कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने गुरुवार को पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि रेलवे निजीकरण ऐसे संदर्भ और वातावरण में देश के लिए एक हार और बर्बादी का मामला होगा. बता दें, निजी ट्रेनों को लेकर रेलवे ने बड़ी घोषणा की है. रेलवे बोर्ड ने कहा है कि साल 2023 से देश में निजी ट्रेनें पटरी पर दौड़ेंगी. हालांकि, इसका किराया रेलवे तय करेगा.
डॉ. सिंघवी ने कहा, यह रेलवे विश्व का, एशिया का सबसे बड़ा दूसरे नंबर पर रोजगार देने वाला सिंगल मैनेजेमेंट का सबसे बड़ा नेटवर्क है. लगभग ढाई करोड़ लोगों को प्रतिदिन ये आवागमन करवाता है. 7.2 से 7.5 बिलियन पैसेंजर यानी साढ़े 7 हजार करोड़ पैसेंजर वार्षिक हैं. एक ऑस्ट्रेलिया की आबादी दिन-प्रतिदिन स्थानांतरण करती है भारतीय रेलवे में और डेढ़ करोड़ लोग उसकी लगभग रोजगार पर नुमाईंदे हैं, मुलाजिम हैं. विश्व में आप कोई भी एक्टिविटी लें, सिर्फ रेलवे की बात नहीं, विश्व में रोजगार देने वाली कोई भी एक्टिविटी लें, उसमें भारतीय रेलवे सातवें नंबर पर रोजगार देती है. अब इस संदर्भ में हमें बड़ा अजीब लगता है कि किस प्रकार की राजनीतिक जिद्द चल रही है.
सिंघवी ने कहा, मंत्री महोदय ने 17 मार्च को संसद में इस विषय में बड़ा स्पष्ट कहा था. उस वक्त बहस हुई थी कि आप निजीकरण नहीं करेंगे. हम ये भी जानते हैं कि आप इसे निजीकरण नहीं बोलते. आप कहते हैं ये तो रेलवे का निजीकरण नहीं है, प्राइवेटाइजेशन कुछ लाइंस का है. क्या आप कह सकते हैं कि इतनी भंयकर त्रासदी के दौरान, संक्रमण के दौरान ये सबसे अच्छा समय है ऐसा काम करने का? क्या देश को रेलवे की एक लाइन भी प्राइवेटाइज करने से सबसे ज्यादा फायदा इस समय होगा?
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, क्या इस वक्त बिड्स, मांगें, दावे, रुपये, पेमेंट न्यूनतम भी होंगे ? मध्यम भी छोड़िए, सबसे ऊपर होंगे? तो ऐसे वातावरण में जब आपकी फ्रेट 4 प्रतिशत से 1 प्रतिशत हो गई, जब रेवेन्यू में गिरावट हो रही है और वक्त कोरोना वायरस का है, करंट अकाउंट रेवेन्यू डेफिसिट है, तो किस औचित्य से आप ये कर रहे हैं? सरकार का इरादा क्या है. सरकार ने इसी प्रकार की अजीबो-गरीब नीति देश भर में अपनाई. कोल माइनिंग के लिए ऐसा समय चुना कि ठीक कोरोना के बीच माइनिंग का निजीकरण हो सकता है.
सिंघवी ने कहा कि यह फैसला लेने से पहले सरकार को संसद में बातचीत करनी चाहिए थी. संसद का वर्चुअल सेशन करा सकते हैं. सरकार इस पर कानून भी पास करा सकती थी. कानून नहीं तो कम से कम एक रिजोल्यूशन ही पास कराना चाहिए था लेकिन सरकार किस औचित्य से ऐसा कर रही है यह समझ से परे है. सिंघवी ने पूछा कि क्या सरकार का अगला कदम लोगों की छंटनी होगी. सरकार को बताना चाहिए कि जिस लाइन पर अभी ट्रेन चल रही है, उस पर घाटा कैसे है और निजीकरण के बाद उसी लाइन पर लाभ कैसे मिलेगा.