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108 साल बाद अपने धाम काशी लौटी मां अन्नपूर्णा की मूर्ति

उत्तर प्रदेश के काशी में अन्नपूर्णा की प्रतिमा श्री विश्वनाथ के धाम में स्थापित हो गयी. मां की प्राण प्रतिष्ठा से एक बार फिर से काशी का वो रूप दिखायी पड़ा जिसके लिए काशी को जाना जाता है. मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा 108 साल बाद अपने धाम काशी वापस लौटी हैं. इस मौकs पर अन्नपूर्णा यात्रा और विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा हुई.

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Maa Annapurna
Maa Annapurna
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 08 साल बाद अपने धाम काशी लौटी मां अन्नपूर्णा
  • भक्तों मेंं बंटेगा मंदिर का खजाना

मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा 108 साल बाद अपने धाम काशी वापस लौटी हैं. इस मौक़े पर अन्नपूर्णा यात्रा और विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा हुई. अब श्रीआशु विश्वनाथ धाम के ईशान कोण में मां विराजमान हो गयीं जहां वो लोगों की दर्शन देंगी.

काशी का अन्नपूर्णा मंदिर 

उत्तर प्रदेश के काशी में अन्नपूर्णा की प्रतिमा श्री विश्वनाथ के धाम में स्थापित हो गयी. मां की प्राण प्रतिष्ठा से एक बार फिर से काशी का वो रूप दिखायी पड़ा जिसके लिए काशी को जाना जाता है. गौरतलब है कि तीन लोकों से न्यारी काशी शिव के त्रिशूल पर टिकी है, पर यहाँ महादेव अलग अलग रूपों के साथ शक्ति के अलग अलग रूप भी दिखायी पड़ते हैं. उन्हीं में से हैं मां अन्नपूर्णा का दिव्य धाम. समस्त जगत का भरण पोषण करने वाली मां अन्नपूर्णा के दरबार की बात निराली है.  मां अन्नपूर्णा का दरबार साल में एक बार ही चार दिन के लिए खुलता है. उस समय उनका खजाना बंटता है. ऐसा माना जाता है कि उस खजाने से एक भी अंश पाने वाला कभी अभाव में नहीं रहता. उस खजाने के लिए लंबी लाइन लगती है.

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अन्नपूर्णे सदापूर्णे

मां अन्नपूर्णा का यह स्वरूप ही उनको जगत की पालन करने वाली माता के रूप में दिखाता है. इसी लिए मां के हाथ में वो पात्र है जिसमें अन्न कभी समाप्त नहीं होता. बाबा विश्वनाथ को भी अन्न की भिक्षा देने वाली मां अन्नपूर्णा ही हैं. काशी के प्राचीन अन्नपूर्णा मंदिर में उनकी स्वर्ण प्रतिमा है. इसके कपाट धनतेरस के मौके पर खोले जाते हैं. धनतेरस से अन्नकूट तक स्वर्ण प्रतिमा के दर्शन लोगों करते हैं. इस मंदिर में पांच सौ साल पुरानी स्वर्ण मूर्तियों में मां अन्नपूर्णा के साथ उनके अगल-बगल मां लक्ष्मी और मां भूमि विराजमान हैं. ये एक ऐसा दर्शन है जो कहीं नहीं मिलता. क्योंकि भूमि से अन्न उपजता है और अन्न से सम्पन्नता(भूमि देवी-अन्नपूर्णा देवी- लक्ष्मी देवी) मां अन्नपूर्णा के सामने पात्र लिए खड़े भगवान शिव भिक्षा मांग रहे हैं. यहां देवों के देव महादेव का रूप वैसा ही है जैसा किसी याचक का होता है. ये रूप जगतजननी मां के उस रूप को दर्शाता है जिसे सब समझते हैं. मां यानी जो पोषण करती है. धनतेरस से अन्नकूट तक जो खजाना बंटता है उसमें धान का लावा, बताशा और खुदरे सिक्के होते हैं. इसके बारे में मान्यता है कि जिसे भी ये मिलता है उसका सौभाग्य और उसकी सम्पन्नता कभी समाप्त नहीं होती. इसलिए बड़ी संख्या में लोग इस प्रसाद की प्रतीक्षा करते हैं. हालाँकि इसी अन्नपूर्णा मंदिर में पाषाण प्रतिमा भी है जिसमें अन्नपूर्णा महादेव को पात्र से भोजन दे रही हैं.

