रेलवे स्टेशन से उर्दू हटाए जाने के मामले पर भारतीय रेलवे की ओर से सफाई आई है. भारतीय रेलवे का कहना है कि भारतीय रेलवे ने न तो किसी स्टेशन से उर्दू भाषा को हटाया है और न ही फिलहाल ऐसा करने का कोई इरादा है.
रेलवे की ओर से कहा गया कि संस्कृत को अतिरिक्त भाषाओं के अलावा रेल स्टेशनों पर साइन-बोर्ड में मौजूदा भाषाओं में इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि इसके कारण उर्दू भाषा को रिप्लेस नहीं किया जाएगा.
उत्तराखंड बदलने जा रहा नामIndian Railways:Indian Railways has neither replaced Urdu language from any station nor has any intention to do so presently.Sanskrit may be used as additional language apart from existing languages in sign-boards at stations,but will not replace Urdu language wherever it exists. pic.twitter.com/uE76b4W1Lh
— ANI (@ANI) February 7, 2020
पिछले महीने ऐसी खबर आई थी कि उत्तराखंड में अब रेलवे स्टेशनों पर एक बदलाव किया जा रहा है. उत्तराखंड के प्लेटफॉर्म पर लगीं साइन बोर्ड्स से अब उर्दू भाषा की विदाई होगी. रेलवे अब स्टेशनों का नाम लिखने के लिए उर्दू की जगह संस्कृत भाषा का उपयोग करने की तैयारी में है.
उत्तराखंड में प्लेटफॉर्म साइनबोर्ड्स पर उर्दू में लिखे गए रेलवे स्टेशनों के नाम अब पर्वतीय राज्य की अपनी दूसरी आधिकारिक भाषा संस्कृत में लिखे जाएंगे. तब कहा गया कि यह कदम रेलवे की नियमावली के अनुसार उठाया जा रहा है.
'राज्य की आधिकारिक भाषा में हो नाम'
इस संबंध में उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) दीपक कुमार ने जानकारी भी दी थी कि रेलवे की नियमावली के अनुसार प्लेटफॉर्म के साइनबोर्ड पर रेलवे स्टेशन का नाम हिंदी और अंग्रेजी के बाद संबंधित राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा में लिखा जाना चाहिए.
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दीपक कुमार के अनुसार उत्तराखंड की दूसरी आधिकारिक भाषा संस्कृत है, इसलिए अब राज्य के प्लेटफॉर्म्स के साइनबोर्ड्स पर अब उर्दू की बजाय संस्कृत में लिखे जाएंगे. रेलवे प्लेटफॉर्म साइनबोर्ड पर उत्तराखंड में रेल स्टेशनों के नाम अभी भी उर्दू में दिखाई देते हैं, क्योंकि उनमें से अधिकांश उस समय के हैं जब राज्य उत्तर प्रदेश का हिस्सा था. उर्दू उत्तर प्रदेश की दूसरी आधिकारिक भाषा है.
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पीआरओ दीपक कुमार के अनुसार रेल नियमावली के नियमों के अनुरूप यह बदलाव साल 2010 में संस्कृत को राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा बनाए जाने के बाद ही हो जाना चाहिए था. दीपक ने कहा कि साइनबोर्ड्स पर यह बदलाव तभी कर लिया जाना चाहिए था.
2010 में संस्कृत को मिला दर्जा
हालांकि, उत्तराखंड में रेलवे स्टेशनों के नामों की वर्तनी में इससे बहुत बदलाव नहीं होगा. इसके पीछे यह तर्क दिया गया कि हिंदी और संस्कृत, दोनों की लिपि एक ही है. दोनों की ही लिपि देवनागरी है. बोर्ड पर जब नाम संस्कृत में लिखे जाएंगे तो अधिक बदलाव नहीं होगा.
वर्तमान केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के मुख्यमंत्री रहते साल 2010 में संस्कृत को उत्तराखंड की दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था.