
Breast Milk Production Process: जब एक मां बच्चे को जन्म देती है, तो उसके शरीर में एक अद्भुत केमिकल प्रोसेस होती है जिससे मां के शरीर में बच्चे को पर्याप्त पोषण देने के लिए दूध तैयार होने लगता है. इसे प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ संयोजन माना जाता है क्योंकि मां का शरीर ही सबसे पहले अपने बच्चे की आवश्यकताओं को समझता है. डिलीवरी के बाद मां का पहली बार जो दूध निकलता है, उसे कोलोस्ट्रम (Colostrum) कहते हैं. हालांकि कई बार कुछ महिलाओं को डिलीवरी के बाद दूध आने में समय लगता है तो कुछ को सही समय पर आ जाता है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, महिलाओं के शरीर में दूध बनना, डिलीवरी कैसी रही है, मां की सेहत कैसी है, जैसे कारकों पर निर्भर करती है.
दरअसल, ये सिर्फ एक प्रोसेस नहीं है बल्कि मां और बच्चे के बीच बनने वाला पहला गहरा रिश्ता होता है जिसमें प्यार, स्पर्श और सुऱक्षा तीनों शामिल होते हैं. अब ऐसे में ये समझना कि मां के शरीर में दूध कैसे बनता है और किन कारणों से दूध की सप्लाई प्रभावित हो सकती है. यह न केवल जानकारी के लिए जरूरी है बल्कि मां बनने वाली महिलाओं को मानसिक रूप से तैयार होने के लिए भी काफी जरूरी है.
मुंबई के फोर्टिस हीरानंदानी हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. हिना शेख ने Aajtak.in को बताया, 'डिलीवरी के कुछ घंटों या दिनों के भीतर स्तनों में जो पहला दूध बनता है, उसे कोलोस्ट्रम कहा जाता है. यह दूध गाढ़ा, सुनहरा और पोषक तत्वों से भरपूर होता है.'
'इसमें प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स, इम्युनोग्लोबुलिन ए (एंटीबॉडी), लैक्टोफेरिन (प्रोटीन जो संक्रमण को रोकने में मदद करता है), ल्यूकोसाइट्स (श्वेत रक्त कोशिकाएं) और एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर (एक प्रोटीन जो कोशिका वृद्धि करता है) होती हैं जो आपके शिशु की इम्यूनिटी बनाने में मदद करते हैं. इस दूध को बच्चे की प्राइमरी वैक्सीन कहा जाता है क्योंकि इसमें ऐसी एंटीबॉडीज होती हैं जो नवजात को शुरुआती इंफेक्शन से बचाने में मदद करते हैं.'
'इस प्रोसेस को सिर्फ दूध निकलना नहीं कहते बल्कि यह कई हार्मोनों, ग्रंथियों, नसों और सिग्नल्स का ग्रुप होता है इसलिए बच्चे को शुरुआत में 'कोलोस्ट्रम' दूध पिलाना होता है ताकि उसके बाद मैच्योर मिल्क बनने लगे. शिशु के जन्म के 2 से 4 दिनों के अंदर कोलोस्ट्रम ब्रेस्ट मिल्क में बदल जाता है.'

डॉ. हिना शेख ने बताया, 'डिलीवरी होने के बाद हम बच्चे को मां को देते हैं और उसे हम कंगारू मदर केयर यानी स्किन से स्किन कॉन्टैक्ट कहते हैं. उसके बाद जब बच्चा निपल्स को मुंह में लेता है या फिर स्टिमुलेट करता है तो नर्व में एक हॉर्मोन रिलीज होता है जिसे प्रोलैक्टिन कहते हैं. फिर प्रोलैक्टिन रिलीज होने के बाद में ऑक्सीटोसिन रिलीज होता है. फिर प्रोलैक्टिन और ऑक्सीटोसिन ये 2 हॉर्मोन्स की वजह से बॉडी में मिल्क प्रोडक्शन चालू हो जाता है.'
'शुरुआत में जो मिल्क (कोलोस्ट्रम) होता है, वो बहुत ही गाढ़ा सा लिक्विड होता है जो बच्चे के लिए बहुत जरूरी होता है. वहीं जो मैच्योर मिल्क होता है, उसको बनने के लिए 3 से 5 दिन लगते हैं यानी बेसिकली बेबी के स्टिमुलेशन की वजह से हॉर्मोन रिलीज होते हैं और हार्मोन्स की वजह से मिल्क प्रोडक्शन चालू होता है.'
डॉ. हिना कहती हैं, 'दूध बनने में जो नॉर्मल डिलिवरी और सी सेक्शन में थोड़ा डिफरेंस है. नॉर्मल डिलिवरी वाली महिलाओं को दूध जल्दी आ जाता है और सी-सेक्शन में थोड़ा लेट होता है. इसका कारण है कि सी सेक्शन के बाद मदर को टांके लगे रहते हैं, रिकवरी में समय लगता है तो इनिशियल फर्स्ट डे बेबी को फीडिंग करने में डिफिकल्टी हो जाती है. तो बेसिकली स्किन टु स्किन कॉन्टैक्ट जब बेबी का डिले होता है तो जैसे हमने पहले बताया स्किन तो स्किन कॉन्टैक्ट से हॉर्मोन रिलीज होता है और जितना जल्दी हम स्किन तो स्किन कॉन्टैक्ट करें उतना ही जल्दी मिल्क प्रोडक्शन इनक्रीज हो जाएगा. कोशिश यही करनी चाहिए कि डिलीवरी के बाद बेबी को स्किन टु स्किन कॉन्टैक्ट कराया जाए.'
