प्रयागराज में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के बाद से ये सवाल उठने लगा है कि अब अखाड़े का नया उत्तराधिकारी कौन होगा? साथ ही महंत नरेंद्र गिरि की मौत के पीछे अखाड़े की गद्दी और संपत्ति को बड़ी वजह माना जा रहा है. ऐसे में अब काशी विद्वत परिषद ने अखाड़ों के उत्तराधिकारियों के चयन की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया है.
मौजूदा व्यवस्था में अखाड़े के महंत ही अपने उत्तराधिकारी का चयन करते हैं. वे अपने चहेते या सबसे योग्य शिष्य को पूरे अखाड़े की जिम्मेदारी देते हैं. माना जा रहा है कि कई बार यह प्रक्रिया ही तमाम घटनाओं की वजह बन जाती है.
प्रक्रिया बदली जाए- काशी विद्वत परिषद
काशी विद्वत परिषद ने इस परंपरा को बदलने की मांग की है. परिषद का कहना है कि उत्तराधिकारी के दावेदार का शासन-प्रशासन स्तर पर वेरिफिकेशन किया जाए और क्लीन चिट होने पर ही उसे उत्तराधिकारी घोषित किया जाए.
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री राम नारायण द्विवेदी ने कहा, अभी तक की चयन प्रक्रिया के अनुसार अखाड़ों में उत्तराधिकारी बनाने के लिए गुरु ही अपने शिष्य का चयन करता है. सबसे पुराने, श्रेष्ठ, उत्तम आचरण और वेद के ज्ञाता शिष्य को गुरु उत्तराधिकारी बना देते हैं. लेकिन आज की दृष्टि में जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं, उसे देखकर ऐसा लगता है कि इस प्रक्रिया को बदलना चाहिए.
धर्म के आड़ में पैदा हो रहीं विसंगतियां
राम नारायण द्विवेदी ने कहा, धर्म के आड़ में और धर्म का चोला पहनकर के अगर कोई हमारे धर्म में विसंगति पैदा कर रहा है, तो इसमें सुधार की जरूरत है. इसके लिए सभी संत समाज, सभी आचार्यों और शंकराचार्य को बैठक कर फैसला करना चाहिए. इसमें साफ होना चाहिए कि पीठ का उत्तराधिकारी चुनते वक्त ये ध्यान रखना चाहिए कि वह पात्र है या नहीं. वह सिर्फ सेवा कर रहे है, या उसे कुछ ज्ञान भी है. पीठ के बारे में जानकारी होनी चाहिए. हमारे सनातन संस्कृति और सनातन परंपरा से परिचय होना चाहिए. अगर ऐसा व्यक्ति उत्तराधिकारी नहीं चुना जाता तो वह दुर्गुणों से पीठ की मर्यादा को भंग करता है.
रामनारायण द्विवेदी ने कहा, अखाड़ों के उत्तराधिकारी के चयन के लिए विद्वानों और समाज से जुड़े जानकारों की सलाह होनी चाहिए और उत्तराधिकारी बनने वालों के पास लीगल सर्टिफिकेट भी होना चाहिए, जिसे पता लगाया जा सके कि वह विवाहित ना हो, उसके ऊपर कोई मुकदमे ना हो और उसके अंदर कोई दुर्गुण न हों. इन सब चीजों की क्लीन चिट होने के बाद ही उसे साधु बनाना चाहिए. क्योंकि कई बार ऐसा देखा गया है कि मंडलेश्वर बन जाने के बाद पता चलता है कि उसका नाम कुछ था और अब कुछ है. उसके ऊपर पूर्व में कई मुकदमे भी हैं, इन सारी चीजों के सामने आते ही हिंदू धर्म में एक भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है और हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग इस पर उंगली उठाने लगते हैं.