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खाप की राह पर बिहार की पंचायतें

बिहार से चौंकाने वाली ख़बर है. खाप की तर्ज पर गोपालगंज जिले के दो गांवों की पंचायतों ने लड़कियों के जींस पहनने और मोबाइल फोन इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी है. एक ही हफ्ते में हुआ यह सब. बिहार में संभवतः ऐसे ये पहले मामले हैं. इस फैसले के पीछे पंचायतों का तर्क है कि लड़कियों पर पश्चिमी सभ्यता का असर रोकने के लिये ये कदम उठाया गया है. ये फरमान एक जनवरी से लागू होना है. जिन दो गांवों में ये फरमान लागू होगा, उसमें एक राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष और सात बेटियों के पिता लालू प्रसाद यादव का भी है.

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हरियाणा की खाप का असर बिहार की पंचायतों पर भी
हरियाणा की खाप का असर बिहार की पंचायतों पर भी

बिहार से चौंकाने वाली ख़बर है. खाप की तर्ज पर गोपालगंज जिले के दो गांवों की पंचायतों ने लड़कियों के जींस पहनने और मोबाइल फोन इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी है. एक ही हफ्ते में हुआ यह सब. बिहार में संभवतः ऐसे ये पहले मामले हैं. इस फैसले के पीछे पंचायतों का तर्क है कि लड़कियों पर पश्चिमी सभ्यता का असर रोकने के लिये ये कदम उठाया गया है. ये फरमान एक जनवरी से लागू होना है. जिन दो गांवों में ये फरमान लागू होगा, उसमें एक राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष और सात बेटियों के पिता लालू प्रसाद यादव का भी है.

वैसे बिहार में खाप पंचायतों जैसी कोई व्यवस्था नहीं है. देश के सभी गांवों की तरह आम पंचायतें यहां भी प्राचीन समय से चली आ रही हैं. लालू प्रसाद यादव ने अपने गांव फुलवरिया की पंचायत के इस फैसले पर पर अभी चुप्पी साध रखी है. उनकी तरफ से इस मामले पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया ना आना भी अपने आप में एक सवाल है. हालांकि गांव की लड़कियों पर इस फैसले की नाफरमानी के लिये कोई सज़ा मुकर्रर नहीं की गई है. पंचायतों ने माता-पिता से अपील करते हुए कहा कि वे अपनी लड़कियों को जींस और मोबाइल से दूर रखें.

बिहार के इतिहास में महिलाओं का समाज में स्थान बहुत ऊंचा है. ऐसे में ये रूढ़ीवादी फैसले अजीब लगते हैं. जिस प्रदेश में इस तरह का कोई मामला कभी सामने न आया हो, वहां इसे क्या सिर्फ शुरूआत और अपवाद के तौर देखा जा सकता है या फिर यह एक नए सिलसिले की शुरुआत है? क्योंकि पंचायतें अक्सर एक-दूसरे के फैसलों को अपनाती नज़र आती हैं.

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बिहार में कुल 8,471 ग्राम पंचायतें हैं. यहां की पंचायतों के फैसलों से कभी भी नारी विरोधी आभास नहीं हुआ. जबकि हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो खाप पंचायतें समाज का वह रूढ़ीवादी हिस्सा हैं, जो आधुनिक समाज और बदलती हुई विचारधारा से तालमेल नहीं बैठा पा रही हैं. खाप पंचायतों में महिलाओं और युवाओं का प्रतिनिधित्व न के बराबर है. अगर इन पंचायतों की मनोदशा और सामाजिक ढ़ाँचे का अध्ययन किया जाए तो जो बातें सामने आती हैं, वे बेहद परेशान करने वाली हैं. जैसे कि हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खाप पंचायतों के तहत आने वाले क्षेत्रों में लिंग अनुपात सबसे खराब है. कन्या भ्रूण हत्या भी सबसे ज्यादा यही होती है.

बिहार के ग्रामीण समाज का ढांचा किसी भी स्तर पर हरियाणा से मेल नहीं खाता. ग्राम पंचायतों का तो सवाल ही नही उठता. पर इन दो फैसलों को देखकर ये लग रहा है कि या तो सिर्फ मीडिया की सुर्खियों में आने के लिए ये फरमान जारी किए गए हैं या फिर वाकई इन फैसलों पर चिन्ता जताने की ज़रूरत है?

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