उच्चतम न्यायालय ने अपने एक ताजा फैसले में कहा है कि किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी व्यक्ति को सीधे भूमि का आवंटन करे क्योंकि यह कानून का उल्लंघन है और समर्थ प्राधिकरण की शक्ति का अतिक्रमण है.
न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने इस संबंध में दायर एक याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला दिया. याचिका में कहा गया था कि यदि कोई व्यक्ति समर्थ प्राधिकरण से राहत पाने में नाकाम रहता है तो वह मुख्यमंत्री या फिर अन्य पदाधिकारियों की सहायता ले सकता है.
न्यायमूर्ति चौहान ने फैसले में कहा, ‘मुख्यमंत्री खुद से समर्थ प्राधिकरण के कार्य की जिम्मेदारी नहीं ले सकते. यह प्राधिकरण की शक्ति के अतिक्रमण समान है. हालांकि, किसी आवेदन पर निर्णय देते वक्त कोई प्राधिकरण या अदालत संबंधित व्यक्ति की शिकायत पर निर्देश जारी कर सकती है.’
चौहान ने कहा, ‘हालांकि, इसकी भी अनुमति नहीं है कि कोई उच्च प्राधिकरण या अदालत खुद से आदेश पारित करे.’