हिंदुस्तान में सर्दियां ऑफिशियली तब ही शुरू मानी जाती हैं जब बोरोलीन की हरी वाली ट्यूब घर पर आती है. आम आदमी के पास सर्दियों को पसंद करने की दो ही वजह हैं पहला तो इस मौसम में गर्मी नहीं पड़ती, दूसरा सर्दियों में पंखे-कूलर का बिल बचता है. कुछ लोग इसलिए भी खुश हो लेते हैं कि कुछ महीने टिन्डे-करेले की बजाय गोभी-लौकी टिफिन में मिलेगी. ये बिलकुल वैसा ही है जैसे किसी को फांसी से उतार कर गिलोटिन की ओर ले जाया जा रहा हो और वो बस परिवर्तन के चलते बेवजह खुश है जैसे आप सोलह मई के बाद से.
पंखे-कूलर का बिल बचने की खुशी नहाने के पानी में हाथ डालते ही काफूर हो जाती है और अचानक आपको रियलाइज होता है कि बिना गर्म किए पानी से नहाना बिना चैलेन्ज का आइस बकेट साबित होने वाला है. गर्म पानी सामने होते हुए भी उसे सिर डालने के नाम पर रीढ़ की हाड़ में जाड़ दौड़ जाए तो पता चलता है हमें खुद से कितना प्यार है. एक खास आभार उन सभी का जरूर मानना चाहिए जो इस ठंडी में खुद से ये प्यार बरकरार रख पाते हैं और हफ्ते में मुश्किल से दो बार नहाकर जल संरक्षण और ऊर्जा संरक्षण में महती भूमिका निभाते हैं. इसी तरह हम अगर जिंदगी भर खुद से प्यार और दूसरे से प्यार न करें तो वाटर हीटर और मोबाइल रिचार्ज के लाखों रुपये बचा सकते हैं.
मुसीबतें यही खत्म नही होती. पानी अगर कम गर्म रह जाए तो अंत-अंत में संगम पर माघ स्नान की याद दिलाने लगता है और अगर ज्यादा गरम रह जाए तो कुम्भीपाक और रौरव नरक में तेल के कड़ाहों में उबलने कि अनचाही प्रैक्टिस होती सी लगती है. समझदार वो लोग होते हैं जो ऐसे में थोड़ा-सा ठंडा पानी गरम में मिला नहाने लायक बना लेते हैं. नहा चुकने के बाद आपकी असल परीक्षा होती है क्योंकि उस वक्त समझ नहीं आता कि बंद बाथरूम में हवा का ठंडा झोंका किधर से आ रहा है?
स्वेटर पहनना ऐसा ही एक और दुखदायी अनुभव होता है. अगर ज्यादा पहन लो तो हाथ ढंग से नहीं चलते और काम पहनो तो सारे पेट में बिन फ्लेवर का बरफ गोला लुढ़कता रहता है. बालों का दुश्मन मफलर या टोपी भी पहनना दुधारी तलवार पर चलने जैसा है. न पहनो तो कान जमने से कोई नहीं बचा सकता और पहनने के बाद तीन दिन तक बाल 'टिनटिन' सरीखे खड़े रहते हैं.
सर्दियों की किसी रात अलाव से थोड़ा दूर बैठ घुटने के बाल जलने से बचाते और जेब में ठूंसे मटर खाते हुए ये ख्याल भी आता है कि जिंदगी कितनी आसान होती अगर रजाई, घुसते ही ठंडी न लगती.