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सरकार ने पासपोर्ट नियमों में दी ढील, साधु-संन्यासियों को मिली गुरुओं का नाम लिखने की छूट

देश में साधु और संन्यासी अब अपने पासपोर्ट में अपने जैविक मां-बाप की जगह आध्यात्मिक गुरुओं का नाम लिख सकते हैं. दरअसल केंद्र सरकार ने नए पासपोर्ट नियमों की घोषणा किया है, जिसके अनुसार, अब पासपोर्ट के लिए जन्मतिथि के प्रमाण के तौर पर बर्थ सर्टिफिकेट की अनिवार्यता को भी खत्म कर दिया गया है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

देश में साधु और संन्यासी अब अपने पासपोर्ट में अपने जैविक मां-बाप की जगह आध्यात्मिक गुरुओं का नाम लिख सकते हैं. दरअसल केंद्र सरकार ने नए पासपोर्ट नियमों की घोषणा किया है, जिसके अनुसार, अब पासपोर्ट के लिए जन्मतिथि के प्रमाण के तौर पर बर्थ सर्टिफिकेट की अनिवार्यता को भी खत्म कर दिया गया है.

विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह ने नए नियमों का किया ऐलान
विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह की ओर से घोषित इन नियमों में उन सरकारी नौकरशाहों के लिए भी प्रावधान किया गया है, जो अपने संबंधित मंत्रालयों-विभागों से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट हासिल नहीं कर पा रहे हैं. सिंह ने कहा कि पासपोर्ट के मामले में प्रक्रिया को तेज करने, उदार बनाने और सरल बनाने के लिए विदेश मंत्रालय ने कई कदम उठाए हैं, जिनसे देश के नागरिकों को पासपोर्ट के लिए आवेदन करने में आसानी हो सकती है.

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जन्मतिथि को लेकर दस्तावेजों में ढील
पासपोर्ट के लिए आवेदन करते समय जन्मतिथि को लेकर यह फैसला किया गया कि पासपोर्ट के सभी आवेदन के साथ स्कूल छोड़ने के प्रमाणपत्र, 10वीं कक्षा के प्रमाणपत्र, पैन कार्ड, आधार कार्ड, ई-आधार कार्ड, आवेदनकर्ता के सेवा रिकॉर्ड से जुड़े कागजात, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी पत्र या एलआईसी पॉलिसी बॉन्ड के दस्तावेत भी लगाए जा सकते हैं.

पढ़ें- विदेश में पासपोर्ट खो जाए तो करें ये काम...

जन्म एवं मृत्यु पंजीयक या नगर निगम अथवा जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिनियम-1969 के तहत अधिकार प्राप्त एजेंसी द्वारा जारी बर्थ सर्टिफिकेट भी जन्मतिथि के प्रमाणपत्र के तौर पर दिया जा सकता है. पासपोर्ट नियम-1980 के मौजूदा विधायी प्रावधानों के अनुसार 26 जनवरी, 1989 को या फिर इसके बाद पैदा हुए आवेदनकर्ताओं को जन्मतिथि के प्रमाण के तौर पर बर्थ सर्टिफिकेट सौंपना अनिवार्य होता था.

अब अपने गुरुओं के नाम लिख सकेंगे साधु-संन्यासी
इसके अलावा सरकार ने साधुओं-संन्यासियों की मांग को भी मानते हुए उन्हें माता-पिता की बजाय अपने गुरुओं के नाम लिखने का इजाजत दी है. सिंह ने कहा कि साधु-संन्यासियों को यह सुविधा प्रदान की गई है, लेकिन उन्हें कम से कम एक सरकारी कागजात सौंपना होगा. वहीं अपने संबंधित विभाग से पहचान पत्र- नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट पत्र हासिल नहीं कर पा रहे सरकारी कर्मचारी अब इस हलफनामे के जरिये पासपोर्ट हासिल कर सकते हैं कि उन्होंने अपने नियोक्ता या विभाग को पहले से सूचित कर दिया है कि वह पासपोर्ट के लिए आवेदन कर रहा है.

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अकेली मां को नए नियमों में राहत
इसके साथ ही विदेश मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सदस्यों वाली अंतर-मंत्रालयी समिति ने इस बात पर जोर दिया है कि अकेली मां के मामले में पिता के नाम का जिक्र नहीं किया जाए और गोद लिए बच्चे को भी स्वीकार्यता दी जाए. सिंह ने कहा कि जरूरी अधिसूचना जल्द ही गैजेट में प्रकाशित की जाएगी.

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