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जब आरोपी जेल नहीं जा रहे तो बच्चों का रेप कैसे रूकेगा?

कुछ आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं जिनमें कहा गया है कि अगर अब पोक्सो के कोई केस नहीं आते हैं तो अकेले दिल्ली में 2016 में दर्ज हुए केस को सुलझाने में 2029 तक का समय लगेगा.

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रेप की वारदातें बढ़ रही हैं (सांकेतिक तस्वीर)
रेप की वारदातें बढ़ रही हैं (सांकेतिक तस्वीर)

बच्चों के साथ रेप के मामलों में सजा दिलाने की तुलना में दूसरे अपराध में सजा दिलाने के सबसे नीचे पायदान पर है. जब आरोपी जेल में ही नहीं डाल रहे तो बच्चों का रेप कैसे रूकेगा? बचपन बचाओ आंदोलन ने 2014, 2015, 2016 के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के कुल मामलों की संख्या के आधार पर ये बताया कि बच्चों से जुड़े रेप के मामले में कन्विक्शन रेट सिर्फ 9 प्रतिशत है जो बाकी नेशनल क्राइम के एवरेज से बहुत ही कम है.

बचपन बचाओ आंदोलन की लीगल हेड प्रभसहाय कौर ने बताया कि लॉ कन्विक्शन रेट कम होना बच्चों के खिलाफ केसेज के बढ़ने का बड़ा कारण है. ये बहुत ही भयानक है, पॉक्सो के केसों में तो यह और भी खतरनाक है. स्पेशल लॉ के बावजूद अपराधी की दोषमुक्ति होने पर राज्य उसके खिलाफ अपील नहीं करते हैं.

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इस रिपोर्ट के कुछ आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं जिसमें कहा गया है कि अगर अब पोक्सो के कोई केसेज नहीं आते हैं तो अकेले दिल्ली में 2016 में दर्ज हुए केसेज को सुलझाने में 2029 तक का समय लगेगा. वहीं डीसीपीसीआर की रिपोर्ट भी ये कहती है कि 85 प्रतिशत केसेज में चाइल्ड विक्टिम को एक भी पैसा तक नहीं दिया गया.

दिल्ली की विक्टिम कंपनसेशन स्कीम के मुताबिक पीड़ित को 3 से 5 लाख रुपये मिलेंगे और अगर बच्चा 18 साल से कम उम्र का है तो मदद 50 प्रतिशत ज्यादा की जा सकती है. रिपोर्ट ये कहती है कि 99 प्रतिशत बच्चों को कंपनसेशन नहीं मिला है.

अगर किसी पीड़ित को कंपनसेशन मिला भी है तो 50,000 रुपये से कम मिला है. अगर किसी बच्चे का रेप हो जाता है तो तो वो एजुकेशन सिस्टम से भी निकल जाता है. बहुत केसेज में मुफ्त कानूनी मदद पीड़ित को नहीं मिली है. यहां तक कि हेल्थ असिस्टेंस भी नहीं मिल रही है. उसकी फ्यूचर फैमिली सब खत्म हो जाती है.

एक स्पेशल लॉ के ऐसे खराब हालत पर कमेंट करते हुए प्रसिद्ध क्रिमिनल लॉयर दीपक शर्मा ने बताया कि ऐसे मामले में पेंडेंसी इसलिए बढ़ रही हैं क्योंकि अक्सर आरोपी घटना के वक्त खुद को नाबालिग दिखा देता है.

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2012 में जब पोक्सो एक्ट आया था. तब स्पेशल कोर्ट भी बनाए गए थे. ऐसा लगने लगा था कि ये एक स्पेशल लॉ है जो समाज की बेहतरी के लिए है. यहां तक कि कोर्ट में फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिए एक साल फिक्स किया गया लेकिन पेंडिंग केस बहुत ज्यादा होते जा रहे हैं और कोर्ट की मॉनीटरिंग न होने से ये पेंडिंग मामले बढ़ते जा रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन दी थी की हर हाईकोर्ट में तीन जजों की कमेटी बने वो हर एक पॉक्सो केस को वॉच करेंगे. 2013 में एक बच्ची का रेप हुआ लेकिन 2019 तक आकर उसका ट्रायल कंप्लीट नहीं हुआ. 4 साल इसलिए बर्बाद हो गए कि आरोपित की मां ने दावा किया कि वारदात के वक्त आरोपी नाबालिग था. बाद में यही निकल कर आया कि वो जुवेनाइल नहीं है.

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