'लेकिन मां को स्टिच लगे होते हैं तो बेबी का स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट भी डिले हो जाता है और उसकी वजह से मिल्क प्रोडक्शन में डिले होता है. मैच्योर मिल्क दोनों को सेम टाइम पर आना चालू होता है. महिलाएं लेटी भी हुई हैं तो जो नर्स हैं या जो भी हैं रिलेटिव, वो बेबी को लेकर थोड़ा स्किन टु स्किन फीडिंग कॉन्टैक्ट दें ताकि उनका दूध बनने में डिले नहीं हो.'
क्लीवेंडर क्लीनिक के मुताबिक, नॉर्मल डिलीवरी के बाद अधिकांश माताओं में बच्चे को जन्म देने के 2–3 दिन बाद दूध बनना शुरू हो जाता है. वहीं सी-सेक्शन (C-section) के बाद या अन्य जटिलताओं (जैसे स्वस्थ न होना, डिलीवरी में मुश्किल होना, डिलीवरी में ब्लीडिंग होना) के कारण यह समय थोड़ा लंबा हो सकता है. सी-सेक्शन के मामले में दूध आने में थोड़ी देरी देखी गई है.
डॉ. हिना ने कहा, 'मिल्क प्रोडक्शन कम होने के बहुत सारे कारण हैं. पहला कॉमन कारण ये है कि जब पहली बार बेबी और मदर के बीच जो बॉन्ड बनता है वो काफी नया होता है तो एजुकेशन भी कम रहती है. ऐसे में कोलेस्ट्रम आता है तो मदर को लगता है कि मिल्क कम आ रहा है. लेकिन उन्हें ये जानने की जरूरत होती है कि कोलोस्टम की सप्लाई कम ही रहती है और मैच्योर मिल्क की सप्लाई अधिक रहती है लेकिन उसे आने में कुछ दिन का समय लगता है. इसलिए नई माताओं को अवेयरनेस, नॉलेज देना जरूरी होता है और उनकी काउंसलिंग भी करनी चाहिए.'
'वहीं बेबी का जो लैच होता है वो प्रॉपर होना चाहिए. लैचिंग और सकिंग रिफ्लेक्स अगर अच्छे से आ गया तो फिर मिल्क प्रोडक्शन में कोई प्रॉब्लम नहीं होती. कई बार बच्चे को अगर कुछ प्रॉब्लम है जैसे कि टंग-टाई है तो बच्चा सकिंग नहीं कर पाता जिससे मिल्क प्रोडक्शन कम होने लग जाता है. वहीं अगर मां को कोई इश्यूज हैं जैसे कि इनवर्टेड निपल्स, रिट्रैक्टेड निपल्स या फिर सोर निपल्स. तो भी वो पूरी तरह से लैचिंग (निप्पल और एरोला के एक बड़े हिस्से को पकड़ना) नहीं हो पाती.'
'अगर मदर की कोई प्रीवियस सर्जरी हुई है, लपेक्टोमी हुई है या कुछ ब्रेस्ट के इश्यूज है तो उस वजह से भी मिल्क प्रोडक्शन कम हो जाता है. मदर को अगर कुछ प्रॉब्लम हैं जैसे हाइपोथाइरॉइडिज्म, डायबिटीज या फिर पीरियड्स जल्दी चालू हो जाते हैं तो उसकी वजह से भी मिल्क सप्लाई थोड़ा कम हो जाती है.'
'जो मुख्य प्रॉब्लम है वो ये है कि स्ट्रेस मिल्क प्रोडक्शन को कम कर देता है. कारण है कि स्ट्रेस की वजह से कोर्टिसोल रिलीज होता है जिसकी वजह से मिल्क प्रोडक्शन कम हो जाता है. तो काउंसलिंग जरूरी होता है कि स्ट्रेस ना लें. जितना स्ट्रेस लेंगे उतना ज्यादा मिल्क प्रोडक्शन कम हो जाएगा.'
'कई बार कुछ एंटी डिप्रेशन, ओवर द काउंटर मेडिसिन्स या फिर कुछ सर्दी-खांसी की दवाी लेने से भी मिल्क प्रोडक्शन कम हो सकता है. तो बहुत सारे रीजन्स होते हैं मिल्क सप्लाई कम होने के.'
दूध की सप्लाई बढ़ाने के लिए न्यूट्रिशन अच्छा होना चाहिए. मदर का कैलोरी इंटेक अच्छा होना चाहिए. वाटर इंटेक अच्छा होना चाहिए कम से कम 3 से 4 लीटर. मां का रेस्ट टाइम और रिकवरी टाइम भी अच्छा होना चाहिए. कम से कम 8 से 9 घंटे की गहरी नींद जरूर लें. इसके अलावा खाने में प्रोटीन, डेयरी प्रोडक्ट की मात्रा बढ़ाकर मिल्क प्रोडक्शन को तेज कर सकते हैं.
एक्सपर्ट ये भी कहते हैं कि यदि बच्चे को दोनों ब्रेस्ट से फीडिंग कराएं ताकि उनमें स्टिमुलेशन बना रहे और मिल्क प्रोडक्शन में मदद मिलती रहे.