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दाल में क्यों लगाते हैं हींग का तड़का? सिर्फ स्वाद नहीं, इसके पीछे छिपा है वैज्ञानिक कारण

दाल में हींग डालने का कारण केवल स्वाद बढ़ाना नहीं है, बल्कि इसका एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक आधार भी है. हींग में मौजूद सल्फर कंपाउंड पेट में गैस बनने की प्रक्रिया को कम करते हैं और आंतों की मांसपेशियों को आराम देते हैं, जिससे पेट फूलने और क्रैम्प की समस्या नहीं होती.

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दाल में हींग का तड़का लगाने से टेस्ट बढ़ जाता है. (Photo: ITG)
दाल में हींग का तड़का लगाने से टेस्ट बढ़ जाता है. (Photo: ITG)

दाल हर घर में बनती है, भले ही उसके बनाने के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं. दालों की कई किस्में भारत में पाई जाती हैं जैसे अरहर, मूंग, छिलके वाली मूंग, उड़द, चना आदि. इन दालों को जब बनाया जाता है तो अधिकतर में एक खास मसाला डाला जाता है जिसे हींग कहते हैं. हींग (Asafoetida) एक नेचुरल मसाला है, ये Ferula नाम के पौधे के जड़ से जो लिक्विड रिलीज होता है, उससे बनता है. हींग की सीधी गंध तीखी होती है लेकिन पकाने पर इसका स्वाद हल्का, मिट्टी जैसा और दाल-सब्जी का स्वाद बढ़ाने वाला बन जाता है. लेकिन क्या आपने कभी जानने की कोशिश की है कि आखिर दालों में हींग क्यों डाली जाती है? दरअसल, स्वाद बढ़ाने के अलावा इसका एक वैज्ञानिक कारण भी है जो काफी कम लोग जानते हैं.

हींग के बारे में ये भी जानें

हींग का पौधा अधिकतर ईरान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान जैसे शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है और भारत में मुख्यतः कृषि उत्पाद के रूप में आयात होता है. हींग के पौधे की जड़ पर पहले चीरा लगाते हैं तो उस कटे हुए पौधे की जड़ से दूध जैसा रस (रेजिन) बाहर आता है. यह लिक्विड धीरे-धीरे गाढ़ा होने लगता है और जमकर कच्चा हींग बन जाता है. कई हफ्तों बाद यह रेजिन सूखकर खुरदुरे, भूरे या लाल-पीले ठोस टुकड़े के रूप में बन जाता है और यही यही असली हींग होती है.

दाल में हींग डालने का वैज्ञानिक कारण

दालों की सेल वॉल मुख्य रूप से सेल्यूलोज, हेमीसेल्यूलोज और पेक्टिन से बनी होती है. सेल्यूलोज एक कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट (β-1,4 linked glucose chains) है, जिसे इंसानी डाइजेस्टिव सिस्टम सीधा नहीं तोड़ सकता क्योंकि इंसानी डाइजेस्टिव सिस्टम के पास सेल्युलेस एंजाइम (Cellulase) नहीं होता.

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इस कारण दाल का थोड़ा हिस्सा आंत तक बिना टूटे पहुंचता है और वहां पहुंचकर गैस बनाने वाले बैक्टीरिया से दाल का फर्मेंटेशन होता है. इसके कारण पेट में गैस बनना, पेट फूलना और पेट में भारीपन की समस्या हो सकती है.

ऐसे में जब आप दाल में हींग डालते हैं तो हींग में मौजूद वाष्पशील सल्फर कंपाउंड गट माइक्रोबियल प्रोसेस (Fermentation) को बैलेंस करते हैं जिससे गैस नहीं बनती. वहीं हींग में मौजूद Antispasmodic कंपाउंड्स आंतों की मसल्स को रिलैक्स रखते हैं और पेट फूलने और क्रैम्प की समस्या नहीं होती.

हींग दाल में मौजूद सेल्यूलोज को सीधे नहीं तोड़ती लेकिन यह दाल में मौजूद जटिल कार्बोहाइड्रेट (Oligosaccharides) की वजह से होने वाले फर्मेंटेशन को कम करती है जिससे अप्रत्यक्ष रूप से सेल्यूलोज बेस्ड डिस्कंफर्ट कम होता है. इसलिए दाल खाते समय आराम महसूस होता है.

हींग का इस्तेमाल कैसे करें?

दाल में तड़के के रूप में हींग को जीरा, सरसों के साथ मिलाकर 1–2 चुटकी गर्म तेल में डालें. ध्यान रखें कि आप हमेशा खड़ी हींग ही इस्तेमाल करें, हींग का पाउडर यदि आप मार्केट से खरीदते हैं तो वो मिलावटी हो सकता है.

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