तालिबान के वर्चस्व वाले इलाके में एक पत्रकार का सरेआम कत्ल कर दिया गया है. हालांकि, हत्या में अभी तालिबान के हाथ होने की बात नहीं हो रही है लेकिन, जिस दरिंदगी से ये कत्ल हुआ है, उससे तो यही लगता है कि तालिबान बेकाबू हो चुका है.
जीना है, तो तालिबान की तारीफ करो, वर्ना अपनी जान गंवानी पड़ेगी. तालिबान को किसी भी तरह की आलोचना बर्दाश्त नहीं. अगर कोई उसकी करतूतों के सामने सिर उठाए तो वो उस सिर को कलम कर देता है.
स्वात घाटी के मट्टा इलाके में जिओ-टीवी के पत्रकार मूसा खान की हत्या कर उनके शव को सड़क किनारे फेंक दिया गया. जानकारों की मानें, तो तालिबान का ये बढ़ा हौसला उसी समझौते की बदौलत है, जो पाकिस्तान सरकार ने इन आतंकियों के साथ किया है. कहा जा रहा है कि ये खूनी तोहफा है समझौते का और अभी तो ये शुरुआत है. ना जाने आगे फिर क्या होगा.