विशेष सार्वजनिक उद्देश्यों के लिये अधिग्रहित भूमि को सरकार या उसकी अनुषंगी इकाइयां न तो बदल सकती हैं और न ही किसी व्यक्ति या औद्योगिक घराने को हस्तांतरित कर सकती हैं. यह व्यवस्था उच्चतम न्यायालय ने दी है.
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न्यायमूर्ति सिंघवी ने कहा कि अदालतों ने बार-बार कहा है कि अपनी विशेष शक्ति का प्रयोग करते समय सरकार लोगों की जमीन का अधिग्रहण कर सकती है लेकिन निजी लोगों के हितों के लिये जमीन मालिकों को उनकी संपत्ति से बेदखल करने के अवैध कार्यों को यह वैध नहीं ठहरा सकती.
उच्चतम न्यायालय ने एक विशेष औद्योगिक घराने की अपील को खारिज करते हुए यह आदेश सुनाया. औद्योगिक घराने ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी जिसने दक्षिण बेंगलूर में 37 एकड़ से ज्यादा जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को रद्द कर दिया था.
कर्नाटक राज्य पर्यटन विकास निगम ने राज्य सरकार के माध्यम से गोल्फ सह होटल रिसार्ट के लिये निजी जमीन का अधिग्रहण किया था. बहरहाल रिसार्ट बनाने के बजाए इसने जमीन को हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिये एक निजी रियट इस्टेट कंपनी और अन्य औद्योगिक घरानों को सौंप दिया. इस निर्णय से आहत निजी जमीन मालिकों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जिसने अधिग्रहण की प्रक्रिया को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि जमीन मूल मालिकों को लौटा दी जाए.
जमीन मालिकों को भी मुआवजे के तौर पर दी गई राशि लौटाने का निर्देश दिया गया. औद्योगिक घरानों ने इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की. उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि निगम ने राज्य सरकार से झूठी बात कही कि जमीन की जरूरत पर्यटन से संबंधित परियोजनाओं के लिये है. पीठ ने कहा कि निगम की बैठकों से पता चलता है कि परियोजना के लिये इसके पास आवश्यक कोष नहीं थी और यह जमीन को निजी बिल्डर को सौंपना चाहती थी.