अडानी ग्रुप पर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच की मांग वाली याचिकाओं पर मंगलवार 2 मार्च सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा. मामले में कोर्ट ने 17 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था. तब कोर्ट ने सीलबंद लिफाफे में केंद्र के सुझावों को स्वीकार करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया था और कहा था कि हम इस मामले में पूरी तरह से पारदर्शिता बनाए रखना चाहते हैं.
17 फरवरी को CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने अडानी- हिंडनबर्ग केस की सुनवाई की थी. इस दौरान बेंच ने निवेशकों के हितों में "पूर्ण पारदर्शिता" बनाए रखने की वकालत करते हुए कहा कि वह बंद लिफाफे में केंद्र के सुझाव को स्वीकार नहीं करेगी. दरअसल, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता की ओर से केंद्र सरकार के सुझावों वाला सीलबंद लिफाफा बेंच को सौंपा गया था. लेकिन बेंच ने कहा कि हम आपके द्वारा सीलबंद कवर सुझाव को स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि हम पूरी पारदर्शिता बनाए रखना चाहते हैं.
क्या है मामला?
बता दें कि हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि अडानी ग्रुप की लिस्टेड सात कंपनियां ओवरवैल्यूड हैं. रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि अडानी समूह दशकों से स्टॉक हेरफेर और मनी लॉन्ड्रिंग में लगा हुआ है. अपने जवाब में अडानी समूह ने हिंडनबर्ग पर कॉपी-पेस्ट करने का आरोप लगाया था. समूह ने कहा था कि या तो हिंडनबर्ग ने सही तरीके से रिसर्च नहीं किया है या फिर जनता को गुमराह करने के लिए उसने गलत तथ्य पेश किए हैं. 400 से अधिक पन्नों की प्रतिक्रिया में गौतम अडानी के नेतृत्व वाले समूह ने सभी आरोपों को भ्रामक बताया था. इसके बाद अडानी ग्रुप के शेयरों में तेजी से गिरावट हुई और गौतम अडानी दुनिया के अमीरों की लिस्ट में टॉप 20 से भी बाहर हो गए.