राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) उन लोगों पर भी खास फोकस कर रहा है जो उसकी विचारधारा के समर्थक तो हैं, मगर नौकरी आदि कारणों से भोर में लगने वाली शाखाओं में नहीं जा पाते हैं. ऐसे लोगों को अपने मिशन से जोड़ने के लिए संघ में बड़ी योजना पर काम चल रहा है. युवाओं को उनके प्रोफेशन से जुड़ी जिम्मेदारियां सौंपी जा रही हैं. संघ के प्रशिक्षित स्वयंसेवकों की तरह उन्हें भी महत्व दिया जा रहा है. संघ की ओर से ऐसे युवाओं को प्रस्ताव दिया जा रहा है कि स्वयंसेवक बनने कि लिए शाखा में जाना ही जरूरी नहीं है, वे नौकरी से जब भी फुर्सत पाएं तो सुविधानुसार कुछ घंटे आरएसएस के अनुषांगिक प्रकल्पों (प्रोजेक्ट) के लिए निकालें.
इस प्रकार शाखा में न जाने पर भी वे संघ और उसके मिशन से जुड़कर स्वयंसेवक बन सकते हैं. आरएसएस की संगठन विस्तार की कोशिशों का नतीजा है कि 2012 से जून 2019 तक 6 लाख लोग संघ से ऑनलाइन जुड़ने की रुचि जाहिर कर चुके हैं. इसमें 2018 में 1.5 लाख और 2019 के छह महीने में ही 67 हजार लोगों ने नाम-पते के साथ ऑनलाइन ब्यौरा भरा है.
संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने Aajtak.in से कहा, " संघ रुढ़िवादी संगठन नहीं है, बल्कि बदलते परिवेश के साथ खुद को उसमें ढालने वाला संगठन है. आरएसएस ने जब-जब महसूस किया, तब ड्रेस से लेकर बेल्ट तक बदल दिया. हाल में संघ ने पर्यावरण, ग्राम विकास, गौ संरक्षण, सामाजिक समरसता और कुटुम्ब प्रबोधन जैसी छह नई गतिविधियां शुरू की हैं. इन गतिविधियों को धरातल पर उतारने और उसकी निगरानी के काम में ऐसे स्वयंसेवकों को लगाया जा रहा है, जो कि संबंधित विषय के जानकार हैं. चाहे वे एनजीओ से जुड़कर इन क्षेत्रों में काम कर रहे हों या फिर अन्य किसी स्तर से, सभी को ऐसे प्रकल्पों से जोड़ा जा रहा."
कमेटियों में बनाए जा रहे सदस्य
संघ की ओर से तैयार प्लान के मुताबिक शाखा में न जाने वाले ऐसे लोगों को राष्ट्रीय सेवा भारती, विद्या भारती आदि अनुषांगिक संगठनों से जोड़ा जा रहा है. स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्राम्य विकास आदि से जुड़े एक लाख से अधिक प्रकल्पों में ऐसे लोगों की मदद ली जा रही है. संघ की ओर से सेवा कार्यों से जुड़ी कमेटियों में भी इन लोगों को सदस्य के रूप में शामिल किया जा रहा है.
उदाहरण देते हुए संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, 'अगर कोई पेशे से शिक्षक है, मगर वह किन्हीं कारणों से संघ की शाखा में नहीं जा पाता तो ऐसे लोगों को हम विद्या भारती की ओर से संचालित स्कूलों से जोड़ते हैं. स्कूलों की कमेटियों में उन्हें सदस्य बनाया जाता है. इच्छानुसार वे स्कूलों में स्वैच्छिक रूप से पढ़ाने का जिम्मा ले सकते हैं या फिर शिक्षण व्यवस्था की मानीटरिंग का काम कर सकते हैं. इसी तरह कोई डॉक्टर जुड़ना चाहता है तो उसे सेवा भारती की ओर से संचालित स्वास्थ्य शिविरों की जिम्मेदारी सौंपी जाती है.
क्या कहते हैं आरएसएस विचारक
नागपुर में रहने वाले आरएसएस के विचारक दिलीप देधवर Aajtak.in से कहते हैं," समय बदल गया है, ऐसे में शाखा का पैटर्न इस दौर के हर व्यक्ति पर फिट नहीं बैठ सकता. यह संघ भी समझता है. वह खुद को काडर नहीं बल्कि सामाजिक संगठन मानता है. गोलवलकर भी कहते थे कि हमारे कार्यकर्ताओं को खुद के लिए भले 'रिजिड' होना चाहिए, दूसरों के लिए लचीला बनना चाहिए. इसलिए बाहर से आए व्यक्तियों का भी संघ खुले दिल से स्वागत करता है, जो उसकी विचारधारा को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं."
देवधर कहते हैं कि संघ संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार से लेकर गोलवलकर और बालासाहब देवरस के कार्यकाल तक बाहरी व्यक्तियों को संघ में बड़े पद दिए जाते थे. बीच में खांटी स्वयंसेवकों को ही आगे बढ़ाने की परंपरा चली. मगर अब फिर से समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को आरएसएस अपने प्रकल्पों में सम्मानजनक ढंग से जोड़कर साझा हितों को विस्तार दे रहा है.
दिलीप देवधर कहते हैं कि पहले बच्चे कोचिंग नहीं जाते थे तो संघ की शाखाओं में उपलब्ध होते थे. अब ज्यादातर बच्चे सुबह ही कोचिंग चले जाते हैं. निजी कंपनियों में बड़ा तबका मार्निंग शिफ्ट की जॉब करने को मजबूर हैं. ऐसे में संघ का मानना है कि विचारधारा से जुड़े जो लोग 'शाखा पैटर्न' से खुद को नहीं जोड़ पाते, उन्हें सेवा प्रकल्पों से जोड़ा जाए. ताकि वे आरएसएस के मिशन से जुड़ सकें. इससे उन्हें संघ की विचारधारा से लिंकअप करने में आसानी होती है. देवधर कहते हैं कि डॉक्टर, इंजीनियर, लेक्चरर-प्रोफेसर से लेकर चार्टर्ड एकाउंटेंट, कारपोरेट कंपनियों में बड़े-बड़े पदों पर बैठे लोग भी आरएसएस के सेवा प्रकल्पों से जुड़कर उसी तरह काम कर रहे हैं, जैसे प्रशिक्षित स्वयंसेवक करते हैं.