतलब ये नहीं है कि आप किसी धर्म की तरफ जाएं, बल्कि अपने अंदर के इंसान को जानना ही अध्यात्म है. एक्टर जब भी कोई किरदार करता है तो पूरा प्रोसेस ही अध्यात्म है.' 

बनना चाहते थे एंजीनियर, पर कैसे बने एक्टर?
इसपर एक्टर बोले- मेरा जन्म बिहार में ब्राह्मण परिवार में हुआ. पूजा पाठ, भाषा, व्यक्तित्व को लेकर संस्कार बचपन से ही मिलते चले गए. मैंने बचपन में 5 साल गुरुकुल में बिताए हैं. मैं पांच साल नदी किनारे आश्रम में गुरु जी से पढ़ा हूं. मैं जब अभिनय में आया तो मेरे अंदर का अध्यात्म भी निकल आया. कहीं ना कहीं हर बेहतरीन एक्टर के अंदर वो साधना है, लेकिन उनको मानना नहीं है. 

विलेन के रोल के बाद क्या डरने लगते हैं लोग? 
इसपर चंद्रकांता में अपने किरदार क्रूर सिंह को लेकर एक्टर बोले-  क्रूर सिंह के किरदार की मेरी अलग कहानी है, क्योंकि मेरा चेहरा ढका रहता था, तो लोग पहचानते नहीं थे. लेकिन जब मैं बोलता था, तो लोग पलटकर देखते थे और पूछते थे कि क्या आप वहीं हैं?

अखिलेन्द्र मिश्रा ने बताया कि उनके सभी किरदारों में उनके दिल के करीब कौन सा किरदार है. एक्टर बोले- मैं जिस प्रोफेशन में हूं, उसमें अभी तक ऐसा कोई किरदार आया नहीं. हालांकि, चंद्रशेखर आजाद का किरदार, जो मैंने 'लीजेंड ऑफ भगत सिंह' में निभाया है, वो मेरे दिल के करीब है. लेकिन सबसे जो मुश्किल किरदार है, वो मुझे ईश्वर ने देकर भेजा है. वो है एक बेटे का किरदार, पति का किरदार, अपने समाज और पीढ़ियों के प्रति मैं जो किरदार निभा रहा हूं, वो बहुत मुश्किल है. हर व्यक्ति अपना-अपना किरदार निभा रहा है. 

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सिनेमा और नाटक में क्या है अंतर?

एक्टर होसे- सिनेमा और नाटक दो परिस्थितियों का मिलन है. एक परिस्थिति दर्शकों की है, जो नाटक देखने आए हैं और दूसरी उसकी है, जो पर्दे पर चल रहा है. दोनों की परिस्थितियों का मिलन ही सिनेमा है. जैसे आप फिल्म 'लगान' देख रहे हैं. कहानी अंग्रेजों के जमाने की है, लेकिन दर्शक पीएम मोदी के जमाने के हैं. पीएम मोदी के जमाने के दर्शक अगर अंग्रेजों की कहानी देख रहे हैं तो ये सिनेमा है. 

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