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काशी के दर्शन के केंद्र में हैं मां अन्नपूर्णा

जीविते अन्न दायित्वम़, मरणे मोक्ष दादाम्यहम ...जीवित रहने पर अन्नपूर्णा पोषण करेंगी और शरीर शांत होने पर महादेव मोक्ष देंगे. काशी में मोक्ष मिलता है इस दर्शन के केंद्र में मां अन्नपूर्णा हैं. इसके पीछे एक कथा है. काशी के राजा दिवोदास ने सभी देवताओं को यहां से बाहर कर दिया था. स्वयं महादेव को भी बाहर जाना पड़ा. तब एक बार काशी में अकाल पड़ा. महादेव ने दिवोदास को उपाय सुझाया कि वो अन्नपूर्णा शक्ति को प्रसन्न करें. तभी पार्वती से महादेव ने कहा कि वो अन्नपूर्णा रूप में काशी में वास करें. पार्वती को शिव ने ये तक कहा कि आप वहां जाएंगी तो मैं भी स्वयं आपसे भिक्षा लेने आऊंगा. शिव ने कहा कि जीवित रहने पर जगत का पालन पोषण अन्नपूर्णा आप करें और मृत्यु पर मैं तारक मंत्र से इन्हें मोक्ष दूंगा. मां अन्नपूर्णा ने शिव को वचन दिया कि उनके काशी में कोई भूखा नहीं सोएगा. काशी विद्वत परिषद के महामंत्री और अन्नपूर्णा मठ-मंदिर के आचार्य प्रो. रामनारायण द्विवेदी कहते हैं ‘महादेव ने देवी के किसी और रूप को नहीं अन्नपूर्णा को ‘प्राण वल्लभा’ कहा है. विश्वम पालयति पोषयति यसा विश्वंभरा ... यानी जो विश्व का पालन पोषण करती है वो विश्म्भरा है. यही रूप महादेव को सबसे प्रिय है. आज का दिन इसलिए बहुत ख़ास है.’शिव शक्ति का यही सामंजस्य काशी में है. आज अन्नपूर्णा के अपने धाम लौटने पर इसी बात को स्मरण किया जा रहा है कि काशी अन्नपूर्णा की नगरी भी है.

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शिव पार्वती की प्रेम कथा में भी है काशी

कथा है कि बहुत तपस्या के बाद महादेव से विवाह होने पर महादेव पार्वती को लेकर कैलाश पर्वत पहुंचे.  पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने कहा कि आप तो मुझे मेरे ही मायके लेते आए. मां पार्वती की बात सुनने के बाद शिव ने अपने त्रिशूल पर काशी का निर्माण किया और स्वयं वहां माता के साथ रहने लगे. यहां के प्रायः हर मंदिर में महादेव के साथ शक्ति का स्थान है. मां ने समस्त जगत ही नहीं शिव के भोजन का भी ज़िम्मा ले लिया. महादेव का याचक के रूप में खड़ा रहना मातृशक्ति की सर्वोच्चता को बताता है.

सालों तक कहां थी मां अन्नपूर्णा की मूर्ति?

100 वर्षों से भी ज्यादा वक्त का इंतजार आज धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी में उस वक्त खत्म हो गया जब वाराणसी के सांसद और देश के पीएम नरेंद्र मोदी की कोशिशों के चलते काशी में मां अन्नपूर्णा की मूर्ति एक बार फिर अपने घर लौट आई और इसका गवाह बना विश्वनाथ मंदिर परिसर. जिसके ईशान कोण में कनाडा से लाई गई मां अन्नपूर्णा की मूर्ति को खुद सीएम योगी ने अपने हाथों प्राण प्रतिष्ठित किया. इस दौरान मां अन्नपूर्णा की मूर्ति का काशी में जगह-जगह भव्य स्वागत किया गया और काशी विश्वनाथ मंदिर में भी पूरे विधि विधान और पूजन के साथ माँ की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठित की गई. एक शताब्दी का वक्त बीत गया था जब काशी से मां अन्नपूर्णा की मूर्ति कनाडा के मैकेंजी म्यूजियम पहुंच गई थी और फिर पीएम मोदी की कोशिशों के बाद आज माँ अन्नपूर्णा की मूर्ति अपने घर काशी में एक सदी से भी ज्यादा वक्त के वनवास को खत्म करके वापस आई. 
 

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