बिहार में जातिगत जनगणना के जनगणना का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. सर्वोच्च अदालत ने जातिगत सर्वे का डेटा रिलीज करने पर बिहार सरकार को नोटिस भी जारी किया है. इस नोटिस में 4 हफ्ते के अंदर जवाब देने की बात कही गई है. सरकार के जवाब के बाद याचिकाकर्ता जवाब दाखिल करेंगे. आगे की सुनवाई जनवरी 2014 को होगी.
सुनवाई के दौरान जे खन्ना ने कहा कि राज्य सरकार या किसी भी सरकार को नीतिगत निर्णय लेने से नहीं रोका जा सकता है. अगर डेटा गलत है तो इसकी जांच की जाएगी. ऐसा करने के राज्य सरकार के अधिकार की जांच भी की जाएगी. हालांकि, याचिकाकर्ता का कहना है कि डेटा अवैध तरीके से एकत्र किया गया है, इसलिए उस पर कोई एक्शन नहीं होना चाहिए.
बता दें कि बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है. इनमें 27% अन्य पिछड़ा वर्ग और 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग है. यानी, ओबीसी की कुल आबादी 63% है. अनुसूचित जाति की आबादी 19% और जनजाति 1.68% है. जबकि, सामान्य वर्ग 15.52% है. नीतीश सरकार साढ़े तीन साल से जातिगत जनगणना करवाने की जिद पर अड़ी थी. सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातिगत जनगणना का प्रस्ताव विधानसभा और विधान परिषद से पास करवा लिया था. लेकिन इस साल जनवरी में जातिगत जनगणना का काम शुरू हुआ. हालांकि, सरकार इसे जनगणना नहीं बल्कि 'सर्वे' बताती है.
'जितनी आबादी, उतना हक'
इस साल अप्रैल में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया था. उन्होंने इस दौरान नारा दिया था- 'जितनी आबादी, उतना हक'.इसके साथ ही राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि सबका साथ-सबका विकास की बात करने वाली सरकार सभी जातियों का सही विकास करने के लिए जाति आधारित जनगणना कराने के खिलाफ है. इसी तरह का नारा दलितों के बड़े नेता कांशीराम ने भी दिया था. कांशीराम ने कहा था, 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी'.