कुंभ पर आयोजित इंडिया टुडे के गोलमेज सम्मेलन के दूसरे सेशन में कुंभ के आध्यात्मिक, सांस्कृति और आर्थिक पक्ष पर चर्चा हुई. इस सेशन को नाम दिया गया कल्चरल रिनेसॉः द स्प्रीचुएल सिग्निफिकेंश एंड द इकोनॉमिक्स ऑफ द कुंभ. चर्चा में प्रोफेसर नील मनी प्रसाद वर्मा, प्रोफेसर डीपी त्रिपाठी, प्रोफेसर मनोज दीक्षित और डॉक्टर अरबिंद कुमार झा ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन इंडिया टुडे के संपादक अंशुमान तिवारी ने किया. इस दौरान प्रोफेसर नील मनी प्रसाद वर्मा ने दावा किया कि कुंभ के आयोजन से प्रयागराज की गरीबी दूर हो जाएगी.
उन्होंने कहा कि इस साल शुरुआत में 2500 करोड़ का बजट था फिर कुछ और मंत्रालयों ने इसमें अपना-अपना कार्यक्रम जोड़ा और कुल बजट 4,500 करोड़ रुपये हो गया. उन्होंने कहा कि कुंभ कुछ दिनों का बाजार है और यह पैसा यहां खर्च किया जा रहा है तो जाहिर है कि इस बाजार में रुपये की रफ्तार तेज होगी और इससे कुंभ के प्रभाव में रहने वाले लोगों की आय भी तेजी से बढ़ती है.
उन्होंने कहा कि इसके विपरीत स्थाई बाजार में रुपए की रफ्तार कम रहती है. लिहाजा एक बात साफ है कि रुपये की इस तेज रफ्तार से प्रयागराज गरीबी से मुक्त हो जाएगी. खास बात यह है कि सरकारी खर्च के अलावा देश और दुनिया से आने वाले लोग भी बड़ी मात्रा में इस एक महीने के रुपये खर्च होते हैं जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव आता है.
'सूर्य, चंद्र और बृहस्पति के साथ शनि के प्रभाव से महत्वपूर्ण हो जाता है कुंभ'
इस दौरान देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि कुंभ का संबंध सूर्य, चंद्र और बृहस्पति गृह से है. ये आस्था का पर्व है और विज्ञान से देखना कठिन है लेकिन खगोल की दृ्ष्टि से देखना महत्वपूर्ण है. देवी प्रसाद ने कहा कि इन तीन गृहों के अलावा शनि से भी कुछ संबंध है. प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में कुंभ का आयोजन इन ग्रहों की स्थिति पर निर्धारित होता है. वहीं जब इनपर शनि का प्रभाव पड़ता है तो कुंभ में स्नान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.
चर्चा में शामिल मनोज दीक्षित ने कहा कि कुंभ मेला भी कृषि के चलते उत्तर भारत तक सीमित रहा क्योंकि उत्तर भारत कृषि की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण रहा है. वहीं दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत में कृषि के आधार पर अलग त्यौहार मनाए जाते रहे हैं.