सुप्रीम कोर्ट ने चिकित्सा पेशेवरों के लिए दवाओं से जुड़े जोखिम तय करने को अनिवार्य बनाने की याचिका खारिज कर दी है. ये जनहित याचिका जस्टिस भूषण आर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लाई गई थी. याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण की दलील पर जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि फार्मेसियों में पहले ही इतनी भीड़ है. ऐसे में यह अनिवार्य करने वाला कदम व्यावहारिक नहीं है.
प्रशांत भूषण ने दलील दी कि किसी भी डॉक्टर के लिए प्रभावों के बारे में एक मुद्रित प्रोफार्मा रखना आसान है. जस्टिस गवई ने कहा कि हर मरीज के लिए अलग दवा और अलग दुष्प्रभाव होते हैं. ये व्यक्तिगत क्षमता और शारीरिक संरचना पर निर्भर करता है.
WHO के अलर्ट का दिया हवाला
कोर्ट का कहना था कि आपकी प्रार्थना और दलीलें बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं हैं. क्योंकि डॉक्टर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में लाए जाने से नाखुश हैं. इस पर वकील प्रशांत भूषण ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के हवाले से दलील दी कि डब्ल्यूएचओ का कहना है कि मरीजों को होने वाला नुकसान दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों के कारण होता है. इस पर जस्टिस विश्वनाथन का कहना था कि एकमात्र चीज जो की जा सकती है- वह है फार्मेसी में स्थानीय भाषा संकेतक.